दिल्ली हाई कोर्ट (High Court) के आदेश के बावजूद सेंट स्टीफंस कालेज को आनुपातिक संख्या में पीजी सीटें आवंटित न करने को लेकर हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अधिकारियों को प्रथम दृष्टया अवमानना का दोषी माना है. न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने डीयू के रजिस्ट्रार व डीन ऑफ एडमिशन को पेश होकर स्पष्ट करने को कहा है कि क्यों न उसके लिए उन्हें दंडित किया जाए.
न्यायमूर्ति ने ये निर्देश कॉलेज की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है जिसमें पीजी की अनुपातिक संख्या में सीटें आवंटित करने एवं उसके लिए दिशा-निर्देश तय करने की मांग की गई थी. कालेज ने कहा कि उसे अनुपातिक संख्या में सीटें आवंटित करने के बदले डीयू ने जानबूझकर कम सीटें आवंटित की है. जबकि कोर्ट ने उसे अनुपातिक संख्या में सीटें आवंटित करने को कहा था. साथ ही इसको लेकर अभी तक कोई दिशा-निर्देश भी तैयार नहीं किया गया है. यह अदालती आदेश की जानबूझकर अवहेलना है. इसलिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए.
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न्यायमूर्ति ने पाया कि सेंट स्टीफंस कालेज ने जुलाई में डीयू को चयनित छात्रों की सूची दी थी और इसके बाद पीजी पाठय़क्रमों में छात्रों को प्रवेश देने के लिए बार-बार ईमेल व जवाब देने का अनुरोध किया था. लेकिन डीयू के संबंधित अधिकारियों ने इसपर निष्क्रिय रहे. इससे छात्रों का समय पर नामांकन सुश्चित नहीं हो सका. यह छात्रों के भविष्ट के साथ खिलवाड़ है. डीयू के अधिकारी सेंट स्टीफन के प्रबंधन के साथ अपनी निजी शिकायतों को निपटाने के दौरान छात्रों के जीवन से खेल रहे हैं. प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को इस तरह की असंवेदनशीलता दिखाते देखना निराशाजनक है.
-भारत एक्सप्रेस
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