लोकसभा और विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण कानून को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. यह याचिका मध्य प्रदेश कांग्रेस नेता डॉक्टर जया ठाकुर और नेशनल फेडरेशन इंडियन वूमेन की ओर से दायर की गई थी. जस्टिस एम बेला त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं है.
अदालत ने कहा कि जया ठाकुर और अन्य ने उस विधेयक को चुनौती दी है जो अब कानून बन गया है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पहले भी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का मुद्दा उठाया गया, मगर इसे कभी लागू नही किया जा सका. हालांकि इस बार इसे परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने की शर्त पर लागू किया जा रहा है. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि यदि इसमें कोई संवैधानिकता शामिल है तो आप हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते है.
भारतीय महिला राष्ट्रीय महासंघ (NFIW) की याचिका परिसीमन खंड को लेकर थी, जिसमें इसके कार्यान्वयन को स्थगित करने की मांग की गई थी और केंद्र सरकार से पहले जनगणना और परिसीमन अभ्यास करने की आवश्यकता को समाप्त करने का आग्रह किया गया था.
संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा ने लगभग आम सहमति से और राज्यसभा ने आम सहमति से पारित किया. इस कानून को लागू करने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि जनगणना कराने सहित परिसीमन का काम अभी पूरा नही हुआ है. नारी शक्ति बंदन अधिनियम विधेयक 2023 में संसद के एक विशेष सत्र में पारित किया गया. यह लोकसभा और दिल्ली सहित सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है.
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-भारत एक्सप्रेस
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