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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के समर्थन में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 17 फरवरी को करेगा सुनवाई

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के समर्थन में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 17 फरवरी को बाकी याचिकाओं के साथ सुनवाई करेगा. यह हस्तक्षेप याचिका AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने दायर की है. असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को रद्द नहीं किया जाना चाहिए. रद्द करने से देश का माहौल खराब होगा. वहीं ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के बाद कहा था, अब उम्मीद है कि देश में दंगे नहीं होंगे. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई कर रहा है तब तक निचली अदालतें ना तो कोई प्रभावी आदेश पारित करेगी और ना ही सर्वे को लेकर कोई आदेश देगी. सीजेआई ने यह भी कहा था कि आगे कोई केस दर्ज नहीं होगा.

पक्ष और विपक्ष में याचिकाएं

ओवैसी से पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड, मनोज झा सहित अन्य ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के समर्थन में याचिका दायर कर चुके है. जबकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी कुमार उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल त्रिपाठी ने दायर की है. दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग के परिणाम गंभीर और दूरगामी होंगे. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि वह इस तरह के कई मामलों में दाखिल सूट में पक्षकार है और एक हितधारक है. उनकी ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि कई मुकदमे दायर किए गए हैं, जो 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत निषेध के बावजूद मस्जिद को हटाने का दावा करते है और उन तमाम मामलों में वह पक्षकार है.

क्अया हैं धिनियम की धारा 3 और 4

एक्ट की धारा -3 के मुताबिक किसी भी पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल में परिवर्तित करने पर प्रतिबंध लगाता है. वहीं धारा-4 कहता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थल का जो धार्मिक स्वरूप जैसा था, वैसा ही बना रहेगा. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार 1991 में लेकर आई थी. इस कानून के जरिए किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति यानी वहमस्जिद है मंदिर या फिर चर्च-गुरुद्वारा, यह निर्धारित करने को लेकर नियम बनाए गए है.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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