सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की स्वतंत्रता बनाए रखने को लेकर निचली अदालतों को बड़ा निर्देश दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि मीडिया संस्थानों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि जब मामला बहुत असाधारण हो, तभी प्रतिबंध के आदेश पारिए किए जाने चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालतें जब भी मीडिया संस्थानों के खिलाफ कोई फैसला सुनाएं या फिर प्रतिबंध का आदेश पारित करें, तो सबसे पहले सबूतों और लगाए गए आरोपों की गुणवत्ता की जांच की जाए. इसके बिना एकतरफा प्रतिबंध लगाने जैसा आदेश देने से बचना चाहिए. शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि किसी भी लेख के छपने के खिलाफ प्री-ट्रायल निषेधाज्ञा देने से लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता के जानने के अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ब्लूमबर्ग को जी एन्टरटेनमेंट के खिलाफ कथित अपमानजनक समाचार हटाने का निर्देश देने संबंधी निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सामग्री के प्रकाशन के खिलाफ निषेधाज्ञा पूर्ण सुनवाई के बाद ही जारी की जानी चाहिए. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, “समाचार के खिलाफ सुनवाई पूर्व निषेधाज्ञा प्रदान करने से इसे लिखने वाले की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के लोगों के अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.”
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कोर्ट ने इस दौरान ये भी कहा कि जिस लेखन या फिर सामग्री को निषिद्ध किए जाने का अनुरोध किया गया है, पहले अदलातों को यह भी सावधानीपूर्वक देख और तय कर लेना चाहिए कि सामग्री पर प्रतिबंध कहीं दुर्भावनापूर्ण या फिर झूठे तरीके से तो नहीं लगवाई जा रही है. पीठ ने कहा, “सुनवाई शुरू होने से पहले, अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करने का परिणाम सार्वजनिक चर्चा को रोकना है…दूसरे शब्दों में, अदालतों को अपवाद वाले मामलों को छोड़कर एक पक्षीय निषेधाज्ञा नहीं जारी करनी चाहिए.”
-भारत एक्सप्रेस
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