दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून की छात्र को स्वास्थ्य आधार पर उपस्थिति में कमी के कारण अपने पाठ्यक्रम के पहले सत्र में फेल हो जाने पर पुनः प्रवेश की अनुमति दी है. छात्र सोरायसिस से पीड़ित होने के कारण उपस्थिति में कमी के कारण अपने पाठ्यक्रम में फेल हो गया था. विश्वविद्यालय ने प्रवेश परीक्षा फिर से देकर पाठ्यक्रम के लिए नए सिरे से आवेदन करने के लिए कहा था.
विश्वविद्यालय के निर्णय को चुनौती देते हुए छात्र ने याचिका दायर की जिसे एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था. हालांकि जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल की खंडपीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय ने वास्तविक कारणों से उपस्थिति मानदंड को पूरा करने में विफल रहने वाले छात्रों के भाग्य को उन छात्रों के साथ मिलाने की गलती की है, जो बिना किसी स्पष्टीकरण के अनुपस्थित रहते हैं.
विश्वविद्यालय ने तर्क दिया था कि अगर छात्र पहले सत्र में निर्धारित उपस्थिति मानदंड को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें अपनी अनुपस्थिति के कारणों की परवाह किए बिना नए सिरे से प्रवेश लेना होगा. पीठ ने इस रुख को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विश्वविद्यालय ने सभी छात्रों के लिए उनकी अनुपस्थिति के कारणों की जांच किए बिना एक समान दृष्टिकोण अपनाया है.
पीठ ने टिप्पणी की यह स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया है, जिसे सभी के लिए एक ही आकार के रूप में वर्णित किया जा सकता है.
पीठ ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने अपने हलफनामे में कहा है कि एक बार जब किसी छात्र को कानूनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश दिया जाता है, तो वास्तविक कारणों से उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहने पर उसका प्रवेश रद्द नहीं किया जाना चाहिए.
विश्वविद्यालय ने यह भी तर्क दिया कि जिस बीमारी से छात्र पीड़ित था, वह संक्रामक नहीं थी और इससे उसे अपने दैनिक कार्यकलापों को करने से नहीं रोका जा सका. इसके विपरीत न्यायालय ने पाया कि सोरायसिस संक्रामक नहीं है, लेकिन यह एक गंभीर बीमारी है जो महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित कर सकती है और मौत का कारण बन सकती है. चूंकि सोरायसिस एक त्वचा रोग है, जो अक्सर विचित्र रूप ले लेता है, इसलिए इससे पीड़ित व्यक्ति को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है.
-भारत एक्सप्रेस
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