भारतीय सरकार ने बिहार के आरा शहर की रहने वाली सुमित्रा प्रसाद उर्फ रानी साहा को भारतीय नागरिकता प्रदान की है. यह बिहार में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता दिए जाने का पहला मामला है. सुमित्रा, जो पिछले 40 वर्षों से आरा के चित्रा टोली रोड पर रह रही थीं और एक किराने की दुकान चलाती हैं, अब आधिकारिक तौर पर भारतीय नागरिक बन गई हैं.
सुमित्रा प्रसाद 1985 से भारत में वीजा पर रह रही थीं. उनका परिवार बांग्लादेश से भारत आया था. बीते चार दशकों से वह भारतीय नागरिकता पाने का इंतजार कर रही थीं. अब सीएए के प्रावधानों और संबंधित नियमों के तहत उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है.
– सुमित्रा का जन्म बांग्लादेश में हुआ था, लेकिन 1985 में वह अपने परिवार के साथ आरा में आकर बस गईं.
– चित्रा टोली रोड पर उनकी एक किराने की दुकान है, जिसके जरिए वह अपने परिवार का पालन-पोषण करती रही हैं.
– सुमित्रा ने कई सालों तक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
सुमित्रा प्रसाद को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत नागरिकता दी गई है. यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करता है, बशर्ते वे 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हों और धार्मिक उत्पीड़न का शिकार रहे हों.
– सुमित्रा के आवेदन की समीक्षा स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा की गई.
– सभी दस्तावेजों और प्रक्रिया को पूरा करने के बाद उन्हें नागरिकता प्रदान की गई.
सुमित्रा और उनके परिवार ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की है. उनका कहना है कि नागरिकता मिलने से उन्हें अब अपने जीवन में स्थिरता और सुरक्षा का अहसास हुआ है. स्थानीय लोगों ने भी सरकार के इस कदम की सराहना की.
यह मामला बिहार में सीएए के तहत नागरिकता दिए जाने का पहला उदाहरण है. इससे उम्मीद की जा रही है कि अन्य योग्य आवेदकों के मामलों को भी प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाएगा. सीएए को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस और विरोध प्रदर्शन हुए थे. हालांकि, सुमित्रा प्रसाद का मामला दिखाता है कि सीएए के प्रावधान कैसे उन लोगों की मदद कर सकते हैं, जो वर्षों से भारत में रह रहे हैं और नागरिकता के पात्र हैं.
सुमित्रा प्रसाद को भारतीय नागरिकता मिलने से उनके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ है. यह घटना सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त करने के इच्छुक अन्य आवेदकों के लिए भी उम्मीद की किरण है. सरकार ने इसे एक मानवीय पहल के रूप में प्रस्तुत किया है, जो धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को नया जीवन प्रदान करती है.
-भारत एक्सप्रेस
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