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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बारे में कुछ तथ्य, जिन्हें आपको जानना चाहिए

दुनिया के शुरुआती केंद्रीय बैंकों की स्थापना मुख्य तौर पर अपनी सरकारों की वित्तीय ताकत को बढ़ाने के लिए किया गया था. इसी कड़ी में अपने देश में भारतीय रिजर्व बैंक​ (RBI) की शुरुआत की गई थी. आज 1 अप्रैल को आरबीआई का स्थापना दिवस है. इस अवसर पर हम इस बैंक के इतिहास और कुछ तथ्यों को आपके सामने रख रहे हैं.

RBI देश का केंद्रीय बैंक है, जो बैंक नोटों को रेगुलेट करने, मौद्रिक स्थिरता (Monetary Stability) बनाए रखने और देश की क्रेडिट और मुद्रा प्रणाली के संचालन के लिए जिम्मेदार होता है. आरबीआई भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर कृषि, उद्योग और वित्त के क्षेत्र में.

कब हुई स्थापना

रिजर्व बैंक की स्थापना के लिए कानून पहली बार जनवरी 1927 में पेश किया गया था, हालांकि लगभग सात साल बाद मार्च 1934 में यह पारित किया जा सका था. इसके बाद Hilton Young Commission की सिफारिशों और आरबीआई अधिनियम, 1934 के तहत 1 अप्रैल, 1935 को भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई की स्थापना की गई थी. यह अधिनियम इस बैंक के कामकाज को वैधानिक आधार प्रदान करता है.

हालांकि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि ‘केंद्रीय बैंकिंग’ शब्द की उत्पत्ति कब हुई, लेकिन इतिहास से पता चलता है कि केंद्रीय बैंक के दो सबसे पुराने कार्य ‘नोट जारी करना’ और ‘सरकार के लिए बैंकर’ के रूप में कार्य करना था. आरबीआई शुरू में एक निजी शेयरधारक का बैंक था, लेकिन भारत की आजादी के बाद 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था.

RBI से पहले SBI

आरबीआई से पहले इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया (IBI) अस्तित्व में हुआ करता था. उस दौर में भारत पर अंग्रेजों का राज हुआ करता था. 1935 में RBI के गठन से पहले भारत के लिए IBI ही केंद्रीय बैंक की तरह कार्य करता था. यह भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंकों में से एक था. आजादी मिलने के बाद 1955 में इसका नाम बदलकर भारतीय स्टेट बैंक (SBI) कर दिया गया था.

The Imperial Bank of India ने वे सभी सामान्य कार्य किए, जो एक वाणिज्यिक बैंक से करने की अपेक्षा की जाती है. 1935 तक भारत में किसी भी केंद्रीय बैंकिंग संस्थान की अनुपस्थिति में इस बैंक ने भी कई कार्य किए, जो आम तौर पर एक केंद्रीय बैंक द्वारा किए जाते हैं. भारत के पहले केंद्रीय बैंक RBI ने 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया में एक नियंत्रित हित हासिल किया था. इंपीरियल बैंक के SBI में बदलाव को भारत की संसद के एक अधिनियम के माध्यम से कानूनी मान्यता दी गई, जो 1 जुलाई 1955 से लागू हुआ था.

क्यों किया गया था गठन

* बैंक नोटों के मुद्दे को रेगुलेट करने के लिए.

* मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करने की दृष्टि से सरकारी खजाने को बनाए रखने के लिए.

* देश की ऋण एवं मुद्रा प्रणाली को अपने लाभ के लिए संचालित करने के लिए.

कभी पाकिस्तान-म्यांमार का भी बैंक था

शुरुआत में RBI ने सरकार से मुद्रा नियंत्रक द्वारा किए जाने वाले कार्यों और इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया से सरकारी खातों और सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन को अपने हाथ में लेकर अपना परिचालन शुरू किया था. कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, रंगून (वर्तमान म्यांमार की पूर्व राजधानी), कराची, लाहौर और कानपुर में मौजूदा मुद्रा कार्यालय (Currency Offices), निर्गम विभाग (Issue Department) की शाखाएं बन गए. बैंकिंग विभाग के कार्यालय कलकत्ता, बंबई, मद्रास, दिल्ली और रंगून में स्थापित किए गए.

आरबीआई ने 1947 तक बर्मा (म्यांमार) और 1948 तक पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के रूप में भी कार्य किया था. बर्मा (म्यांमार) 1937 में भारतीय संघ से अलग हो गया, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने बर्मा पर जापानी कब्जे और बाद में अप्रैल 1947 तक इस देश के लिए केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य करना जारी रखा. भारत के विभाजन के बाद रिजर्व बैंक ने जून 1948 में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के परिचालन शुरू करने तक पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य किया था.

भूमिका महत्वपूर्ण

RBI ने संस्थागत विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. देश की वित्तीय बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया, नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट, डिस्काउंट एंड फाइनेंस हाउस ऑफ इंडिया जैसे संस्थानों की स्थापना में भी इसने मदद की थी.

उदारीकरण के साथ बैंक का ध्यान मौद्रिक नीति, बैंक पर्यवेक्षण और विनियमन, भुगतान प्रणाली की देखरेख और वित्तीय बाजारों को विकसित करने जैसे मुख्य केंद्रीय बैंकिंग कार्यों पर वापस स्थानांतरित हो गया था.

RBI के पहले गर्वनर

प्रमुख अर्थशास्त्रियों, नीति निर्माताओं और वित्तीय विशेषज्ञ आदि को आरबीआई का गवर्नर बनाने में तरजीह दी जाती है. इन गवर्नरों ने भारत की मौद्रिक नीति और वित्तीय प्रणाली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

आरबीआई के पहले गवर्नर सर ऑसबोर्न स्मिथ (Sir Osborne Smith) थे. वह एक पेशेवर बैंकर थे. उन्होंने 1926 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध गवर्नर के रूप में काम करने के लिए भारत आने से पहले बैंक ऑफ न्यू साउथ वेल्स में 20 से अधिक वर्षों तक और कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया में 10 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी थीं.

इंपीरियल बैंक के उनके नेतृत्व ने उन्हें भारत में बैंकिंग क्षेत्रों में पहचान दिलाई. हालांकि, विनिमय दरों और ब्याज दरों जैसे नीतिगत मुद्दों पर उनका दृष्टिकोण सरकार से भिन्न था. उन्होंने साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, सर ऑसबोर्न ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी बैंक नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए. उनका कार्यकाल 1 अप्रैल 1935 से 30 जून 1937 तक​ था.

RBI के पहले भारतीय गवर्नर

भारतीय सिविल सेवा के सदस्य सर चिंतामन द्वारकानाथ देशमुख (Sir CD Deshmukh) बैंक के पहले भारतीय गवर्नर थे. बैंक के साथ उनका जुड़ाव 1939 में शुरू हुआ, जब उन्हें सरकार का संपर्क अधिकारी नियुक्त किया गया था. सर देशमुख आरबीआई के तीसरे गवर्नर थे. उनसे पहले सर जेम्स टेलर ने 1 सितंबर 1937 से 17 फरवरी 1943 तक आरबीआई के दूसरे गवर्नर के रूप में काम किया था.

बाद में सर देशमुख ने सचिव के रूप में और उसके बाद 1941 में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के रूप में कार्य किया. दूसरे गवर्नर जेम्स टेलर के निधन के बाद उन्होंने बैंक का नेतृत्व संभाला और अगस्त 1943 में उन्हें गवर्नर नियुक्त किया गया.

गवर्नर के रूप में उनका कार्यकाल 11 अगस्त 1943 से 30 जून 1949 तक था. उनके कार्यकाल के दौरान ही देश को आजादी मिलने के साथ इसका विभाजन भी हुआ था. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 1944 में ब्रेटन वुड्स वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. साथ ही देश की आजादी और विभाजन के बाद भारत तथा पाकिस्तान के बीच रिजर्व बैंक की संपत्ति और देनदारियों का बंटवारा भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था.

आरबीआई का लोगो

मुद्रा नोटों, चेकों और प्रकाशनों पर बैंक के प्रतीक के रूप में उपयोग की जाने वाली RBI की सामान्य मुहर का चयन एक ऐसा मुद्दा था, जिसे बैंक के गठन के प्रारंभिक चरण में उठाया जाना था. इसके लिए विभिन्न मुहरों, पदकों और सिक्कों की जांच की गई. इसके बाद शेर और ताड़ के पेड़ के रेखाचित्र के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी डबल मुहर को सबसे उपयुक्त पाया गया; हालांकि, शेर के स्थान पर बाघ को जगह देने का निर्णय लिया गया, क्योंकि शेर को भारत का अधिक विशिष्ट जानवर माना जाता है!

बैंक के शेयर प्रमाण-पत्रों पर मुहर लगाने के संबंध में तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह कार्य मद्रास की एक फर्म को सौंपा गया था. बोर्ड ने 23 फरवरी 1935 को अपनी बैठक में सील के डिजाइन को मंजूरी दे दी, लेकिन जानवर की उपस्थिति में सुधार की इच्छा जताई.

दुर्भाग्य से उस स्तर पर कोई बड़ा परिवर्तन करना संभव नहीं था. लेकिन डिप्टी गवर्नर सर जेम्स टेलर इससे संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने भारत सरकार की टकसाल और सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस, नासिक द्वारा नए रेखाचित्र तैयार कराने में गहरी रुचि ली. अच्छे डिजाइन के आधार के रूप में उन्होंने कलकत्ता के बेल्वेडियर में प्रवेश द्वार पर बाघ की मूर्ति की तस्वीर लेने की व्यवस्था की.

अंतत: बाघ और ताड़ के पेड़ के रेखाचित्र के साथ हिंदी और अंग्रेजी में ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ लिखे हुए लोगो का प्रयोग बैंक के नोटों, लेटर-हेड्स, चेक और बैंक द्वारा जारी प्रकाशनों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. यह लोगो आरबीआई की ताकत और स्थिरता का प्रतीक है.

-भारत एक्सप्रेस

Prashant Verma

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