साल 2012 की बात है। दुनिया की अग्रणी समाचार पत्रिकाओं में शामिल टाइम मैगजीन के कवर पेज पर एक जाना-पहचाना चेहरा था। ये चेहरा था प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का। नरेन्द्र मोदी तब भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने थे लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में 11 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके थे। जाहिर सी बात है कई लोगों ने इतनी प्रतिष्ठित पत्रिका में उनकी तस्वीर छपने को गुजरात के विकास के मॉडल से जोड़ कर देखा। तस्वीर के साथ लगा शीर्षक – ‘मोदी मीन्स बिजनेस’ – भी इस समझ को पुष्ट करने के लिए काफी था। इस शीर्षक के साथ एक उप-वाक्य भी था जो उनकी काबिलियत पर अटूट भरोसा रखने वाले असंख्य समर्थकों को सवाल की तरह खटक रहा था – बट कैन ही लीड इंडिया?, जिसका हिंदी अनुवाद होता है ‘लेकिन क्या वो भारत का नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं?’
एक दशक बाद अब यह सवाल न केवल अप्रासंगिक हो चुका है बल्कि नरेन्द्र मोदी जैसी शख्सियत की क्षमताओं को आंकने में भी पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुआ है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि क्योंकि नरेन्द्र मोदी आज न केवल भारत के निर्विवाद नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित हैं, बल्कि वैश्विक आकांक्षाओं और उम्मीदों के भी सबसे बड़े प्रतीक बन चुके हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उनके 9 वर्ष के कार्यकाल में इस बात के कई प्रमाण सामने आ चुके हैं। ताजा मिसाल दुनिया भर की एविएशन इंडस्ट्री की अब तक की सबसे बड़ी डील है जिसके तहत भारतीय विमानन कंपनी एयर इंडिया ने फ्रांस की एयरबस और अमेरिका के बोइंग को कुल मिलाकर 470 विमानों का ऑर्डर दिया है। इस ऐतिहासिक सौदे ने भारत ही नहीं विश्व के विमानन सेक्टर के लिए सुनहरे अवसरों का एक नया क्षितिज खोल दिया है। महामारी के बाद मंदी की चपेट में उलझे विश्व के लिए ये सौदा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इससे लग सकता है कि दुनिया की शीर्षस्थ अर्थव्यवस्थाओं में शामिल तीन प्रमुख विकसित देश – अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जिन्हें बाकी दुनिया के नागरिक आज भी अपनी मंजिल बनाने का सपना देखते हैं, वही देश अपने सपने पूरे करने का माध्यम बनने के लिए भारत का शुक्रिया कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सौदे को ऐतिहासिक बताया है तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों उनके देश पर विश्वास कर आपसी संबंधों में एक नए चरण की शुरुआत के लिए प्रधानमंत्री मोदी के सजदे में दोहरे हुए जा रहे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का भी यही हाल है जो दशकों में भारत के साथ हुए इस सबसे बड़े निर्यात सौदे के बूते अब अपनी पिछ़ड़ रही अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के मंसूबे बांध रहे हैं।
अमीर अर्थव्यवस्थाएं बिना स्वार्थ के दूसरे देशों की तारीफ नहीं करती। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन का हाल भी ऐसा ही है। दरअसल एविएशन सेक्टर में ‘मदर ऑफ ऑल डील’ कही जा रही इस डील ने मुश्किलों से घिरे इन देशों को एक नई संजीवनी दी है। अमेरिका में इस समय मंदी के बादल छाए हुए हैं। पिछले एक साल में वहां करीब 3 लाख से ज्यादा लोगों की नौकरी जा चुकी है। आने वाले दिनों में हर 10 में 6 कंपनियां अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालेगी। ऐसे वक्त में हुई इस डील से अमेरिका के 44 राज्यों के 10 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। ब्रिटेन के हालत भी खराब हैं। वहां 2023-24 में अर्थव्यवस्था के सिर्फ 0.3 फीसद बढ़ने का अनुमान है और लगातार छंटनी होने से बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां भी जा रही हैं। चूंकि ब्रिटिश कंपनी रोल्स रॉयस ही एयर बस का इंजन बनाती है, इसलिए यह डील ब्रिटेन में भी रोजगार के लाखों नए अवसर खोलेगी।
यह विचार ही कितना गौरवान्वित करता है कि यह सब कुछ एक भारतीय कंपनी की विस्तार की योजना और भारतीय नेतृत्व की दूरदर्शिता के कारण हो रहा है। कल्पना करिए उस दृश्य का जब इस डील के मौके पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों वीडियो कॉल पर और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ऑडियो कॉल पर प्रधानमंत्री मोदी से अपनी खुशी बांटने के लिए लालायित थे और सौदे के एक और लाभार्थी ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के उत्साह को समेटने के लिए ट्विटर के शब्दों की सीमा आड़े आ रही थी।
बेशक ये घटनाक्रम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। ये सौदा ऐसे समय में आया है जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की दिशा में अपने प्रयासों को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है। निकट भविष्य में भारत विमानन क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बनने जा रहा है। अगले 15 वर्षों में 2,000 से अधिक विमानों की आवश्यकता होगी। पिछले आठ वर्षों में देश में हवाई अड्डों की संख्या 74 से बढ़कर 147 हो गई है। उड़ान योजना के माध्यम से देश के दूर-दराज के हिस्सों को भी हवाई संपर्क से जोड़ा जा रहा है, जिससे लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिल रहा है। ‘मेक इन इंडिया – मेक फॉर द वर्ल्ड’ का विजन एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी संभावनाओं के नए द्वार खोल रहा है।
आज दुनिया समझ रही है कि भारत का मतलब बिजनेस है और इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़ी भूमिका है। आज भारत जी-20 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, नंबर एक स्मार्टफोन डेटा उपभोक्ता, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या के साथ-साथ वैश्विक खुदरा सूचकांक में दूसरा और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इको-सिस्टम वाला देश है। पिछले वित्त वर्ष में देश में अब तक का सर्वाधिक विदेशी निवेश आया है। यह सब कुछ भारत पर दुनिया के बढ़ते भरोसे के कारण ही तो है। महामारी की भयानक भविष्यवाणी को खारिज करना हो तो भारत का बनाया टीका दुनिया का सुरक्षा कवच बनता है। दुनिया पर विश्व युद्ध का खतरा मंडराता है तो रूस-यूक्रेन को साधने के लिए भारत का मुंह देखा जाता है। चीन का चक्रव्यूह तोड़ना हो तो अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया भारत की दौड़ लगाते हैं। श्रीलंका जैसा पड़ोसी आर्थिक रूप से तबाह होता है तो भारत की वित्तीय सहायता मील का पत्थर साबित होती है। जब कुदरत के गुस्से से जमीन डोलती है तो तुर्की के भरोसे पर भारत चट्टान की तरह अडिग होकर सामने आता है।
आत्मनिर्भरता के मार्ग पर कुलांचे भर रहा भारत आज अपने नेतृत्व को रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म के मंत्र से परिभाषित कर रहा है। अपनी सटीक टिप्पणियों के लिए खेल जगत में विख्यात क्रिकेट कमेंटेटर हर्ष भोगले ने ठीक ही कहा है कि किसने सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति आधिकारिक बयान जारी कर इस बात की स्वीकारोक्ति करेगा कि एक भारतीय कंपनी 10 लाख अमेरिकियों को रोजगार देगी। बदलाव की एक बानगी यह भी है कि जहां यूपीए के दौर में छोटी-छोटी डील भी भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े कांड की भेंट चढ़ जाती थी, वहीं आज देश में इतनी बड़ी डील भी पूरी पारदर्शिता के साथ संपन्न हो जाती है। कार्य संस्कृति में आए परिवर्तन का आलम यह है कि इस डील से जुड़े कुछ अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में मुझ से ये बात स्वीकारी कि जितनी बड़ी संख्या में और जिस तेजी से इस सौदे की फाइलें आगे बढ़ी हैं, वैसा उनकी स्मृति में देश में पहले कभी नहीं हुआ।
नया भारत बड़े सपने देखने और अपने लक्ष्यों को हासिल करने का साहस दिखा रहा है। पहले सिर्फ गरीबी, विदेशों से पैसे मांगने और किसी तरह गुजारा करने की चर्चा होती थी। अब दुनिया भर में भारत को लेकर सकारात्मकता है। देश में एक असाधारण आत्मविश्वास है जो अपनी भविष्यवादी दृष्टि और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ अच्छी प्रगति कर रहा है। वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच, भारत ने बुनियादी ढांचे में निवेश करना जारी रखा है जो एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ये राष्ट्र साधना के लिए समर्पित प्रयासों का ही सुफल है कि कभी गेहूं के लिए भारत को ‘भिखारियों का मुल्क’ बताने वाला अमेरिका भी आज अपनी चुनौतियों के समाधान की राह तलाशते हुए भारत के सामने याचक की भूमिका में आ खड़ा हुआ है।
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