Yusuf Pathan: टी20 वर्ल्ड कप 2007 के फाइनल मुकाबले में पाकिस्तान के खिलाफ इंटरनेशनल क्रिकेट में भारत की ओर से डेब्यू करने वाले यूसुफ पठान ने कई मैके पर खुद को ‘बड़े मैचों का खिलाड़ी’ साबित किया है. क्रिकेट की दुनिया में उनके छोटे भाई इरफान पठान ने ज्यादा सुर्खियां बटोरी लेकिन खेल के बाद अब राजनीति के मैदान में यूसुफ ने शानदार आगाज किया है.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले की बहरामपुर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के इस उम्मीदवार ने अनुभवी कांग्रेसी और 5 बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी को 85,022 वोटों से हरा दिया है. यूसुफ ने राजनीति में आने के टीएमसी के प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद कहा था, ‘‘ऊपरवाले का रहम, करम बोलें (इसे भगवान की दया, आशीर्वाद कहें), मुझे हमेशा लगता है कि मैं बड़े मैचों, क्षणों का गवाह बनते रहा हूं.’’
पठान ने कहा था, ‘‘मुझे बस उनके लिए बल्लेबाजी करनी है. मैं राजनेता नहीं बनना चाहता. मैं एक खिलाड़ी की अपनी छवि बरकरार रखना चाहता हूं. लेकिन जीतने के बाद, मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए काम करूंगा और सुनिश्चित करूंगा कि मैं कम से कम महीने में आठ दिन यहां रहूं.’’ क्रिकेट के मैदान में अपने बड़े शॉट के लिए जाने जाने वाले यूसुफ के लिए राजनीति में जाना एक आश्चर्यजनक निर्णय था.
41 साल के इस खिलाड़ी ने हालांकि काफी सोच विचार के बाद टीएमसी सुप्रीमो और बंगला की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रस्ताव स्वीकार किया. ममता के लिए यह रणनीति एक मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ. जब यूसुफ की आईपीएल फ्रेंचाइजी कोलकाता नाइट राइडर्स ने 2012 और 2014 में जीत हासिल की थी, तब दोनों ने टीम के मालिक शाहरुख खान के साथ ईडन गार्डन्स में एक साथ जश्न मनाया था. इस निर्वाचन क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 66 प्रतिशत है और ऐसे में ममता ने पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अधीर रंजन चौधरी को पटखनी देने के लिए यूसुफ को यहां से उम्मीदवार बनाने का फैसला किया.
टीएमसी द्वारा अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने से ठीक एक हफ्ते पहले, ममता ने यूसुफ से संपर्क किया जिन्होंने थोड़ा समय लेने के बाद इसके लिए हामी भर दी. पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने इस राजनीतिक लड़ाई को ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज ब्रेट ली का सामना करने के समान बताया. चौधरी के अलावा यूसुफ को भाजपा के निर्मल चंद्र साहा से भी मुकाबला करना था जो इस क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर हैं.
इस पूर्व ऑलराउंडर ने इसे अपनी लड़ाई के तौर पर लिया और प्रचार के दौरान अक्सर टीएमसी के मंत्र ‘खेला होबे (संघर्ष के लिए तैयार रहना)’ को दोहराते रहे. यह उनके क्रिकेट करियर से स्पष्ट था कि उनका जज्बा कभी हार नहीं मानने वाला रहा है. अपने छोटे भाई की तुलना में, युसूफ ने देर से सफलता हासिल की, लेकिन जब उन्होंने टीम में अपनी जगह बनाई, तो वह हमेशा एक प्रभावशाली खिलाड़ी रहे. ऐसा खिलाड़ी जो अपने दम पर मैच का रुख पलट सकते हो.
टी20 विश्व कप जीत के चार साल बाद यूसुफ उस भारतीय टीम का भी हिस्सा थे जिसने 2011 में एकदिवसीय विश्व कप जीता था. इस जीत के बाद यूसुफ का महान सचिन तेंदुलकर को अपने कंधों पर उठाकर मैदान का चक्कर काटना क्रिकेट प्रशंसकों की स्मृतियों में हमेशा रहेगा. यह हरफनमौला खिलाड़ी उन चुनिंदा क्रिकेटरों में से एक है जिसने टी20 और वनडे दोनों विश्व कप जीते हैं. इसके साथ ही उन्होंने दो अलग-अलग फ्रेंचाइजी के लिए तीन आईपीएल खिताब भी हासिल किया है.
यूसुफ का जन्म 17 नवंबर 1982 को वडोदरा में हुआ था. उनकी क्रिकेट स्टारडम की यात्रा दृढ़ता और समर्पण की कहानी है. शहर की प्रसिद्ध जामा मस्जिद के आसपास हलचल भरे इलाके में पले-बढ़े यूसुफ और उनके छोटे भाई इरफान को कम उम्र से ही जीवन की चुनौतियों और संघर्षों का सामना करना पड़ा. उनके पिता, महमूद खान पठान मस्जिद में मुअज्जिन के रूप में अथक रूप से काम करते थे. मामूली आय के बावजूद महमूद खान ने अपने बच्चों में अनुशासन और विश्वास की मजबूत भावना पैदा की.
क्रिकेट के प्रति पठान बंधुओं का प्रेम जामा मस्जिद के आसपास की तंग गलियों और छोटे मैदानों में पनपा. स्थानीय कोच मेहंदी शेख की नजर जब यूसुफ की आक्रामक बल्लेबाजी पर पड़ी तो उनका करियर क्रिकेट की ओर आगे बढ़ने लगा. यूसुफ की क्षमता से प्रभावित शेख ने उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन के साथ भावनात्मक समर्थन और प्रोत्साहन भी दिया. उनके मार्गदर्शन में यूसुफ ने अपने कौशल, विशेष रूप से अपनी बड़े शॉट खेलने की क्षमता को निखारा, जो बाद में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी पहचान बन गया.
वीरेंद्र सहवाग की कमर में चोट के कारण बड़ौदा के इस खिलाड़ी को पाकिस्तान के खिलाफ टी20 विश्व कप फाइनल (24 सितंबर, 2007) में पदार्पण का मौका मिला. मध्यक्रम में खेलने वाले इस बल्लेबाज ने पारी का आगाज करते हुए आठ गेंद में एक छक्का और एक चौके की मदद से 15 रन बनाये और अपने बेखौफ खेल का नजारा पेश किया. उन्होंने आईपीएल 2010 में मुंबई इंडियंस के खिलाफ 37 गेंद में शतक ठोका, जो इस लीग के सबसे तेज शतकीय पारियों में से एक है.
आईपीएल के 2008 में पहले सत्र के दौरान ही उन्होंने अपने हरफनमौला खेल से अपनी टीम को चैंपियन बनाने में अहम योगदान दिया. उन्होंने 179 की स्ट्राइरेट से 435 रन बनाने के अलावा आठ विकेट भी चटकाये थे. वह 2011 में केकेआर से जुड़े और सात साल तक इस टीम के अहम सदस्य रहे. अब वह अपनी राजनीति पारी का आगाज जीत के साथ कर दिया है.
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-भारत एक्सप्रेस
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