दुनिया

अफगानिस्तान में महिलाएं क्यों नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं?

“और आज काबुल में, एक मादा बिल्ली को एक महिला से ज्यादा स्वतंत्रता है. एक बिल्ली अपनी सामने की सीढ़ी पर बैठकर सूरज की रोशनी महसूस कर सकती है. वह पार्क में गिलहरी का पीछा कर सकती है. काबुल में एक पक्षी गा सकता है, लेकिन एक लड़की नहीं.” ये शब्‍द मेरिल स्ट्रीप के संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए भाषण का हिस्सा थे. ये शब्द न सिर्फ सोशल मीडिया पर गूंजे, बल्कि हमारे मन में अपराधबोध भी भर गए. अपराधबोध इस बात का कि हम, एक समाज के रूप में, अफगानिस्तान में तीन साल पहले जो कुछ हो रहा था, उससे आगे बढ़ चुके हैं और आज इस मुद्दे को अप्रासंगिक मान लिया है.

खोखले प्रतीत होते वादे

हम दोषी हैं इस बात के कि अन्याय होते रहने के बावजूद हम उस पर कोई कार्रवाई नहीं करते. हम दोषी हैं इस बात के लिए कि हम कभी अफगानिस्तान की स्थिति को सुधारने का वादा करते थे, लेकिन अब ये वादे सिर्फ खोखले प्रतीत होते हैं. वही लोग जो काबुल की लड़कियों के लिए सब कुछ ‘कुर्बान’ करने के लिए तैयार थे, शायद अब उस संकट को याद भी नहीं करते. क्या हम सच में इन सब चीजों को नजरअंदाज करते रहेंगे? क्या हम और ज्यादा अज्ञानी हो गए हैं, या हमने बस इसे स्वीकार कर लिया है? स्वीकार कर लिया कि यह स्थिति बदलने वाली नहीं है, लोग नहीं बदलने वाले, और तालिबान एक ‘सरकार’ के रूप में नहीं बदलने वाला.

रुक गया आंदोलन

अफगान महिलाओं की आवाज़ 2021 में दुनिया ने तब सुनी, जब जो बाइडेन ने अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाया और संचालन, अधिकार क्षेत्र, विधायिका और प्रशासनिक मामलों का पूरा नियंत्रण तालिबान को सौंप दिया. लगभग एक साल तक कई कार्यकर्ताओं, नारीवादी और अन्य स्वयंसेवकों ने अफगान महिलाओं के लिए न्याय की मांग की. हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, इस आंदोलन की गति धीरे-धीरे कम होती गई और रुक गई.

तालिबान के कड़े कानून

तालिबान ने कई कड़े कानून लागू किए हैं और 100 से अधिक फरमान जारी किए हैं जो अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों को सीमित करते हैं. उन्होंने युवतियों को शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया है और महिलाओं को रोजगार से भी वंचित कर दिया है. अगर मैं आपको यह बताऊं कि 20वीं सदी में अफगानिस्तान महिलाओं के लिए अब से कहीं अधिक प्रगतिशील समाज था, तो क्या आप विश्वास करेंगे? पर्दा व्यवस्था, जो लिंग आधारित पृथक्करण की एक बहुत सख्त नीति लागू करती थी, 1950 में समाप्त कर दी गई थी. स्विट्ज़रलैंड में महिलाओं को 1971 में वोट देने का अधिकार मिला, जबकि फ्रांस में महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1944 में मिला था, लेकिन अफगान महिलाओं को यह अधिकार 1919 में ही मिल गया था. यह स्विट्ज़रलैंड से 50 साल पहले और ब्रिटेन से एक साल बाद था.

बाकी हिस्सों के लिए चेतावनी

अफगानिस्तान की यह पलटने वाली स्थिति दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक चेतावनी के रूप में काम करनी चाहिए, ताकि हम समझ सकें कि अगर हमने अपने सिद्धांतों और नैतिकता को बनाए नहीं रखा, तो हम भी उस समाज का हिस्सा बन सकते हैं जो महिलाओं को सांस लेने तक के लिए दोषी ठहराए. उस समय अफगानिस्तान महिलाओं के लिए करियर के अवसरों के मामले में सुधार कर रहा था. महिलाएं उच्च पदों पर कार्यरत थीं, जैसे सरकारी अधिकारी, वकील, डॉक्टर, क्षेत्रीय गवर्नर और यहां तक कि क्रिकेट टीमें भी बनाती थीं. उन्हें यह नहीं पता था कि जैसे ही वे अपने घूंघट को छोड़ देंगी, उनके सपने और आकांक्षाएं समाप्त हो जाएंगी.

अफगानिस्तान ज्यादा प्रगतिशील था?

लॉरेन्स लैकोंबे, एक फ्रांसीसी फोटोग्राफर थीं, जिन्होंने 1970 के दशक में अफगान महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी को कैमरे में कैद किया. उन्होंने यह पाया किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं चादर ओढ़ती थीं, लेकिन काबुल के केंद्र में महिलाएं पश्चिमी फैशन ट्रेंड्स का पालन कर रही थीं और पुरुषों के साथ एक ही कक्षाओं में पढ़ाई कर रही थीं. हालांकि स्कर्ट जैसे कपड़े पहनना जोखिम भरा था, फिर भी कुछ युवा लड़कियां ऐसा करती थीं. जब 1973 में राजा जहीर शाह का अपहरण कर मोहम्मद दाऊद खान ने शासन संभाला, तो महिलाओं को बुनियादी अधिकार और स्वतंत्रता देने का प्रयास किया, लेकिन उनका तरीका धार्मिक उग्रवादियों के लिए बहुत ‘आधुनिक’ था, और पांच साल बाद उनकी हत्या कर दी गई. क्या यह नहीं हैरान करने वाली बात है कि अफगानिस्तान, स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस जैसे देशों से भी ज्यादा प्रगतिशील था? मैं यह तक कहूंगी कि अगर अफगानिस्तान के सामाजिक मानदंडों को प्रतिक्रियावादी और कट्टरपंथी नीतियों से प्रदूषित न किया गया होता, तो अफगान समाज और उन्नति कर सकता था.

रुक गई प्रगति

सभी प्रगति तब रुक गई, जब 1989 में सोवियत सेना ने अफगानिस्तान से वापसी की. इसके बाद काबुल में मजहबी उग्रवादी समूहों ने कब्जा कर लिया और महिलाओं को केवल घर के कामकाज तक सीमित कर दिया. तब से उनके अधिकारों को लेकर किसी का ध्यान नहीं रहा. तालिबान ने 1996 में पहली बार सत्ता संभाली, और यहीं से सब कुछ बिखर गया. महिलाओं को काम करने, स्कूल जाने और बिना अपने पति या पिता की अनुमति के घर से बाहर निकलने से मना कर दिया गया था, और सार्वजनिक रूप से बोलने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

युवा लेखिका इशाना शर्मा.

महिलाओं के खिलाफ भेदभाव

तालिबानी शासन में हर चीज असामान्य है. उदाहरण के लिए, कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों में यह सूचीबद्ध किया गया है कि ये दस्तावेज देश पर लागू रहेंगे, चाहे सरकार या नेतृत्व में कोई भी आंतरिक परिवर्तन हो. हालांकि, तालिबान ने पिछले प्रशासन की अधिकांश नीतियों को खारिज कर दिया है, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कन्वेंशन (CEDAW) का पालन करने से. अफगानिस्तान ने 2003 में इस कन्वेंशन की स्वीकृति दी थी, लेकिन तालिबान ने इसे मानने से इनकार कर दिया है और महिलाओं को और अधिक पाबंदियों के दायरे में ले आया है. तालिबान के सत्ता में आने के एक महीने बाद, महिलाएं स्कूलों और कॉलेजों में जा सकती थीं, लेकिन कई शर्तों के साथ. फिर कक्षाओं को लिंग के आधार पर अलग किया गया था और महिलाओं का सिर ढकना अनिवार्य कर दिया गया.

सिर से पांव तक ढकना अनिवार्य

मई 2022 में, ड्रेस कोड को और सख्त कर दिया गया और महिलाओं को अपना सिर से पांव तक ढकना अनिवार्य हो गया, और इसके लिए उनके पुरुष अभिभावकों को भी जेल भेजने और यातना देने की सजा थी. नवंबर 2022 में, महिलाओं को जिम और पार्कों में जाने से मना कर दिया गया, और फिर अगले महीने उन्हें NGOs और विश्वविद्यालयों में काम करने से भी रोक दिया गया. अप्रैल 2023 में, महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसे सुरक्षा परिषद ने “संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में अभूतपूर्व” कहा.

अफगानिस्तान के डरावने पहलू

मैंने ‘The Breadwinner’ नामक पुस्तक पढ़ी, जो डेबोरा एलिस द्वारा लिखी गई है. इसमें एक युवा लड़की पारवाना की कहानी है, जिसे अपने परिवार के लिए काम करने के लिए कई जोखिम उठाने पड़े. इस पुस्तक ने मुझे अफगानिस्तान के अंधेरे, डरावने और अप्रत्याशित पहलुओं से अवगत कराया और ये दिखाया कि कैसे पारवाना ने अपनी बचपन की यादों को खो दिया. ऐसी उम्र में, जब वह अपनी गुड़ियों से खेलना और अपने दोस्तों के साथ पार्क में जाना चाहती थी, वह कब्रों की खुदाई करने, कागज खाने, अपने छोटे भाई अली की देखभाल करने और एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर हो गई.

प्रतिक्रियावादी समाज

एक और किताब, ‘Not Without My Daughter’, को Betty Mahmoody ने लिखा, जो इस बारे में है कि कैसे वह ईरान में कठोर परंपराओं का पालन करने के लिए मजबूर हुईं और उन्होंने जिन अधिकारों को अब अमेरिका में महसूस किया, वह उनसे पहले छीन लिए गए थे. वह किस तरह से तुर्की के पहाड़ी इलाकों में अपने बेटी के साथ पैदल भागने के लिए मजबूर हुईं. क्या यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि अधिकांश महिलाओं के लिए बुनियादी अधिकार भी एक विशेषाधिकार बन जाते हैं? हालांकि उसकी कहानी ईरान में सेट है, फिर भी मैं यह तुलना करने से खुद को रोक नहीं पा रही हूं कि दुनिया भर के कई देशों में महिलाओं के लिए समाज कितना प्रतिक्रियावादी है. अफगानिस्तान, सीरिया, इराक, ईरान, सोमालिया, लेबनान और सूडान सिर्फ कुछ उदाहरण हैं.

महिलाओं के खिलाफ घिनौने कृत्य

महिलाओं के खिलाफ घिनौने कृत्य अनंत काल से होते आ रहे हैं, और ये आज भी जारी हैं. जो बात चौंकाने वाली है, वह यह है कि समाज ने इन्हें आज अत्यधिक सामान्य मान लिया है. यह लग रहा है कि इन अन्यायों के लिए तालिबान जैसे समूहों को दोष देना आसान है, लेकिन यह नकारा नहीं जा सकता कि हम भी इसके लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं. हम चुप रहते हैं और जैसे कुछ गलत नहीं हो रहा, ऐसा दिखावा करते हैं. इसे बदलने की आवश्यकता है. हमारी मानसिकता को बदलना होगा; जब तक ऐसा नहीं होता, हम पीड़ित का ढोंग नहीं कर सकते और दूसरों को दोष नहीं दे सकते. यह बस अन्याय है.

(इशाना शर्मा 11वीं की छात्रा हैं. यह उनके मूल लेख का हिंदी अनुवाद है. उनका लेख BharatExpress.Com पर इंग्लिश में यहां पढ़ा जा सकता है.)

Ishana Sharma

Recent Posts

दिल्ली हाई कोर्ट ने Saket Gokhale को मानहानि मामले में जारी किया नोटिस, जानें क्या है पूरा मामला

दिल्ली हाई कोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले को लक्ष्मी पूरी की याचिका…

55 mins ago

उत्तराखंड जोशीमठ-नीती हाइवे पर बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का आना शुरू

यहां हर वर्ष दिसंबर से अप्रैल तक भोलेनाथ बाबा बर्फानी के रूप में विराजमान होते…

1 hour ago

Madhya Pradesh: सौरभ शर्मा मामले में ED की हुई एंट्री, मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज, DRI भी जांच में जुटी

भोपाल के मिंडोरा इलाके में एक लावारिस कार में बड़ी मात्रा में नकद और कीमती…

2 hours ago

सीएम योगी आदित्यनाथ ने चौधरी चरण सिंह की 122वीं जयंती पर किसानों को किया सम्मानित

Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की…

2 hours ago

Delhi HC 24 दिसंबर को बीजेपी की याचिका पर करेगा सुनवाई, CAG रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने की मांग

दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट…

3 hours ago

पीएम मोदी ने 71 हजार युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, बोले- भारत का युवा, नए आत्मविश्वास से भरा हुआ

पीएम मोदी ने आगे कहा कि भाषा एक समय हाशिए पर रहने वाले समुदायों के…

3 hours ago