Chandrayaan 3 Mission Isro: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो (ISRO) ने आज शुक्रवार (14 जुलाई) दोपहर को चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया. चंद्रयान-3 अपनी 3.84 लाख किलोमीटर की लंबी यात्रा पर निकल चुका है. उसे चंद्रमा पर पहुंचने में करीब 42 दिन लगेंगे. आज LVM-3 रॉकेट ने चंद्रयान-3 को 179 किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ दिया. अब आगे की यात्रा चंद्रयान-3 खुद करेगा. वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 के स्पेसक्रॉफ्ट में ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ को भेजा है.
चंद्रयान-3 के ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ चांद पर पहुंचने के बाद वहां चांद की सतह का अध्ययन करेंगे. ये चांद की सतह पर मौजूद पानी और खनिजों का पता लगाएंगे. सिर्फ यही नहीं, इनका काम ये भी पता करना है कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं. बता दें कि इसरो ने अपने लैंडर और रोवर को ही ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ नाम दिया है. चंद्रयान-3 का मकसद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है.
कैसे लॉन्च हुआ चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 भारत का तीसरा मून मिशन है. आज इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन सेंटर से दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर लॉन्च किया गया. इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि इसे चांद तक पहुंचने में डेढ़ महीने से ज्यादा का समय लग जाएगा. दरअसल, पृथ्वी से चांद 3 लाख 84 हजार किलोमीटर दूर है, और इसलिए चंद्रयान-3 को वहां पहुंचने में 40 दिन से ज्यादा लगेंगे. चंद्रयान-3 में इस बार ऑर्बिटर नहीं भेजा गया है, बल्कि इस बार स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल भेजा गया है. यह लैंडर और रोवर को चंद्रमा की कक्षा तक लेकर जाएगा.
चांद पर क्या करेंगे ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’
‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ को लेकर गए चंद्रयान-3 का मुख्य मकसद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है. चांद का दक्षिणी ध्रुव, वो जगह जहां आज तक कोई नहीं पहुंच सका. अगर चंद्रयान-3 का ‘विक्रम’ लैंडर वहां सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है, तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा. इतना ही नहीं, चांद की सतह पर लैंडर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा. अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही चांद की सतह पर पहुंच पाए हैं.
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारत का पहले पहुंचना काफी अहम
इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक, 23 या 24 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की सतह पर लैंड कर सकता है. वहां चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका और चीन समेत दुनिया की नजरें भी हैं. चीन ने कुछ साल पहले दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडर उतारा था. इतना ही नहीं, अमेरिका तो अगले साल दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी भी कर रहा है. ऐसे में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारत का पहले पहुंचना काफी अहम है.
पृथ्वी की तरह चांद का दक्षिणी ध्रुव भी बेहद ठंडा है
वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है, वैसे ही चांद का भी है. पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है. पृथ्वी का सबसे ठंडा इलाका. ऐसा ही चांद का दक्षिणी ध्रुव है. सबसे ठंडा. अब तक ये पता चला है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा, तो उसे सूर्य क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा. वो चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता नजर आएगा. क्योंकि, इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा छाया में रहता है. और, सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं. इस कारण यहां तापमान कम होता है.
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