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Ghosi Assembly by-Election: लोकसभा चुनाव से पहले घोसी विधानसभा By Poll इलेक्शन में भाजपा-सपा की होगी कड़ी परीक्षा, अखिलेश यादव के लिए बड़ा चैलेंज

Ghosi Assembly by-Election: लोकसभा चुनाव-2024 से पहले उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर भाजपा और सपा की कड़ी परीक्षा बताई जा रही है. उपचुनाव का बिगुल बजते ही जहां एक ओर अखिलेश की रणनीति को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं तो वहीं भाजपा की तैयारी को लेकर भी सियासी चर्चा तेज है.

बता दें कि यहां से सपा के टिकट पर चुनाव जीते दारा सिंह चौहान ने हाल ही में सपा की साइकिल से उतर गए थे, साथ ही अपनी विधानसभा सदस्यता से भी इस्तीफा भी दे दिया था. तभी से घोसी सीट खाली पड़ी है, जिस पर आगामी 5 सितंबर को चुनाव होने की घोषणा हो गई है और नतीजे 8 सितंबर को आ जाएंगे. ऐसे में जहां एक ओर सपा इस सीट पर पर अपनी दावेदारी को बचाने के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है तो वहीं भाजपा अपनी साख बचाने के लिए मजबूत दावेदार को उतारने की प्लानिंग कर रही है. इसी बीच खबर ये भी है कि, भाजपा हो सकता है कि यहां के लिए दारा सिंह चौहान को ही अपना उम्मीदवार बनाए. हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि, यहां के लिए अखिलेश यादव की भी कम कड़ी परीक्षा नहीं है क्योंकि यहां से वह अपना किसे उम्मीदवार बनाते हैं, ये उनके लिए बड़ी चुनौती है. उनका एक फैसला यहां जीता भी सकता है और हरा भी.

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…तो इसलिए है अखिलेश के लिए कड़ी परीक्षा

बता दें कि सपा के तमाम कद्दावर नेता और साथियों ने हाल ही में अखिलेश का साथ छोड़ दिया है, जिनमें से सुभासपा के ओपी राजभर, महान दल के केशवदेव मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे बड़े चेहरे वाले नेता शामिल हैं. ऐसे में सपा के लिए कड़ी चुनौती है ही, लेकिन अखिलेश यादव भी इससे डरे नहीं हैं. वह लगातार जनता के बीच PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का नारा उछाल रहे हैं और जाति जनगणना को लेकर बड़ा मुद्दा बनाए हुए हैं. हालांकि उनका कभी साथ दे चुके ओपी राजभर उनके इस मुद्दे की हवा ये कहकर निकाल चुके हैं कि जब उनकी सरकार थी जब जाति जनगणना क्यों नहीं कराई. फिलहाल ये देखना है कि अखिलेश का ये मुद्दा घोसी में कितना फिट बैठता है.

सपा के लिए ये भी है चुनौती

सपा जहां पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों के साथ चुनाव में झंडा गाड़ने की प्लानिग कर रही है तो वहीं भाजपा पसमांदा मुसलमानों को लगातार साध रही है. तो वहीं जानकारों की मानें तो यहां 4 लाख 20 हजार मतदाताओं में करीब 85 हजार मुसलमान वोटर्स हैं. तो वहीं यहां पर 70 हजार वोट दलितों का है, 56 हजार वोट यादवों का और राजभर का 52 हजार है. ऐसे में घोसी सीट पर चुनाव के बाद आने वाले नतीजे ही बता सकते हैं कि किसका पलड़ा भारी रहा है. यानी मुसलमान जिसके पक्ष में जाएंगे वही घोसी पर जीत का झंडा गाड़ सकेगा तो वहीं अखिलेश का साथ छोड़ चुके ओम प्रकाश राजभर अब एनडीए में शामिल हो गए हैं, जिससे राजभर वोट एनडीए के खाते में जाने के ही कयास लगाए जा रहे हैं. तो वहीं चुनाव के नतीजे ही बता सकेंगे कि राजभर का साथ किसके लिए फायदेमंद साबित हुआ?

राजभर का साथ छोड़ना भारी न पड़ जाए सपा को

साल 2022 के चुनाव में सपा ने घोसी से दारा सिंह चौहान को उतारा था. उस वक्त ओपी राजभर सपा के साथ थे और दारा सिंह चौहान ने भाजपा को पटखनी देकर चुनाव में जीत हासिल कर ली थी तो वहीं इस बार राजभर सपा का साथ छोड़ चुके हैं. माना जा रहा है कि ओपी राजभर का साथ छोड़ना कहीं सपा को भारी न पड़ जाए तो वहीं आगे के साल का सीट का समीकरण देखें तो साल 2017 के चुनाव में घोसी सीट से भाजपा के फागू चौहान ने जीत का झंडा गाड़ा था और बाद में जब वह राज्यपाल बनाए गए तब इस सीट पर 2019 में उपचुनाव हुए और फिर से भाजपा ने ही जीत का ध्वज बुलंद किया और विजय राजभर विधायक बने. तो वहीं अब इस सीट पर होने जा रहे उपचुनाव की लड़ाई को खासा दिलचस्प माना जा रहा है. सवाल उठ रहे हैं कि अगर भाजपा दारा सिंह चौहान को यहां से उतारती है तो क्या जीत मिल सकेगी तो वहीं सवाल ये भी है कि अखिलेश यहां किसको लाएंगे तो वहीं सवाल ये भी है कि क्या ओपी राजभर का साथ छोड़ने के बाद सपा की साइकिल यहां चल पाएगी? फिलहाल इन सबके सवाल के जबाव चुनाव के नतीजे ही दे सकेंगे.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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