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World AIDS Day: 2030 तक एड्स को खत्म किया जा सकता है, जानें कैसे हो पाएगा ये संभव

हर साल 1 दिसंबर को पूरे विश्व में विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day) मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को HIV/AIDS के बारे में जागरूक करना और इस गंभीर बीमारी से जुड़ी भ्रांतियों व भेदभाव को खत्म करना है. एचआईवी एक ऐसा खतरनाक वायरस है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) को कमजोर कर देता है. एक बार यह वायरस (Virus) शरीर में प्रवेश कर जाए तो इससे छुटकारा पाना संभव नहीं होता और यह कई अन्य घातक बीमारियों को जन्म दे सकता है. इस दिन को मनाने के लिए हर साल एक नई थीम चुनी जाती है. इस बार की थीम है “सही रास्ता चुनें: मेरी सेहत, मेरा अधिकार” (Take the Right Path: My Health, My Right).

इस थीम को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित किया गया है. यह एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों के अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाने और उनकी समस्याओं को उजागर करने पर जोर देती है.

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत कब हुई?

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत 1988 में की गई थी. इसका उद्देश्य न केवल एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूकता फैलाना था, बल्कि इस महामारी से जुड़े मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने की दिशा में कदम उठाना भी था. डब्ल्यूएचओ का मानना है कि यदि सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए और समुदायों को नेतृत्व सौंपा जाए, तो 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में समाप्त किया जा सकता है.

समाज में भेदभाव

एचआईवी से संक्रमित लोग केवल बीमारी के शारीरिक प्रभावों से ही नहीं जूझते बल्कि समाज में मौजूद भेदभाव और कलंक का भी सामना करते हैं. उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश की जाती है, जिससे उनकी मानसिक स्थिति और खराब हो सकती है.

इस साल की थीम का उद्देश्य उन असमानताओं और भेदभाव को समाप्त करना है, जो एचआईवी की रोकथाम, उपचार और देखभाल सेवाओं तक लोगों की पहुंच में बाधा डालते हैं.

कैसे करें एड्स को समाप्त ?

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एड्स जैसी महामारी को खत्म करने के लिए केवल चिकित्सा उपाय पर्याप्त नहीं हैं. इसके लिए यह जरूरी है कि एचआईवी प्रभावित लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की जाए और उनके साथ समान व्यवहार किया जाए. समाज के हर व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुंच मिलनी चाहिए.

क्या एचआईवी एक कलंक है?

दुनिया के कई हिस्सों में एचआईवी को अभी भी कलंक माना जाता है. एचआईवी संक्रमित लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है, खासकर महिलाओं, यौनकर्मियों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के साथ. इन असमानताओं को खत्म करने के लिए समाज को अपनी सोच बदलनी होगी.

समाज में जरूरी है जागरूकता

विश्व एड्स दिवस के अवसर पर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एचआईवी से जुड़ी भ्रांतियों और मिथकों को खत्म किया जाए. शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से एक ऐसा सकारात्मक वातावरण बनाया जा सकता है, जिसमें एचआईवी प्रभावित लोग बेहतर और गरिमामय जीवन जी सकें. यदि सभी लोग मिलकर काम करें और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों, तो 2030 तक एड्स को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करना संभव है.

-भारत एक्सप्रेस

Ashutosh Kumar Rai

आशुतोष कुमार राय, भारत एक्सप्रेस के साथ बतौर सब एडिटर जुड़े हैं और करीब 7 वर्ष से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रहने वाले आशुतोष, पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. क्रिकेट, लाइफस्टाइल और राजनीति में खास दिलचस्पी है. देश-दुनिया और राजनीति की लेटेस्ट खबरों, विश्लेषण, इनसाइड स्टोरी और अपडेट्स के लिए आशुतोष को फॉलो करें… X Account: @AshuRai208

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