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दिल्ली में मंत्रियों की संख्या बढ़ाने की मांग पर हाईकोर्ट में याचिका, 28 जुलाई को अगली सुनवाई

दिल्ली सरकार में मंत्रियों की संख्या बढ़ाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी मंत्रिपरिषद की संख्या बढ़ाने की मांग की गई है. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने इस याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई की. कोर्ट ने माना कि यह एक विचारणीय मुद्दा है और अब इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को की जाएगी.

क्या है याचिका में मांग?

यह याचिका आकाश गोयल नामक एक व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई है. उन्होंने कोर्ट में बताया कि दिल्ली सरकार के पास 38 मंत्रालय हैं, लेकिन उनके लिए केवल 7 मंत्री ही नियुक्त हैं. जबकि दिल्ली विधानसभा में 70 निर्वाचित विधायक हैं.

गोयल ने कहा कि यह संख्या देश के किसी भी राज्य की मंत्रिपरिषद की तुलना में सबसे कम है. उदाहरण के तौर पर, गोवा और सिक्किम जैसे छोटे राज्यों में भी 12-12 मंत्री हैं, जबकि उनके विधायकों की संख्या क्रमशः 40 और 32 है.

संविधान संशोधन को दी चुनौती

याचिकाकर्ता ने संविधान (59वां संशोधन) अधिनियम, 1991 की धारा 2(4) और अनुच्छेद 239 को चुनौती दी है. यही प्रावधान दिल्ली की मंत्रिपरिषद को विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के 10 प्रतिशत तक सीमित करता है.

याचिका में कहा गया है कि यह सीमा मनमानी, भेदभावपूर्ण है और भारतीय संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है. यह संघवाद, लोकतंत्र और कुशल प्रशासन जैसे मूल सिद्धांतों को कमजोर करती है.

कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) से जुड़ा हुआ है, न कि सीधे संघवाद से. हालांकि, दिल्ली को विशेष संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, इस वजह से कोर्ट को यह देखना होगा कि क्या याचिका में उठाए गए तर्क कानूनी रूप से टिकाऊ हैं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि मंत्रियों की कम संख्या के कारण प्रशासन में देरी, नीतियों के क्रियान्वयन में बाधा और शासन व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है. दिल्ली जैसे बड़े और घनी आबादी वाले क्षेत्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए पर्याप्त संख्या में मंत्री जरूरी हैं.

याचिका में यह भी कहा गया कि दिल्ली में चुनी हुई विधानसभा और सरकार तो है, लेकिन उसे कार्यकारी शक्तियों में वह क्षमता नहीं दी गई है, जो अन्य राज्यों को प्राप्त है. इससे दिल्ली की स्वायत्तता प्रभावित हो रही है.


ये भी पढ़ें- दिल्ली हाई कोर्ट ने मोरों को बिजली के करंट से बचाने के लिए नीति बनाने की याचिका खारिज की


-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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