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भ्रूण के लिंग का पता लगाकर क्यों न उसकी रक्षा की जाए : आईएमए प्रमुख अशोकन

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन का कहना है कि एक कानून के माध्यम से लिंग परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने से कन्या भ्रूण हत्या रुक सकती है.लेकिन बच्ची के जन्म के बाद उसके लिए खतरे बरकरार रहेंगे. उन्होंने कहा कि किसी सामाजिक बुराई का कोई चिकित्सीय समाधान नहीं हो सकता.

आईएमए पीसी-पीएनडीटी पे काम कर रहा

‘पीटीआई’ के संपादकों के साथ बातचीत में अशोकन ने कहा कि आईएमए मौजूदा गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी-पीएनडीटी) अधिनियम को संशोधित करने के लिए एक दस्तावेज पर काम कर रहा है.यह अधिनियम भ्रूण के लिंग के निर्धारण के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों पर प्रतिबंध लगाता है और डॉक्टरों को जवाबदेह बनाता है.उन्होंने कहा, ‘‘एक सुझाव यह होगा कि क्यों न भ्रूण के लिंग का पता लगाया जाए और फिर कन्या भ्रूण की रक्षा की जाए.’’
आईएमए अध्यक्ष ने कहा, ‘‘किसी सामाजिक बुराई का आपके पास कोई चिकित्सीय समाधान नहीं हो सकता. क्या यह व्यावहारिक है? आइये उस पर चर्चा करें.इससे होगा यह कि यदि आप सामाजिक बुराई को नहीं दूर करेंगे तो कन्या भ्रूण हत्या खत्म हो जायेगी, लेकिन बच्ची के पैदा होने के बाद उसके लिए खतरे बरकरार रहेंगे.’’

पीसी-पीएनडीटी अधिनियम से सहमत नही

उन्होंने कहा, ‘‘कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में हमारी जिम्मेदारी है लेकिन हम पीसी-पीएनडीटी अधिनियम द्वारा अपनाई गई पद्धति से सहमत नहीं हैं.अशोकन ने दावा किया कि पीसी-पीएनडीटी अधिनियम पूरी तरह से असंगत, अदूरदर्शी और एनजीओ द्वारा संचालित है. इस पद्धति ने चिकित्सकों के लिए बहुत कठिनाई पैदा कर दी है.’’ आईएमए काफी समय से पीसी-पीएनडीटी अधिनियम पर फिर से विचार करने की मांग कर रहा है.
अशोकन ने कहा कि बेटी बचाने की मुहिम को लेकर कोई मतभेद नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘साझा उद्देश्य एक है कि सभी डॉक्टरों को (कन्या भ्रूण हत्या मामले में) दोषी मानना बहुत गलत है.’’ अशोकन ने कहा कि आईएमए अधिनियम के कुछ नियमों, तकनीकी खामियों और गलत फॉर्म भरने के लिए डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई से व्यथित है.

-भारत एक्सप्रेस

Prakhar Rai

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