दिल्ली हाई कोर्ट ने उस कानून को बरकरार रखा है जिसके अनुसार पान मसाला कंपनियों को ऐसे उत्पादों की पैकेजिंग के सामने की तरफ 50 फीसदी हिस्से पर पान मसाला के हानिकारक प्रभावों के बारे में वैधानिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रदर्शित करना अनिवार्य है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में, पान मसाला चबाने से जुड़े जोखिम के बारे में उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए विनियमन पेश किया है.
न्यायालय ने कहा कि पान मसाला कंपनियों द्वारा विनियमन को चुनौती देना अपने स्वार्थ से प्रेरित है ताकि उनके पान मसाला ब्रांडों की बिक्री को सुरक्षित रखा जा सके, जो विनियमन का अनुपालन करने पर प्रभावित हो सकता है. कोर्ट ने कहा आक्षेपित विनियमन को पेश करने में खाद्य प्राधिकरण का इरादा यह है कि वैधानिक स्वास्थ्य चेतावनी कथन एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय के रूप में कार्य करता है और यह उपयुक्त होगा कि चेतावनी कथन अत्यधिक दृश्यमान बनाए जाएं, ताकि उपभोक्ताओं को यह ध्यान में आ सके. इस प्रकार, लेबल के फ्रंट-ऑफ-पैक के 3 मिमी से 50 प्रतिशत तक चेतावनी कथनों के आकार में वृद्धि एक प्रभावी विकल्प है और यह याचिकाकर्ताओं के अधिकारों को असंगत रूप से प्रभावित नहीं करता है. इन मापदंडों को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय की राय है कि आक्षेपित विनियमन आनुपातिकता की कसौटी पर खरा उतरता है.
न्यायालय ने धर्मपाल सत्यपाल लिमिटेड द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जो रजनीगंधा, तानसेन और मस्तबा जैसे उत्पाद बनाती है. धर्मपाल सत्यपाल ने उच्च न्यायालय से यह घोषित करने की मांग की कि खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) द्वितीय संशोधन विनियम, 2022 का विनियमन 2(आई) असंवैधानिक है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी व्यापार या पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है.
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उन्होंने यह भी घोषित करने की मांग की कि विनियमन खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के विपरीत है. यह कहा गया कि पहले के विनियमन के अनुसार, वैधानिक चेतावनी का आकार 3 मिलीमीटर (मिमी) होना था. हालांकि, नए कानून के अनुसार यह पैकेज के सामने के हिस्से का 50 प्रतिशत होना चाहिए. कंपनी ने तर्क दिया कि विनियमन को वैधानिक प्रक्रिया का पालन किए बिना पेश किया गया था और निर्णय को सही ठहराने के लिए वैज्ञानिक पैनल या वैज्ञानिक समिति की कोई राय नहीं ली गई थी.
-भारत एक्सप्रेस
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