राजस्थान के सीकर जिले के दिवराला में 37 साल पहले (4 सितंबर 1987) एक 18 साल की विवाहिता रूप कंवर (Roop Kanwar) अपने मृत पति के साथ सती हो गई थी. जिसे देश का आखिरी सती कांड भी माना जाता है. इस सती कांड के बाद लोगों ने महिला की तुलना देवी के अवतार से करते हुए उसका मंदिर भी बनवाया था. विवाहिता के सती होने के मामले में आरोपी बनाए गए 8 लोगों को जयपुर की सती निवारण विशेष अदालत ने 10 अक्टूबर 2024 को बरी कर दिया है. इससे पहले कोर्ट ने 31 जनवरी, 2004 को मामले के 25 आरोपियों को बरी कर दिया था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पुलिस कर्मियों और गवाहों ने आरोपियों की पहचान करने से इनकार कर दिया.
विवाहिता के सती होने की खबर उस समय पूरे देश में आग की तरह फैल गई थी, जिसको लेकर केंद्र की राजीव गांधी और राज्य की हरदेव सिंह जोशी की सरकार की जमकर आलोचना हुई. विवाद और आलोचनाओं के बीच 39 लोगों के खिलाफ जयपुर हाई कोर्ट में मामला दर्ज हुआ. अब जिन आरोपियों को बरी किया गया है, उनमें- श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह का नाम शामिल है.
महिला के सती होने के बाद सवाल उठा कि क्या उसने अपनी मर्जी से ऐसा किया या फिर जबरन ऐसा करवाया गया. इसके बारे में दो तरह की बातें लोगों में फैलीं. कुछ लोगों का कहना था कि विवाहिता रूप कंवर ने अपने मृत पति के शव के साथ खुद सती होने का फैसला किया था, वहीं जब इस मामले की जांच हुई तो पता चला कि उसे जबरन सती करवाया गया था.
रूप कंवर जयपुर की रहने वाली थी. 18 साल की उम्र में उसकी शादी दिवराला के माल सिंह शेखावत के साथ हुई थी. शादी के करीब 6 महीने बाद एक दिन उसके पति माल सिंह शेखावत की अचानक तबियत खराब हो गई, जिसके बाद उसके परिवार ने आनन-फानन में सीकर के अस्पताल में उसे भर्ती कराया. कुछ देर के लिए लगा कि माल सिंह की तबियत में सुधार हो रहा है, इस भरोसे के साथ रूप कंवर घर आ गई, लेकिन सुबह होते-होते माल सिंह की तबियत और बिगड़ गई. जिसके बाद उसकी मौत हो गई.
जब माल सिंह शेखावत का शव दिवराला पहुंचा तो खबर उड़ी कि रूप कंवर अपने पति के साथ सती होना चाहती है. ये खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई. लोग ये मंजर देखने के लिए पहुंचने लगे. दूर-दूर से साधु-संतों की टोली ये देखने के लिए पहुंचने लगी कि क्या रूप कंवर के अंदर कोई देवी है? रूप कंवर को शादी का जोड़ा पहनाकर उसे चिता पर पति के शव के साथ बैठा दिया गया. जब आग लगाई गई तो थोड़ी ही देर में वह चीखते-चिल्लाते हुए चिता से नीचे गिर गई, लेकिन फिर उसे जबरन चिता पर बैठा दिया गया और तब तक चिता पर घी डाला गया, जब तक चिता पूरी तरह से जल नहीं गई.
रूप कंवर के सती होने के 12 दिन (16 सिंतबर 1987) बाद राजपूत समाज ने चुनरी महोत्सव मनाने का ऐलान किया, ये खबर भी आग की तरह चारों ओर फैल गई. कुछ वकीलों, सोशल एक्टिविस्ट और संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. वकीलों ने हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस वर्मा को पत्र लिखकर इसपर रोक लगाने की मांग की. जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका मानते हुए इसपर सुनवाई की और महोत्सव पर रोक लगाने के आदेश दिए. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये सती प्रथा का महिमामंडन हो रहा है, इसलिए सरकार किसी भी कीमत पर इस समारोह को रोके.
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कोर्ट के आदेश के बाद भी चुनरी महोत्सव में शामिल होने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा. बताया जाता है कि 10 हजार की आबादी वाले दिवराला में करीब एक लाख लोग पहुंच गए. हाई कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखते हुए चुनरी महोत्सव मनाया गया. जिसमें कई दलों के नेता भी शामिल हुए. एक जुलूस भी निकाला गया. जिसमें एक ट्रक पर रूप कंवर की फोटो लगा रखी थी और उसके नाम के जयकारे भीड़ लगा रही थी.
-भारत एक्सप्रेस
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