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सूर्यास्त के बाद पेड़-पौधों को न छूने के पीछे छुपे हैं यह रहस्यमय कारण, जानिए क्या है असली वजह

हिंदू धर्म में कई परंपराएं और मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण परंपरा है कि सूर्यास्त के बाद पेड़-पौधों की पत्तियां और फूल आदि नहीं तोड़े जाते. इस परंपरा का पालन आज भी बड़े-बुजुर्ग और दादी-नानी द्वारा किया जाता है. हालांकि, इस परंपरा के पीछे केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं. आइए जानते हैं इस परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों के बारे में.

धार्मिक कारण

  • पेड़-पौधे सजीव होते हैं: हिंदू धर्म के अनुसार, पेड़-पौधों को सजीव माना जाता है. मान्यता है कि शाम के समय पेड़-पौधे विश्राम की स्थिति में होते हैं, जैसे किसी इंसान या प्राणी की नींद होती है. इसलिए, इस समय पेड़-पौधों को छूने या फूल-पत्ते तोड़ने से उनका विश्राम भंग हो सकता है, जो अनुचित माना जाता है.

 

  • पशु-पक्षी और कीटों का आश्रय: एक और धार्मिक मान्यता यह है कि पेड़-पौधों पर रात के समय छोटे-छोटे पशु-पक्षी और कीट-पतंगे अपने बसेरों में जाते हैं. यदि आप शाम या रात के समय पेड़-पौधों को हिलाते हैं या तोड़ते हैं, तो इससे इन पशु-पक्षियों का विश्राम भंग हो सकता है और वे डर सकते हैं. इसलिए, इस समय पेड़-पौधों को न छूने की सलाह दी जाती है.

 

  • सुबह के फूलों का महत्व: हिंदू धर्म में पूजा के लिए इस्तेमाल होने वाले फूलों को सुबह तोड़ने की परंपरा है. इसका कारण यह है कि अधिकांश फूल सुबह के समय खिलते हैं और सूर्यास्त के बाद मुरझा जाते हैं. इसके अलावा, सूर्यास्त के बाद फूलों की सुगंध और सुंदरता भी खत्म हो जाती है, इसलिए पूजा में उपयोग के लिए फूलों को सुबह तोड़ने की बात कही जाती है.

वैज्ञानिक कारण

विज्ञान के अनुसार भी शाम के समय पेड़-पौधों को न छूने की सलाह दी जाती है. इसका कारण यह है कि रात के समय पेड़-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं. दिन के समय वे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, लेकिन रात में उनका यह प्रक्रिया उलट जाती है. इसलिए रात में पेड़-पौधों के पास सोना, इन्हें छूना या तोड़ना मना किया जाता है, क्योंकि इससे शरीर में अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड का प्रभाव हो सकता है.

हिंदू धर्म और वैज्ञानिक आधार

सूर्यास्त के बाद पेड़-पौधों को न छूने और फूल-पत्ते न तोड़ने की परंपरा केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि इसमें वैज्ञानिक आधार भी है. यह परंपरा हमें न केवल पर्यावरण का सम्मान करना सिखाती है, बल्कि हमारे आस-पास के जीव-जंतुओं और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ाती है. इसलिए, दादी-नानी की बातों को समझते हुए हमें इन परंपराओं का पालन करना चाहिए.


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-भारत एक्सप्रेस

Ashutosh Kumar Rai

आशुतोष कुमार राय, भारत एक्सप्रेस के साथ बतौर सब एडिटर जुड़े हैं और करीब 7 वर्ष से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रहने वाले आशुतोष, पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. क्रिकेट, लाइफस्टाइल और राजनीति में खास दिलचस्पी है. देश-दुनिया और राजनीति की लेटेस्ट खबरों, विश्लेषण, इनसाइड स्टोरी और अपडेट्स के लिए आशुतोष को फॉलो करें… X Account: @AshuRai208

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