(नोट: यह लेख मूल रूप से 12 जुलाई 2024 को प्रकाशित हुआ था.)
जेपी और लोकनायक के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) ने एक कांग्रेसी के तौर पर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. पार्टी छोड़ने के बाद भी जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता बनी रही थी. हालांकि कुछ मौकों पर दोनों के बीच मतभेद भी स्पष्ट नजर आए हैं.
जवाहर लाल नेहरू के अलावा उनकी बेटी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ तो उन्होंने जोरदार मोर्चा खोल रखा था. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजवादी नेता जेपी को मुख्य रूप से 1970 के दशक के मध्य (आपातकाल) में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने और उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करने के लिए याद किया जाता है.
बहरहाल बात नेहरू और जेपी से जुड़ी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, नेहरू चाहते थे कि जेपी (JP) उनके उत्तराधिकारी बनें, क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अद्भुत संगठनात्मक क्षमताओं का प्रदर्शन किया था. नेहरू के अंदर का बुद्धिजीवी अमेरिका में जेपी की आधुनिक शिक्षा की प्रशंसा करता था.
1952 के लोकसभा चुनावों में अपनी भारी जीत के बाद नेहरू ने जेपी को अपने डिप्टी के रूप में अपनी सरकार में शामिल होने और जब भी उन्हें लगे कि नेहरू गलत हैं, तो उन्हें सलाह देने के लिए आमंत्रित किया था. वास्तव में नेहरू ने कांग्रेस और जेपी की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बीच विलय का प्रस्ताव भी रखा.
हालांकि जेपी ने नेहरू के सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया. जेपी की खुद की छवि एक संत और गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में थी, जो पद के लालच से बहुत ऊपर थे. नेहरू ने इसे जेपी की शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं लेने के रूप में समझा और उन्हें लगा कि जिस व्यक्ति को वे अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार करना चाहते थे, वह एक कठिन देश को चलाने की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी कहा था, ‘नेहरू के साथ उनके (जेपी) बहुत मधुर संबंध थे, जिन्हें वे ‘भाई’ कहकर संबोधित करते थे. नेहरू ने उन्हें 50 के दशक में अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनकी (जेपी) पत्नी और कमला नेहरू (नेहरू की पत्नी) भी बहुत करीब थीं.’
हालांकि आगे चलकर इन दोनों नेताओं के संबंध इस तरह से नहीं रहे. इसका पता एक रिपोर्ट से चलता है. इसके अनुसार, आजादी के बाद कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही थीं. 11 जनवरी 1948 को नेहरू को भेजे गए एक पत्र में जयप्रकाश नारायण ने लिखा था, ‘हमारे और कांग्रेस के बीच की दूरी दिन-ब-दिन चौड़ी होती जा रही है. उदाहरण के लिए बिहार में हमारे लगभग 500 कार्यकर्ता या तो गिरफ्तार हैं या पुलिस उन्हें तलाश रही है.’
आजादी के बाद तीन मूर्ति भवन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का आधिकारिक निवास बना था. जब नेहरू अपने पूर्व निवास से इस विशाल महलनुमा इमारत में शिफ्ट हुए थे तो जेपी ने उनकी जमकर आलोचना की थी.
जेपी ने नेहरू के महलनुमा घर में रहने की आलोचना की थी. इसका खुलासा उनकी बायोग्राफी The Dream of Revolution: A Biography of Jayaprakash Narayan में होता है. इस किताब को रिटायर शिक्षाविद और 1990 के दशक की शुरुआत में नेपाल में भारत के राजदूत बिमल प्रसाद और उनकी बेटी सुजाता प्रसाद ने मिलकर लिखा.
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यह सामने आया था कि नवंबर 2015 में अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने जेपी की जीवनी पर काम करना शुरू कर दिया था. सुजाता के शब्दों में, उन्होंने एक व्यापक खाका पीछे छोड़ दिया था और यह किताब एक बेटी द्वारा अपने मरते हुए पिता से किए गए वादे को पूरा करती है.
इस किताब में बताया गया है कि जेपी ने दिसंबर 1947 में नेहरू के साथ हुई एक बैठक में पूछा था कि क्या एक गरीब देश के प्रधानमंत्री को एक शानदार महल (तीन मूर्ति भवन) में रहना शोभा देता है? जेपी ने तब नेहरू को याद दिलाया था कि यूएसएसआर (सोवियत संघ) की यात्रा से लौटने पर उन्होंने अपनी किताब में तारीफ करते हुए लिखा था कि लेनिन, क्रेमलिन में दो कमरों के छोटे से फ्लैट में रहते थे.
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जेपी के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि कुछ दिन पहले मुझसे मिलने रूसी राजदूत आए थे. वो एक शानदार लिमोजीन में आए थे, जिसके बगल में दो भव्य कारें थीं. जेपी ने नेहरू के इस जवाब का विरोध करते हुए कहा था कि रूस अब एक विकसित देश और एक बड़ी शक्ति है, लेकिन भारत अभी भी लेनिन के समय के रूस की तरह विकास के प्रारंभिक चरण में है.
-भारत एक्सप्रेस
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