

दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय पक्षी मोरों को बिजली के करंट से बचाने के लिए नीति बनाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि उसका काम कानूनबनाना नही है. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि नीति बनाना सरकार का काम है. लिहाजा.इस याचिका पर कोर्ट आदेश पारित नही कर सकता है.
यह याचिका सेव इंडिया फाउंडेशन की ओर से दायर की गई है. मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि हाल ही में तीन अप्रैल को वन एवं वन्यजीव विभाग दिल्ली सरकार के ऊर्जा सचिव और अन्य अधिकारियों के समक्ष एक प्रतिनिधित्व सौंपा है और उसके जवाब का इंतजार किए बिना ही कोर्ट पहुच गए. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हम ऐसे मामलों को प्रोत्साहित नहीं करते. हमें आपके मामले से सहानुभूति हो सकती है, लेकिन हम इस तरह की याचिका दायर करने की सराहना नहीं कर सकते.
हमारे पास कोई जादू की छड़ी है
कोर्ट ने कहा कि आप लोग सोचते हैं कि हमारे पास कोई जादू की छड़ी है. कृपया समझने की कोशिश करें. आपकी सभी शिकायतों को दूर करने के लिए पूरी व्यवस्था है. उनकी ओर से विफलता की स्थिति में ही आप कोर्ट का दरवाजा खटखटाते है. कोर्ट ने कहा यदि कोई कानून नहीं है तो विधायिका का दरवाजा खटखटाये. यह किस तरह का तर्क है? हम कानून नहीं बना सकते.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह छूट दे दिया है कि वह दो हफ्ते के भीतर एक विस्तृत और वैधानिक प्रतिनिधित्व संबंधित विभागों को दे सकता है. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि ऐसा कोई प्रतिनिधित्व मिलने पर प्राधिकरणों को उस पर विचार कर उचित कार्रवाई करनी होगी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह भी सलाह दिया है कि यदि मोरों को बिजली के झटके से बचाने के संबंध में कानून की कमी है, तो उचित कार्रवाई विधानमंडल से संपर्क करना होगा.
याचिका में तर्क दिया गया था कि मानक संचालन प्रक्रियाओं या दिशा निर्देशों का अभाव इस समस्या में महत्वपूर्ण योगदान देता है, अधिकारी कथित रूप से उदासीन है और डिस्कॉम्स अपने प्रतिष्ठानों को सुरक्षित रूप से इंसुलेट करने में विफल रहे हैं.
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-भारत एक्सप्रेस
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