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उमेंद्र दत्त: पंजाब में कीटनाशकों के खिलाफ अभियान चलाकर प्राकृतिक खेती को दिया बढ़ावा

Krishi Express: कभी हरित क्रांति के अगुआ के रूप में जिस राज्य की पूरे देश में जय-जयकार होती थी, आज वहां की आबोहवा में बेचैनी है. पंजाब में जिस तरीके से कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए लोग चिंतित हैं. हालात ऐसे हैं कि यहां के कैंसर मरीज ट्रेनों में भरकर आस-पास के राज्यों में इलाज के लिए जाते हैं.

बठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक पैसेन्जर ट्रेन का तो नाम ही कैंसर ट्रेन हो गया है क्योंकि इसके यात्रियों में अधिकतर कैंसर के मरीज होते हैं जो बीकानेर में सस्ते इलाज के लिए जाते हैं. बात कैंसर तक ही सीमित नहीं है. पंजाब में छोटी-बड़ी कई बीमारियों का प्रकोप फैलता जा रहा है.

कीटनाशक बना अभिशाप

पंजाब के किसानों को नहीं पता था कि जिस रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों को वे एक वरदान के रूप में स्वीकार कर रहे हैं, वही एक दिन उनके लिए अभिशाप बन जाएगा. किसानों को बेशक पता न हो, लेकिन पंजाब में क्या हो रहा है, इसका एहसास 90 के दशक में ही कई लोगों को हो गया था. इनमें से एक थे स्वदेशी पत्रिका के कार्यकारी संपादक उमेंद्र दत्त. उन्हें ऐसी तमाम जानकारियां मिलीं जिन्होंने उन्हें अंदर से झकझोर दिया.

उमेंद्र दत्त को 1996 में ही एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली जिसमें बताया गया था कि आज जिन रसायनों का इस्तेमाल कीटनाशकों के तौर पर हो रहा है, उन्हें अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के दौरान रासायनिक हथियार के तौर पर विकसित किया था. कुछ मामूली परिवर्तन के साथ कृषि क्षेत्र में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसे किसानों में बेचना शुरू कर दिया.

डराते हैं आंकड़े

देश भर में औसतन 131 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल किए जा रहे हैं लेकिन पंजाब में यह लगभग तीन गुना अर्थात 380 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. कीटनाशकों के मामले में भी पंजाब के आंकड़े डराते हैं. यहां प्रति हेक्टेयर 923 ग्राम कीटनाशकों का प्रयोग होता है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 570 ग्राम प्रति हेक्टेयर है.

धीरे-धीरे उमेंद्र दत्त को समझ आया कि पंजाब की इस समस्या का निदान प्राकृतिक खेती में है. लेकिन उनके इस निष्कर्ष को कोई सुनने के लिए भी तैयार नहीं था, उस पर अमल करना तो दूर की बात है. लोगों ने उनकी समझ पर सवाल उठाए, शंका की, मजाक उड़ाया और आरोप भी लगाए. उन्हें CIA का एजेंट तक कहा गया.

2005 में मिली पहली सफलता

उमेंद्र दत्त को पहली सफलता तब मिली जब उनके प्रयासों से साल 2005 में पीजीआई चंडीगढ़ ने एक रिपोर्ट दी जिसमें साफ तौर पर स्वीकार किया गया कि पंजाब में कैंसर के बढ़ते मामलों का सीधा संबंध यहां के खेतों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों से है.

2005 में ही डाउन टू अर्थ पत्रिका ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि पंजाबियों के खून में पेस्टीसाइड की मात्रा खतरनाक रूप से बढ़ गई है. ऐसे में उमेंद्र दत्त ने तय किया कि पंजाब के किसानों में प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए वे हरसंभव प्रयास करेंगे. इसी सोच के साथ 2005 में आपने खेती विरासत मिशन की स्थापना की. फरीदकोट जिले के जैतो गांव को उन्होंने अपना कर्मक्षेत्र बनाया.

खेती विरासत मिशन ने पकड़ी रफ्तार

उमेंद्र दत्त के नेतृत्व में खेती विरासत मिशन ने पंजाब में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है. पंजाब के बौद्धिक और सामाजिक जगत में भी खेती विरासत मिशन ने अपनी साख कायम की है. धीरे-धीरे मिशन ने अपने काम का कई और क्षेत्रों में विस्तार किया है. कपास के अलावा खेती विरासत मिशन ने मिलेट्स पर भी खूब काम किया है. आज मिशन के प्रयासों से पंजाब में मिलेट्स (ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज) की खेती और उपभोग दोनों बढ़ा है.

अपने काम को आर्थिक की जगह मनोवैज्ञानिक मानने वाले उमेंद्र दत्त ने अपने मिशन को देशभक्ति और अध्यात्म से जोड़ा है. पंजाब के साथ-साथ हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के किसान उमेंद्र दत्त के मिशन से जुड़ कर ज़हर मुक्त खेती को अपना रहे हैं. आशा है कि उमेंद्र दत्त के मिशन से देश के दूसरे इलाके के किसान भी प्रेरणा लेंगे.

ये भी पढ़ें- भारत एक्सप्रेस पर प्रसारित होने वाला ‘कृषि एक्सप्रेस’ कार्यक्रम क्यों और किसके लिए?

-भारत एक्सप्रेस

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