Rajasthan Election: राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस और भाजपा सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति अपनाई हैं. दोनों पार्टियों ने दो-दो लिस्ट जारी की हैं और बीजेपी ने जहां 124 उम्मीदवारों को टिकट जारी किए हैं, वहीं कांग्रेस ने 95 सीटों पर टिकट दिए हैं. टिकट वितरण में सोशल इंजीनियरिंग साफ नजर आ रही है क्योंकि दोनों पार्टियों ने लगभग हर प्रमुख समुदाय के प्रतिनिधियों को शामिल कर उन्हें लुभाने की कोशिश की है. टिकट बंटवारे के दौरान व्यक्तिगत वोट खींचने की कोशिश हुई है. राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक दोनों पार्टियों की ओर से जाट समुदाय को ज्यादा महत्व दिया गया है.
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की सूची में जाट समुदाय को सबसे अधिक महत्व दिया गया है. राजस्थान में अब तक बीजेपी ने 21 जाट नेताओं को टिकट दिए हैं. वहीं कांग्रेस ने भी 15 नेताओं को मैदान में उतारे हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों ही पार्टियों की आने वाली सूचियों में जाट नेताओं का दबदबा रहने की उम्मीद है. आंकड़ों के मुताबिक, हर चुनाव में करीब 35 विधायक जाट समुदाय से ही चुने जाते हैं.
वहीं अगर बात ब्राह्मण और वैश्य की करें तो भाजपा ने 16 उम्मीदवारों को दोनों समुदाय से टिकट दिए हैं. कांग्रेस ने भी 11 नेताओं को टिकट दिया है. हालांकि, कांग्रेस की करीब 100 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार घोषित होने बाकी हैं. ऐसे में भविष्य में इन समुदायों के टिकट बढ़ सकते हैं. भाजपा ने राज्य में एक भी मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया है. वहीं कांग्रेस ने 6 उम्मीदवारों को रण में उतारा है.
बता दें कि गुर्जर को टिकट देने के मामले में दोनों ही पार्टी बराबर है. अबतक बीजेपी ने 5 तो कांग्रेस ने 4 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. दोनों पार्टियों ने सांगानेर (जयपुर), बीकानेर पश्चिम और केकड़ी सीटों से ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया है. मालवीय नगर में, भाजपा ने वैश्य समुदाय के चेहरे कालीचरण सराफ को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने अर्चना शर्मा को मैदान में उतारकर ब्राह्मण चेहरे पर अपना दांव लगाया है.
ब्राह्मण नाथद्वारा में सबसे ज्यादा हैं, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार कद्दावर नेता सीपी जोशी हैं, जबकि भाजपा ने पूर्व मेवाड़ शाही परिवार के विश्वराज सिंह मेवाड़ को टिकट दिया है. महाराणा प्रताप से जुड़ी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, भाजपा ने मेवाड़ की इस महत्वपूर्ण सीट से एक राजपूत चेहरे को मैदान में उतारा है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि सभी सीटों पर टिकट देने का मुख्य आधार जाति है. पार्टियां क्षेत्र के जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही टिकट देती हैं. लेकिन कभी-कभी एक परिवार का प्रभाव या ध्रुवीकरण भी महत्वपूर्ण कारक होते हैं. कई बार जातिगत आधार न होने के बावजूद किसी नेता को क्षेत्र में उसके परिवार के प्रभाव के कारण टिकट मिल जाता है. इसी आधार पर नेता भी चुनाव जीतते हैं.”
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