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सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वापस लेने की दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वापस लेने की मंजूरी दे दिया है. बेंच की अध्यक्षता जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और पंकज मिथल कर रही थी याचिकाओं पर सुनवाई. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएं वापस लेने की अनुमति देते हुए याचिकाकर्ताओं पर उचित उपाय करने की छूट प्रदान की. साथ ही मौखिक रूप से राज्य को 2 सप्ताह तक कोई कार्रवाई न करने के लिए कहा है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस आतंकवाद रोधी कानून को चुनौती देने वाले झूठे मुकदमों पर सुनवाई की अनुमति नहीं दी जाएगी. अदालत ने कहा कि वह केवल उन्हीं लोगों की अधिनियम की शक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जो व्यक्तिगत रूप से इससे पीड़ित हैं.

याचिकाओं पर न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठसुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी से पीठ ने कहा कि केवल निजी रूप से प्रभावित लोग ही कानून की संवैधानिकता को चुनौती दे सकते हैं. वही व्यक्ति इस अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दे सकता है जो पीड़ित हो और जिसके अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो. तभी इस विधायी प्रावधान की शक्ति को चुनौती देने का सवाल उठ सकता है.

अहमदी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यूएपीए के प्रावधानों को खारिज कर दिया है. यह कानून आतंकवाद, आतंकवादी गतिविधियों जैसे शब्दों को परिभाषित करता है और किसी इकाई को आतंकवादी संगठन केरूप में नामित करने की केंद्र की शक्ति को परिभाषित करता है. सीनीयर वकील ने कहा कि लोगों और संगठन बनाने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानून की शक्ति को चुनौती देने के लिए जनहित याचिकाएं दायर कर सकते हैं.

क्या यह झूठी मुकदमेबाजी नहीं होगी?

इसके बाद न्यायमूर्ति मित्तल ने कहा, क्या यह झूठी मुकदमेबाजी नहीं होगी? जनहित याचिका के मामलों में लोकस स्टैंडी का सिद्धांत सही मायनों में लागू नहीं हो सकता है. हालांकि, जहां एक कानून की शक्ति को चुनौती दी जाती है, वहां उसमें भागीदारी की एक झलक होनी चाहिए. नहीं तो अन्य लोगों की ओर से झूठे मुकदमे होंगे, जो आगे नहीं आना चाहते हैं. इसकी अनुमति नहीं होगी. हमें इस तरह के झूठे मुकदमे की अनुमति देने के बारे में सावधान रहना होगा. लोकस स्टैंडी कानून में एक स्थिति है, जिसके तहत कानूनी उपाय चाहने वाले पक्ष को अदालत को यह दिखाना होता है कि मामले में उस पार्टी की भागीदारी का समर्थन करने के लिए कानून को दी गई चुनौती से उनका पर्याप्त संबंध है और उनका नुकसान है.

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वहीं इसके बाद अहमदी ने जवाब दिया कि आखिरकार कानून के सवाल को अदालत को ही देखना होगा. पीठ ने अहमदी को इस मामले में आगे सुनने से मना कर दिया. पीठ ने उनसे कहा कि वह बाद में इस मुद्दे पर अदालत की मदद करें. पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा कि वे आगे आएं और अपने मामलों की दलीलें सामने रखें.

Rohit Rai

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