PM Modi on MS Swaminathan: पीएम मोदी ने पिछले सप्ताह हुए एमस एस स्वामीनाथन के निधन पर शोक जाहिर किया है. इस दौरान उन्होंने उन पर एक लेख भी लिखा. पीएम मोदी ने अपने इस लेख में कहा कि कुछ दिन पहले हमने प्रोफेसर एम.एस. को खो दिया. स्वामीनाथन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंन देश में कृषि विज्ञान में क्रांति ला दी थी. मोदी ने कहा कि उनका योगदान हमेशा ही स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा.
मोदी ने कहा कि प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन भारत से प्यार करते थे और चाहते थे कि हमारा देश और विशेषकर हमारे किसान समृद्धि का जीवन जिएं. अकादमिक रूप से प्रतिभाशाली स्वामीनाथन कोई और करियर भी चुन सकते थे लेकिन वे 1943 के बंगाल से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्हें अब केवल कृषि का ही अध्ययन करना है.
मोदी ने अपने आर्टिकल में कहा कि स्वामीनाथन कम उम्र में ही डॉ. नॉर्मन बोरलॉग के संपर्क में आए और उनके काम का विस्तार से अनुसरण किया. 1950 के दशक में. उन्हें अमेरिका में एक संकाय पद की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह भारत में और भारत के लिए काम करना चाहते थे, जो कि आज के वक्त के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं.
मोदी ने कहा, मैं चाहता हूं कि आप सभी उन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बारे में सोचें जिनमें वह एक महान व्यक्ति के रूप में खड़े रहे और हमारे देश को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के मार्ग पर ले गए. आज़ादी के बाद पहले दो दशकों में, हम भारी चुनौतियों से जूझ रहे थे और उनमें से एक थी भोजन की कमी. 1960 के दशक की शुरुआत में, भारत अकाल की अशुभ छाया से जूझ रहा था और तभी प्रोफेसर स्वामीनाथन की दृढ़ प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने कृषि समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत की.
पीएम मोदी ने अपने लेख में कहा कि कृषि और गेहूं प्रजनन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उनके अग्रणी काम से गेहूं उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत भोजन की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर राष्ट्र में बदल गया. इस जबरदस्त उपलब्धि ने उन्हें “भारतीय हरित क्रांति के जनक” की सुयोग्य उपाधि दिलाई.
पीएम मोदी ने कहा कि हरित क्रांति ने भारत की ” हम भी कर सकते हैं वाली भावना” की एक झलक पेश की. पीएम ने हरित क्रांति का जिक्र करते हुए कहा कि अगर हमारे पास एक अरब चुनौतियां हैं, तो हमारे पास उन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए नवाचार की लौ के साथ एक अरब दिमाग भी हैं. हरित क्रांति शुरू होने के पांच दशक बाद, भारतीय कृषि कहीं अधिक आधुनिक और प्रगतिशील हो गई है. लेकिन, प्रोफेसर स्वामीनाथन द्वारा रखी गई नींव को कभी नहीं भुलाया जा सकता.
हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन के साथ अपनी पर्सनल बातचीत का जिक्र करते हुए कहा कि मेरी उनसे बातचीत की शुरुआत 2001 में मेरे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद हुई. उन दिनों, गुजरात अपनी कृषि क्षमता के लिए नहीं जाना जाता था. लगातार सूखे, सुपर चक्रवात और भूकंप ने राज्य के विकास पथ को प्रभावित किया है. हमारे द्वारा शुरू की गई कई पहलों में से एक मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी था, जिसने हमें मिट्टी को बेहतर ढंग से समझने और यदि कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उसका समाधान करने में सक्षम बनाया.
मोदी ने बताया कि गुजरात की इसी योजना के सिलसिले में मेरी मुलाकात प्रोफेसर स्वामीनाथन से हुई. उन्होंने इस योजना की सराहना की और इसके लिए अपने बहुमूल्य सुझाव भी साझा किये. उनका समर्थन उन लोगों को समझाने के लिए पर्याप्त था जो इस योजना के बारे में संशय में थे जो अंततः गुजरात की कृषि सफलता के लिए मंच तैयार करेगी.
प्रोफेसर एम.एस. के बारे में बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि एक और पहलू यह भी है कि वह नवाचार और परामर्श के प्रतिमान के रूप में हमेशा तैयार रहते थे. जब उन्होंने 1987 में विश्व खाद्य पुरस्कार जीता, तो वह इस प्रतिष्ठित सम्मान के पहले प्राप्तकर्ता थे, उन्होंने पुरस्कार राशि का उपयोग एक गैर-लाभकारी अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना के लिए किया. आज तक, यह विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक कार्य करता है. उन्होंने अनगिनत लोगों को ज्ञान का भी पोषण दिया है.
पीएम ने कहा कि वह एक संस्थान निर्माता भी थे, उनके नाम कई केंद्र थे जहां जीवंत अनुसंधान होता था. उनका एक कार्यकाल अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, मनीला के निदेशक के रूप में था. अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र 2018 में वाराणसी में खोला गया था.
-भारत एक्सप्रेस
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