दिल्ली हाईकोर्ट ने सीवर और सेप्टिक टैंक सफाईकर्मी को मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में काम करने को लेकर बने कानून एवं नियमों को चुनौती देने मामले में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर आठ सप्ताह में जवाब देने को कहा है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने इसके साथ ही सुनवाई 4 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी.
यह चुनौती सेप्टिक टैंक क्लीनर व दिहाड़ी मजदूर कल्लू ने दी है और उन्होंने हाथ से मैला ढोने की अनुमति देने संबंधी कानून के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि कानून सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग करके सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करने वालों और हाथ से सफाई करने वालों के बीच अनुचित वर्गीकरण करता है.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसके भाई की वर्ष 2017 में लाजपत नगर में सीवर सफाई करते समय मौत हो गई थी. जनिहत याचिका में सरकारों को सीवर सफाई कर्मिंयों का पुनर्वास करने और कानून के तहत उन्हें मैनुअल मैला ढोने वालों को मिलने वाले सभी लाभ दिए जाने की मांग की है.
इसके अलावा याचिका में कानून हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को खत्म करने में विफल रहा है. मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार पर प्रतिबंध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 की कई धाराओं और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन), अनुच्छेद 21 (संरक्षण) का उल्लंघन करने वाले संबंधित नियमों को रद्द करने की मांग की है.
अधिवक्ता पवन के माध्यम से दायर याचिका में कल्लू ने अधिकारियों को सीवर क्लीनर और सेप्टिक टैंक क्लीनर के परिवारों व मानव मल को ले जाने का काम करने वाले लोगों के परिवारों को पुनर्वास एवं अन्य लाभ प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की है.
-भारत एक्सप्रेस
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