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उत्तराखंड में “कंकालों की झील” का जानिए रहस्य, 1000 साल पहले क्या हुआ था? 80 सालों से खोज में जुटे हैं दुनिया भर के साइंटिस्ट

हिमालय में समुद्र तल से 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक झील. जिसे रूपकुंड के नाम से जाना जाता है. लेकिन, इस झील को इस नाम के बजाय ‘कंकालों की झील’ के नाम से ज्यादा जाना जाता है. पूरी दुनिया में लोग इसे ‘Lake of Skeleton’ के नाम से जानते हैं. इस झील में 600 से 800 के बीच इंसानों की हड्डियों और उनके अवशेष बरामद किए जा चुके हैं. इतने बड़े पैमाने पर इंसानी हड्डियों का मिलना बेहद ही चौंकाने वाली घटना थी. क्योंकि, मौसम के हिसाब से काफी विपरीत परिस्थिति वाले इस स्थान पर भला इतनी संख्या में मानव कंकाल कैसे पहुंचे? क्या इस स्थान पर कोई सामूहिक नरसंहार हुआ था? क्या ये सभी लोग तीर्थ यात्री थे जो रास्ते में किसी प्राकृतिक आपदा के शिकार हो गए? या फिर किसी अनुष्ठान में इन लोगों ने खुद की बलि दे दी. ऐसे सवालों से दुनिया भर के वैज्ञानिक जूझ रहे हैं. इनमें से कुछ हद तक सवालों के जवाब तलाशे जा चुके हैं. अभी तक इस झील को लेकर वैज्ञानिकों की रिसर्च में क्या-क्या बातें सामने आई हैं. वो हम आपको एक-एक करके बताएंगे.

रूपकुंड झील

रूपकुंड झील में मानव कंकालों के बारे में जानने से पहले आप इसके बारे में जान लीजिए. दरअसल, यह झील हिमालय की तीन चोटियां के बीच स्थित है और यह चोटियां त्रिशूल जैसी दिखती हैं जिसके कारण इन्हें त्रिशूल के नाम से जाना जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है. इस झील की खोज साल 1942 में एक ब्रिटिश फ़ॉरेस्ट रेंजर द्वारा की गई थी. ब्रिटिश फॉरेस्ट रेंजर जब यहां पहुंचा तो वह भारी संख्या में मानव कंकालों को देखकर दंग रह गया और फिर यहीं से शुरू हुई इसके रहस्य से पर्दा उठाने की जद्दो-जहद. हालांकि, आज भी उत्तराखंड सरकार रूपकुंड को पर्यटन के लिहाज से इसे “रहस्यमय झील” के रूप में प्रचारित करती है.

कई रहस्य, कई सवाल, कई जवाब

एक कहानी के मुताबिक, कहा जाता है कि यह मानव कंकाल एक भारतीय राजा, उसकी पत्नी, और उनके सेवकों के हैं. जो की आज से 870 साल पहले एक बर्फ़ीले तूफान का शिकार हो गए होंगे और यहीं दफ़न रह गए. कुछ कहानियों के अनुसार, झील में हड्डियां सैनिकों की हैं. ये सैनिक भारत से तिब्बत पर 1841 में कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन, उनकी जबरदस्त हार हुई. किवंदतियों के मुताबिक तब 70 से ज्यादा सैनिकों को हिमालय की पहाड़ियों से वापस लौटना पड़ा था और रास्ते में ही उनकी मौत हो गई. हालांकि, एक और कहानी है कि यहां एक कब्रगाह था, जहां पर महामारी में मारे गए लोगों को सामूहिक तौर पर दफनाया गया था. लेकिन, ये सारी कहानियों रिसर्च के पैमाने पर फेल रही हैं. क्योंकि, हड्डियों की कार्बन डेटिंग से पता चला कि ये तकरीबन 1000 से 1200 साल पुरानी हैं. साथ ही इनके सैनिक नहीं होने का पुख्ता सबूत ये मिला कि इनके आसपास से सैनिकों वाले कोई कवच या हथियार नहीं मिले हैं. लिहाजा, 1841 में सैन्य अभियान के दौरान सैनिकों की मौत की पुष्टि इस हिसाब से नहीं हो पाती.

वहीं, महामारी मारे गए लोगों की जहां तक बात है, तो जानकारों का मानना है कि आखिर इतनी ऊंचाई पर भला लोग क्यों दफनाने पहुंचेंगे. हड्डियां जिस कालखंड की हैं, उस दौर में इस इलाके में किसी तरह के गांव या बसावट का जिक्र नहीं मिलता. साथ ही यह झील किसी व्यापारिक मार्ग में भी नहीं था. जिससे यह अंदाजा लगाया जा सके कि यहां से गुजरते वक्त लोगों का समूह इसका शिकार हो गया होगा.

क्या कहती है ताजा रिसर्च

ताजा रिसर्च के मुताबिक कुछ चौंकाने लेकिन उलझाने वाली बातें सामने आई हैं. वैज्ञानिकों ने झील में मिले 38 इंसानी अवशेषों का कार्बन डेटिंग के आधार पर अध्ययन किया है. तब इन 38 में से 15 महिलाओं के अवशेष मिले हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, इनमें से कुछ कंकाल 1,200 साल पहले के हैं और इनके मौतों के बीच साल तक का अंतर काफी है. इसका मतलब ये है कि इन सभी की मौत एक साथ नहीं हुई है. अलग-अलग समय में यहां पर मौतें हुई हैं. सबसे बड़ी जानकारी तो ये है कि ये लोग जेनेटिक रूप से भी अलग-अलग हैं. यानी कि ये किसी एक समुदाय या डिमोग्राफी से संबंध नहीं रखते थे.

अध्ययन के प्रमुख लेखक और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के छात्र इड्वॉन हार्नी ने बीबीसी के साथ बातचीत में बताया है, “यह कहा नहीं जा सकता की रूपकुंड झील पर क्या हुआ होगा. लेकिन कंकालों को लेकर यह कहा जा सकता हैं कि ये सभी मौतें किसी एक घटना में नहीं हुई हैं.”

क्या यूरोप के लोग यहा आए थे?

सबसे ज्यादा दिलचस्प बात तो यह है कि जेनेटिक स्टडी से पता चला है कि मृतकों में विविध मूल के लोग शामिल थे. स्टडी में पता चला कि एक समूह के लोगों का जेनेटिक्स मौजूदा वक्त में भारत और पाकिस्तान में रहने वाले लोगों से मिलता हैं, जबकि दूसरी ओर कुछ लोगों के जेनेटिक्स यूरोप के लोगों से मिलते-जुलते हैं. हार्न ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया है कि हडियों के अवशेषों के रिसर्च से पता चला है कि कुछ लोग इंडियन सब-कॉन्टिनेंट जबकि कुछ यूरोप के ग्रीस से ताल्लुक रखने वाले हैं.

अब यहां सवाल और गहरा हो जाता है कि फिर जेनेटिक रूप से इतनी विवधधा रखने वाले लोग इस ऊंचाई वाली जगह पर क्या करने आए थे. हालांकि, प्राचीन इतिहास के नजरिए से देखें तो भारत (India) और यूनान (Greece) के बीच सामाजिक और आर्थिक मेल-मिलाप रहे हैं. ऐसे में हो सकता है कि किसी कर्मकांड को लेकर ये ग्रुप यहां समय-समय पर पहुंचता हो और यहां पर कोई बड़ा या छोटे अनुष्ठान होते रहे हैं. क्योंकि, यहां पर मौतों का समय काफी सालों के अंतर के बीच होता रहा है.  यह भी माना जा रहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में दो या तीन पीढ़ी पहले के लोग यहां आकर बसे हों और उनकी संतानें यहां के समाज और मान्यताओं के साथ घुल-मिल गई हो. फिर उन्हीं पीढ़ी के लोग तत्कालीन समाज के मूल्यों के अनुरूप किसी अनुष्ठान में हिस्सा लेते रहे हों.

हालांकि, इस झील के रहस्य अभी तक बरकरार हैं. हड्डियों की कार्बन डेटिंग से कई रहस्यों से पर्दा तो उठा है. लेकिन, रूपकुंड में ऐसा क्या कुछ हुआ था, वो रहस्य आज भी कायम है.

-भारत एक्सप्रेस

Satwik Sharma

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