देश में निमोनिया से बचाव के टीके से सुधार तो हुआ है. लेकिन, अभी भी काफी संख्या में मासूम इस बीमारी से जान गवां रहे हैं. शनिवार को निमोनिया जागरूकता दिवस है. लिहाजा, इसके लिए कई स्तर पर जागरूक करने के लिए मुहिम चलाई जा रही है. देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की निमोनिया से होने वाली मौत को रोकने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं.
चौंकाने वाली बात ये है कि काफी बच्चे अपने जन्म का एक साल भी पूरा नहीं कर पाते और उनकी मौत हो जाती है. जबकि, मार्केट में बच्चों को निमोनिया से बचाने की वैक्सीन उपलब्ध है. निमोनिया से बचाव की वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाई जा रही है. इससे काफी हद तक मासूमों को बचाने में कामयाबी मिली है.
बीमारी को लेकर एक्सपर्ट लगातार लोगों को जागरूक करते रहे हैं. फेलिक्स हॉस्पिटल के डॉ नीरज कुमार (बाल रोग विशेषज्ञ) ने बताया कि निमोनिया फेफड़ों में होने वाला एक संक्रमण है. जो बैक्टीरिया, फंगस और वायरस से होता है. इससे फेफड़ों में सूजन आ जाती है. उसमें तरल पदार्थ भर जाता है. सर्दी-जुकाम के लक्षण बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं. निमोनिया किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. ये सबसे ज्यादा पांच साल तक के बच्चों को प्रभावित करता है.
डॉ. डी के गुप्ता ने बताया कि निमोनिया को आसानी से रोका जा सकता है और बच्चों में होने वाली मृत्यु का इलाज भी संभव है. फिर भी हर 20 सेकंड में संक्रमण से एक बच्चा मर जाता है. उन्होंने बताया कि निमोनिया से साल 2015 में 5 साल से कम उम्र के 9,20,136 बच्चों की मृत्यु हुई थी, जो कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का 16 % है.
सबसे ज्यादा जरूरी बात ये है कि बच्चों का समय से टीकाकरण कराकर निमोनिया बचाया जा सकता है. निमोनिया का टीका न्यूमोकॉकॉल कोन्जुगेट है. यह टीका डेढ़ माह, ढाई माह, साढ़े तीन माह और 15 माह में लगाया जाता है. कुपोषण के शिकार बच्चों को निमोनिया आसानी से चपेट में ले लेता है.
● गुनगुने तेल से शिशु को मालिश करें
● खांसते और छींकते समय मुंह पर हाथ रखें
● इस्तमेाल टिशू को तुरंत डिस्पोज करें
● बच्चों को ठंड से बचाएं
● नवजात को पूरे कपड़े पहनायें
● नवजात के सिर, कान और पैर ढंक कर रखें
● पर्याप्त आराम व स्वस्थ आहार लें
● छोटे बच्चों को छूने से पहले हाथों को साबुन से धोएं
● प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करें, एक हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं
● सांस तेज लेना
● पसलियां चलना
● कफ की आवाज आना
● खांसी, सीने में दर्द
● तेज बुखार और सांस लेने में मुश्किल
● उल्टी होना, पेट व सीने के निचले हिस्से में दर्द होना
● कंपकंपी, मांसपेशियों में दर्द
● शिशु दूध न पी पाए
● खांसते समय छाती में दर्द
● खांसी के साथ पीले, हरा बलगम निकलना
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