1950 के दशक में हिंदी सिनेमा के ‘शो मैन’ राज कपूर और अभिनेत्री नर्गिस की जोड़ी पर्दे पर काफी सफल रही थी. परंतु ‘चोरी-चोरी’ फिल्म के बाद नर्गिस राज कपूर के जीवन से निकल चुकी थीं. इस बिछड़ाव ने राज कपूर को काफी आहत किया और उनका आत्मविश्वास लगभग टूट चुका था. उन्हें यह महसूस होने लगा था कि शायद अब बिना नर्गिस के कोई बड़ी फिल्म बनाना उनके बस की बात नहीं रही. इसी मनोदशा में राज कपूर ने सोचा कि उन्हें अब कुछ नया करना होगा, और यहीं से उनकी मुलाकात पद्मिनी से हुई, जो उनकी जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.
राज कपूर की पद्मिनी से पहली मुलाकात मॉस्को में हुई थी. पद्मिनी अपनी बहन के साथ रूस में एक डांस परफॉर्मेंस देने और रूसी फिल्म में काम करने के लिए आई हुई थीं. अलग-अलग कार्यक्रमों में दोनों की कई बार मुलाकात हुई और आगे चलकर ‘जिस देश में गंगा बहती है’ जैसी फिल्म बनी. यह फिल्म राज कपूर के करियर के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.
नर्गिस के जाने के बाद राज कपूर के आत्मविश्वास को जबरदस्त झटका लगा था. उनकी फिल्म ‘जागते रहो’ भी असफल रही थी, जिसके बाद वे फिल्मों को लेकर अनिश्चितता से घिर गए थे. इसी वक्त उन्होंने ‘जिस देश में गंगा बहती है’ फिल्म बनाने का निर्णय लिया, लेकिन इसके फेल का डर हमेशा उनके दिल में बना रहा. वे इसे लेकर बहुत चिंतित थे कि फिल्म सफल होगी या नहीं. परंतु फिल्म की रिलीज़ के बाद राज कपूर के सभी डर गलत साबित हुए और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही.
‘जिस देश में गंगा बहती है’ के गानों ने धमाल मचा दिया, और खासतौर पर पद्मिनी के द्वारा निभाए गए ‘कम्मो’ के किरदार ने दर्शकों को अपना दीवाना बना लिया. फिल्म के एक दृश्य में पद्मिनी झरने के नीचे काली साड़ी पहने नजर आती हैं, जिसने हिंदी सिनेमा में बोल्डनेस की एक नई परिभाषा गढ़ी. यह दृश्य इतना प्रभावी रहा कि कहा जाता है, इसी सीन ने राज कपूर को ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाने का विचार दिया. पद्मिनी ने अपने किरदार को पूरे समर्पण के साथ निभाया और किसी भी तरह की झिझक नहीं दिखाई.
सालों बाद फिल्मफेयर पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार में पद्मिनी से इस बोल्ड सीन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह सीन बोल्ड नहीं था. आखिर बीहड़ में डकैतों के बीच रहने वाली औरत कैसे रहेगी?”
पद्मिनी का जन्म 12 जून 1932 को तिरूवनंतपुरम के पूजाप्परा में थंकअप्पन पिल्लई और सरस्वती अम्मा के घर हुआ. वे भरतनाट्यम और कथकली में प्रशिक्षित थीं और अपनी बहनों ललिता और रागिनी के साथ ‘ट्रावनकोर सिस्टर्स’ के रूप में मशहूर हुईं. 1948 में पद्मिनी ने हिंदी फिल्म ‘कल्पना’ से फिल्मी जगत में कदम रखा और अपने शास्त्रीय नृत्य से खासी लोकप्रियता हासिल की.
फिल्मी करियर में सफलता प्राप्त करने के बाद, 1961 में पद्मिनी ने अमेरिका में रहने वाले फिजिशियन डॉ. के टी रामचंद्रन से विवाह कर लिया और फिल्मों से विदा ले ली. विवाह के बाद वे अमेरिका में बस गईं और गृहस्थी पर ध्यान देने लगीं. 1963 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया. 1977 में न्यू जर्सी में उन्होंने एक क्लासिकल डांस स्कूल खोला, जिसका नाम था ‘पद्मिनी स्कूल ऑफ आर्ट्स’. यह स्कूल आज अमेरिका के सबसे बड़े क्लासिकल डांस इंस्टिट्यूशन में से एक माना जाता है.
24 सितंबर 2006 को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में पद्मिनी का निधन हो गया. उनके निधन के एक दिन पहले, 23 सितंबर को वे तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि के सम्मान में आयोजित एक समारोह में नजर आई थीं. पद्मिनी के निधन पर करुणानिधि ने कहा, “मैं नहीं जानता कि मृत्यु ने इतनी सुंदर और दुर्लभ कलाकार को कैसे निगल लिया? वह सितारों के बीच एक सितारा थीं.”
-भारत एक्सप्रेस
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