दिल्ली हाईकोर्ट ने एमसीडी आयुक्त को निर्देश दिया है कि वह इस बात की जांच करें कि क्या अमूल या मदर डेयरी जैसी सहकारी संस्था को घोघा डेयरी में संग्रह केंद्र स्थापित करने में शामिल किया जा सकता है, ताकि डेयरी मालिकों को उनके उत्पादित दूध के लिए तैयार उपभोक्ता मिल सके. अदालत ने हाल ही में शहर के अधिकारियों से भलस्वा डेयरी से वहां स्थानांतरित होने के इच्छुक लोगों को घोघा डेयरी कॉलोनी में भूखंडों के शीघ्र आवंटन की योजना पेश करने को कहा था.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ को एमसीडी के वकील ने उत्तर पश्चिमी दिल्ली में घोघा डेयरी का मास्टर प्लान दिखाया. वकील ने कहा कि प्रत्येक भूखंड के लिए लेआउट योजना दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) सदन को प्रस्तुत करने के लिए तैयार की जा रही है और अंतिम योजना 25 अगस्त तक अदालत में दाखिल की जाएगी.
प्रस्तावित मास्टर प्लान में चरागाह क्षेत्र को सहकारी समिति के लिए दैनिक दूध उत्पादन के संग्रह को सक्षम करने के लिए एक क्षेत्र के रूप में भी सीमांकित नहीं किया गया है. पीठ ने एमसीडी के आयुक्त को यह जांचने का निर्देश कि क्या घोघा डेयरी में संग्रह केंद्र स्थापित करने के लिए अमूल या मदर डेयरी जैसे सहकारी या किसी अन्य संगठन को शामिल किया जा सकता है ताकि डेयरी मालिकों को उनके उत्पाद के लिए तैयार उपभोक्ता मिल सके क्योंकि इससे डेयरी कॉलोनी आत्मनिर्भर बन जाएगी.
अदालत भलस्वा डेयरी कॉलोनी के निवासी होने का दावा करने वाले और अधिकारियों द्वारा ध्वस्तीकरण या सीलिंग के निर्देश से व्यथित लोगों द्वारा दायर विभिन्न आवेदनों पर भी विचार कर रही है जिससे वे बेघर हो जाएंगे. आवेदन दिल्ली में नौ नामित डेयरी कॉलोनियों-काकरोला डेयरी, गोयला डेयरी, नांगली, शकरवती डेयरी, झरोदा डेयरी, भलस्वा डेयरी, गाजीपुर डेयरी, शाहबाद दौलतपुर डेयरी, मदनपुर खादर डेयरी और मसूदपुर डेयरी की खराब स्थिति से संबंधित एक लंबित याचिका में दायर किए गए है.
कोर्ट ने कहा कि आवेदनों से ऐसा लगता है कि वर्तमान याचिका का फोकस और इस कोर्ट की मंशा कई लोगों को समझ में नहीं आई है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिका दिल्ली की अगली पीढ़ी के स्वास्थ्य और कल्याण तथा उसके नागरिकों के भोजन चक्र से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की मंशा यह है कि पशुओं के साथ क्रूरता न की जाए और दिल्ली के नागरिकों को पीने के लिए स्वस्थ दूध मिले, न कि दूषित दूध.
कोर्ट ने कहा कि जहरीला कचरा खाने वाली गायें और भैंसें स्वस्थ और पौष्टिक दूध नहीं दे सकतीं. पीठ ने कहा क्या हम शिशुओं को उन गायों का दूध पिला सकते हैं जो भलस्वा लैंडफिल से निकलने वाले जहरीले कचरे को खा रही हैं? इन पशुओं का दूध पूरे शहर में बच्चों के लिए फॉर्मूला दूध बनाने के लिए बेचा जा रहा है और हजारों उपभोक्ताओं के लिए मिठाई आदि जैसे दूध के उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.
इसी संदर्भ में कोर्ट ने सैनिटरी लैंडफिल के बगल में स्थित डेयरियों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है. इस न्यायालय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगली पीढ़ी स्वस्थ हो और जानलेवा बीमारियों से पीड़ित न हो. पीठ ने कहा कि वह यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि दिल्ली सरकार और एमसीडी उस स्थान पर सर्वोत्तम बुनियादी ढांचागत सुविधाएं प्रदान करें जहां डेयरी मालिकों को बसाया जाना है और उनका पुनर्वास किया जाना है, जिसमें चरागाह क्षेत्र, बायोगैस संयंत्र, सीवेज और जल निकासी सुविधा, पशु चिकित्सालय और पूरी तरह से एकीकृत दूध संयंत्र प्रदान करना शामिल है.
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-भारत एक्सप्रेस
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