राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने कृत्रिम प्रकाश (एएलएएन) के वनस्पतियों, जीवों और मनुष्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जवाब मांगा है. यह आदेश NGT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की पीठ ने दिया.
कृत्रिम प्रकाश का प्रभाव, स्वास्थ्य संकट
NGT ने यह आदेश प्रो-बोनो पर्यावरण संगठन, पंचतत्व फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया. इस याचिका में कृत्रिम प्रकाश के प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं पर पड़ने वाले घातक प्रभावों के बारे में चिंता जताई गई. आवेदन में कहा गया है कि एएलएएन मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जैसे नींद में खलल और अन्य शारीरिक समस्याएं. इसके अलावा, यह रात्रिचर वन्यजीवों के व्यवहार में भी असामान्यता पैदा करता है और पौधों के प्रकाश संश्लेषण में कमी कर सकता है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि भारत में कृत्रिम प्रकाश के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस नियामक ढांचा मौजूद नहीं है, जिसके कारण प्रकाश प्रदूषण बढ़ रहा है. इससे पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो रहा है. NGT ने सरकार से इस मुद्दे पर गंभीर कदम उठाने की अपेक्षा की है और अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे 17 अप्रैल से पहले हलफनामे के माध्यम से जवाब दें.
NGT ने यह स्पष्ट किया कि कृत्रिम प्रकाश के प्रभावों से संबंधित मामलों को पहले भी उठाया गया था, और अब यह जरूरी है कि इसके समाधान के लिए कदम उठाए जाएं.
सरकार से अपेक्षा की गई है कि वह इन गंभीर मुद्दों पर 17 अप्रैल से पहले उचित जवाब प्रस्तुत करे और इस दिशा में निर्णायक कदम उठाए.
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