Shivpal Yadav: मैनपुरी के उपचुनाव में सूबे के पूर्व सीएम और सपा के मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने बड़ी जीत दर्ज की. डिंपल को मैनपुरी उपचुनाव में कुल वोटों का 64% मत मिला जिसके दम पर उन्होंने बीजेपी के रघुराज शाक्य को करारी मात दी. रघुराज शाक्य को 3 लाख 29 हजार 659 वोट मिले. जबकि, डिंपल यादव को कुल 6 लाख 18 हजार 120 वोट मिले. इस तरह डिंपल यादव ने बीजेपी उम्मीदवार को 2 लाख 88 हजार 461 वोटों से हरा दिया. इस जीत के साथ ही सपा ने मैनपुरी में बीजेपी की चुनौतियों को ध्वस्त कर दिया. हालांकि, इस डिंपल की इस जीत में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की भी बड़ी भूमिका रही.
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच दूरियां कम हुई हैं. शिवपाल यादव ने हाल-फिलहाल कई मौकों पर सार्वजनिक मंच से कहा कि उनका कुनबा एकजुट है और वे अखिलेश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार हैं. अखिलेश यादव ने भी शिवपाल यादव की भावनाओं का सम्मान किया. चाहें, डिंपल के साथ उनके घर जाकर मुलाकात करने की हो, या फिर चाचा पर हुए बीजेपी की तरफ से हमलों का जवाब की बात हो… अखिलेश यादव ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब चाचा-भतीजा के मन में किसी चीज को लेकर गलतफहमी नहीं है. वहीं, खबरें ये भी हैं कि अखिलेश चाचा शिवपाल को यूपी विधानसभा में नेता विपक्ष बनाने की तैयारी कर रहे हैं.
दूसरी तरफ, शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रसपा का सपा में विलय कर दिया है. अखिलेश के हाथ से सपा का झंडा थामने के बाद शिवपाल ने कहा कि हम लोग एक हो गए हैं,अब यही झंडा हमेशा रहेगा. सभी चुनाव हम लोग एक साथ ही रहकर लड़ेंगे. शिवपाल के साथ आने से सपा को सियासी तौर पर फायदा हो सकता है.
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सियासी जानकारों की मानें तो शिवपाल का असर केवल जसवंतनगर और मैनपुरी तक ही नहीं है. मुलायम सिंह यादव के साथ रहते हुए उन्होंने सपा के संगठन को जमीनी स्तर तक पहुंचाया और एक बार फिर वह सपा के संगठन को गांव-गांव तक मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. शिवपाल के साथ आने से परिवार के एकजुट होने का जनता में मैसेज जाएगा, जिससे वह जनता के भरोसे को दोबारा जीतने की कोशिश कर सकते हैं.
प्रसपा के सपा में विलय से अखिलेश यादव की पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा. जाहिर तौर पर, शिवपाल यादव के अलग पार्टी बनाने का असर विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2019 में देखने को मिला था. हालांकि, विधानसभा चुनाव में शिवपाल और अखिलेश की पार्टी का गठबंधन हुआ था लेकिन, शिवपाल यादव के अलावा अखिलेश ने किसी अन्य नेता को सपा के सिंबल पर चुनाव में नहीं उतारा था, जिसके बाद नाराजगी देखने को मिली थी. वहीं, अब शिवपाल की पार्टी के विलय से सपा को वोट प्रतिशत के मामले में फायदा हो सकता है। यूपी में अभी निकाय चुनाव होने हैं, जहां सपा अब पूरे दमखम से बीजेपी का मुकाबला करते नजर आ सकती है. जबकि, 2024 के चुनावों में भी पार्टी को शिवपाल के अनुभव और रणनीति का लाभ मिल सकता है, जो बीजेपी की टेंशन बढ़ा सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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