गुजरात में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही सभी राजनीतिक दल सक्रिय हो उठे हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव की जानकारी दी. गुजरात में इस बार भी पिछली बार की तरह दो चरणों में चुनाव होंगे. पहले चरण में 1 दिसंबर को और दूसरे चरण में 5 दिसंबर को वोटिंग होगी. 8 दिसंबर को हिमाचल विधानसभा चुनाव नतीजों के साथ ही गुजरात के नतीजे भी आएंगे. उन्होंने बताया कि गुजरात में इस बार कुल 4.9 करोड़ वोटर्स मतदान में हिस्सा लेंगे. इनमें से 3 लाख 24 हजार 422 नए वोटर हैं.
राज्य में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं. पिछले 24 साल से राज्य में BJP की सरकार है.ऐसे में सबकी नजर इस बार के चुनाव पर टिकी हैं.पहले गुजरात में केवल दो पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला देखने को मिलता था लेकिन हाल ही में पंजाब में जीत हासिल करने के बाद अब आम आदमी पार्टी ने गुजरात में पूरा दम लगा दिया है.बता दें कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में आप ने महज 29 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे. आप का एक ही उम्मीदवार जीत हासिल कर पाया था, लेकिन आप इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरती दिख रही है.
गुजरात में कुल 182 विधानसभा सीटें हैं, और बहुमत के लिए किसी भी दल को 92 सीटों की जरूरत पड़ती है. 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 99 सीटें और कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं थीं. 2 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. अन्य दलों में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2 उम्मीदवार जीते थे. इसके अलावा एक सीट पर एनसीपी ने जीत हासिल की थी.
कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां बीजेपी को पिछली बार पूरे गुजरात में 1 करोड़ 47 लाख से ज्यादा वोट मिले थे तो कांग्रेस को भी 1 करोड़ 25 लाख के करीब वोट मिले थे. पिछले कई चुनावों से बीजेपी से लगातार शिकस्त खा रही कांग्रेस का 2017 में ये काफी दमदार प्रदर्शन माना गया था. ये जरूर है कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकी लेकिन बीजेपी को उसने खतरे का अहसास तो करा ही दिया था.
अब कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार वो किसी न किसी तरह से बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में सफल हो सकती है. और सीटे अन्य के खाते में गई थीं. राज्य की सीटों को क्षेत्रवार देखें तो मध्य गुजरात में 68, सौराष्ट्र एवं कच्छ में 54, उत्तर गुजरात में 32 और दक्षिण गुजरात में 28 सीटें आती हैं. गुजरात में 2017 और 2012 में भी दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुए थे.1995 के बाद से बीजेपी की सीटों में पहली बार इतनी ज्यादा गिरावट देखी गई थी.
गुजरात के इन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को तीसरे कोण के रूप में पेश किया जा रहा है लेकिन आप कितनी असरदार रहेगी, ये अभी भविष्य के गर्त में है. पिछले चुनावों में भी केजरीवाल ने लंबे-चौड़े दावे करके अपने 29 प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उन्हें मिले मतों की संख्या बीटीपी, एनसीपी, बीएसपी और एक अनजान सी पार्टी, राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी (सेकुलर) से भी कम रहे थे.
तीसरा कोण बनाने का दावा इस बार छोटू भाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी का ज्यादा बनता है. पिछली बार उनके दल ने गुजरात में आदिवासी बहुल इलाकों से 2 सीटें जीतने में सफलता पाई थी. इतना ही नहीं, फिर अगले साल राजस्थान के चुनावों में भी उसने 2 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था.
खास बात यह है कि राज्य में 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं और 27 सालों से राज कर रही बीजेपी अगर कहीं कमजोर है तो इन्हीं 27 सीटों पर. पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस उसे इन 27 सीटों पर पीछे छोड़ रही है. पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस इन पर 14 से 16 सीटें जीतती आ रही है. हालांकि इन सीटों पर ही बीटीपी का भी दावा है.
अब बात करते हैं गुजरात में जातीय समीकरण की तो यहां का समीकरण दूसरे राज्यों से अलग है. इसका कारण है कि गुजरात में ओबीसी समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा करीब 52 फीसदी है. पिछड़ा वर्ग में शामिल 146 जातियां-उपजातियां ही तय करती हैं कि राज्य की सत्ता किसके हाथ में रहेगी.
माना जाता है कि राज्य में सबसे प्रभावी पाटीदार बिरादरी यानी कि पटेल समुदाय की हिस्सेदारी 16 फीसदी है, लगभग 16 प्रतिशत संख्या क्षत्रिय वर्ग की और दलितों की संख्या मात्र 7 फीसदी ही है.आदिवासी समुदाय 11 प्रतिशत, मुस्लिम आबादी 9 प्रतिशत हैं. वहीं ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ को मिलाकर कुल 5 प्रतिशत मतदाता हैं.
पाटीदार समाज गुजरात में राजनीतिक तौर पर सबसे ताकतवर समुदाय है, जिसको साधने के लिए हार्दिक पटेल को बीजेपी ने अपने खेमे में मिला लिया है. यही कारण है कि विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक एक साल पहले बीजेपी ने पाटीदार नेता भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया. वहीं अब बड़े नेता हार्दिक पटेल को भी अपने खेमे में शामिल कर लिया है.
यह माना जा सकता है कि आरक्षण की मांग करने वाले पटेल समुदाय से परेशान रही बीजेपी ने अब किसी न किसी तरह से डैमेज कंट्रोल कर लिया है. दूसरी तरफ, विपक्ष के रूप में मजबूत कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से गुजरात को बाहर रखे हैं. ऐसे में कांग्रेस ताकतवर होते हुए भी कुछ खास करती नहीं दिख रही है.
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी इसी शून्य को भरने में लगी दिख रही है. हालांकि अब चुनावों की घोषणा होते ही, कांग्रेस से लेकर अन्य दल भी सक्रिय हो रहे हैं, और आने वाले कुछ समय में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि कौन कितने दम से चुनाव लड़ रहा है और कौन दूसरों का खेल बिगाड़ने जा रहा है.
-भारत एक्सप्रेस
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