नज़रिया

कोई और श्रद्धा न चढ़ जाए बलि!

श्रद्धा और आफताब। परिवार, धर्म, समाज की बंदिशों से बेपरवाह, बेपनाह मोहब्बत, नफरत, धोखे और कत्ल की खौफनाक दास्तान। नफरत की पराकाष्ठा ऐसी कि मोहब्बत के ही 35 टुकड़े कर दिए। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस वारदात ने हर उस मां बाप के दिल में खौफ पैदा कर दिया है जिनके घर में बेटियां हैं।

श्रद्धा-आफताब की मोहब्बत, लिव-इन और हत्या वाकई एक घटना मात्र नहीं रह गई है। इसने हर मां-बाप को डराया है और मां-बाप ने कठोर अनुशासन के शिकंजे में मजहब को घुसाया है। भाई की फिक्रमंदी अब बहनों के लिए और सख्त सजा बनने वाली है जो अलग-अलग तरीके से नई-नई कहानियों में दिखेगी।

मोहब्बत, धोखा और नृशंस हत्या की घटनाओं वाली सुर्खियां मीडिया में छाई हुई हैं। नई घटनाएं भी आ रही हैं और पुरानी घटनाओं को इकट्ठा करके भी परोसा जा रहा है। इनमें से कुछेक घटनाओं पर गौर करते हैं-

उत्तर प्रदेश के मेरठ में पल्लवपुरम में एक लड़की ने शिकायत दर्ज कराई है कि उसका कथित प्रेमी मुजम्मिल धमकी दे रहा है कि वह उसकी भी हालत श्रद्धा जैसी कर देगा। तीन बार गर्भपात करा चुकी इस लड़की का आरोप है कि युवक ने हिन्दू बनकर उसे मोहब्बत के जाल में फंसाया और धोखा दिया।

2010 में राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा को देहरादून की पॉश कॉलोनी में मार डाला था। फिर उसने डीप फ्रीजर खरीदा, लाश के 72 टुकड़े किए और उन्हें छिपाया। राजफाश होने से पहले तक वह आधा शरीर जंगल में फेंक चुका था। अपने घर में बच्चों को उसने भनक तक लगने नहीं दी।

2008 में मुंबई में टीवी प्रोड्यूसर नीरज ग्रोवर की हत्या उसकी एक्ट्रेस प्रेमिका मारिया सुसाइराज और उसके मंगेतर मैथ्यू ने मिलकर कर दी थी। हत्या के बाद उसके 300 टुकड़े कर दिए गए थे। लाश के सामने दोनों ने संबंध बनाए थे और लाश जंगल में ले जाकर जला डाला था।

यूपी की राजधानी लखनऊ से खबर है कि सुफियान नामक 25 हजार रुपये के इनामी को एनकाउंटर के बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उस पर पड़ोस की निधि गुप्ता पर जबरन धर्मांतरण कराने की कोशिश और छत से फेंककर हत्या करने का आरोप है।

मथुरा में यमुना एक्सप्रेस वे के पास एक सूटकेस ट्रॉली में लड़की की लाश मिली है। हाथ में कलावा है, पैरों के अंगूठे में ब्लू नेल पॉलिश है। पहनावे से लड़की हिन्दू लगती है।

बांग्लादेश से खबर आ रही है कि अबू बकर नामक युवक ने एक लड़की से प्रेम किया। उसकी हत्या की। फिर घर में रहते दूसरी लड़की से संबंध भी बनाए। दोनों लड़कियां हिन्दू हैं और लाश काटने, छिपाने का ढंग भी लगभग वैसा ही है जैसा आफताब-श्रद्धा मामले में दिखा।

संभव है कि इनमें से कुछ घटनाएं लव जिहाद का चरित्र लिए हुए हों। लेकिन, ऐसी घटनाएं जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की परवाह विरले ही करती हैं। इन मामलों में अमूमन शिकार लड़कियां ही होती हैं। क्यों होता है ऐसा?

बुनियादी बात यह है कि लड़की अपने घर से दूर होती है। नाराज रिश्तेदार दूरी बना लेते हैं। ऐसे में मोहब्बत का इकलौता भरोसा भी जब टूटता है, साजिश होती है, क्रूरता होती है तो इन नई परिस्थितियों का सामना करने के लिहाज से लड़की कतई तैयार नहीं होती। वह बिल्कुल अकेली रह जाती है। भावनात्मक रूप से तो वह टूट जाती है। प्रतिकार करने की क्षमता तक क्षीण हो जाती है।

दूसरी ओर रिश्ते में खटास आते ही लड़के को लगता है कि लड़की की मदद के लिए कोई नहीं आएगा। उसका मनोबल बढ़ जाता है। पुरुषवादी मानसिकता सिर चढ़कर बोलने लगती है। कब वह अपराधी हो जाता है, क्रूरता करने लगता है और कत्ल करने तक पहुंच जाता है इसका न तो उसे भान रहता है और न ही कभी इस पर अंकुश लगाने का भाव ही उसमें पैदा होता है। खुद को, समाज को और कानून को धोखा देने की मन:स्थिति में आने में हॉलीवुड की फिल्में भी हौसला देती हैं। मगर, सबसे बड़ा कारण सामाजिक असुरक्षा की स्थितियां हैं।

श्रद्धा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। श्रद्धा ने दूसरे धर्म के एक युवक से मोहब्बत में परिवार से बगावत करने की हिम्मत दिखाई, घर छोड़ दिया, समाज की फिक्र किए बगैर युवक के साथ लिव-इन में रहने लगी, लेकिन जब आफताब की सच्चाई उसके सामने आई तो वो उससे बगावत कर वापस घर लौटने की हिम्मत नहीं कर पाई। ऐसे में सवाल लड़की के परिवार और माता पिता पर भी खड़े होते हैं कि क्या लड़की से सारे संबंध तोड़ लेना सही है? अगर श्रद्धा के माता पिता उसके संपर्क में होते तो शायद पहली बार ही जब आफताब ने श्रद्धा के साथ मारपीट की तभी वो वापस लौट जाती या उसकी शिकायत करती।

जिन घटनाओं को हम क्रूर बताते हुए चर्चा कर रहे हैं उनमें हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के तौर-तरीके में वहशियाना क्रूरता है। मगर, दहेज हत्या की घटनाओं में जो क्रूरता होती है, वह क्या कम वहशियाना होती हैं? दहेज हत्या में कई बार तो समूचा ससुराली परिवार शामिल होता है। बहुएं जिन्दा जला दी जाती हैं। हत्या से पहले यातनाओं का पूरा चक्र चलता है। वास्तव में दहेज हत्या जैसी घटना के पीछे भी मूल वजह लड़की का अपने मायके से कट जाना ही होता है। चाहे इसके पीछे वजह जो हों, और जितनी हों।

श्रद्धा और आफताब मामले पर गौर करें तो लड़की की हत्या मई महीने में हो चुकी थी। लेकिन राज खुला नवंबर में। छह महीने का समय बताता है कि श्रद्धा कितनी अकेली, बेबस, लाचार और अपने दोस्त, परिवार एवं रिश्तेदारों से अलग-थलग थी। आफताब कातिल है लेकिन क्या वे लोग जो श्रद्धा के अपने थे, गुनहगार नहीं हैं?

केन्द्रीय मंत्री कौशल किशोर ने ऐसी हत्याओं के लिए लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली लड़कियों को ही जिम्मेदार ठहराया है। इस विषय पर भी थोड़ा ठहरकर सोचें। मान लें कि लिव-इन-रिलेशनशिप ही ऐसी घटनाओं के मूल में है। तब भी क्या इसके लिए सिर्फ लड़की को दोष दिया जाना उचित है? ऐसा करके क्या हम कातिल लड़के को पूरी तरह से बख्श नहीं दे रहे हैं?

खास तौर पर जब केन्द्र सरकार के मंत्री ऐसे बयान दें तो इसका एक और मतलब यह भी होता है कि देश में कानून-व्यवस्था और न्याय व्यवस्था की की भूमिका संदेह के घेरे में है। श्रद्धा, अनुपमा जैसी महिलाओं की हत्या अगर कोई दुर्दांत अपराधी करे तो समझ आता है लेकिन जब ऐसी घटनाएं आफताब, राजेश गुलाटी जैसे पढ़े लिखे लोग करते हैं तो मामला संगीन हो जाता है। और फिर सवाल उठता है कि न जाने कितने आफताब आसपास होंगे जिनकी पहचान कर पाना मुश्किल है, इसलिए खतरा भी कई गुना ज्यादा है। ये एक मानसिक समस्या है। यही वजह है कि पिछले कई मामलों में दोषियों को कड़ी सजा मिलने के बावजूद ऐसे क्राइम की पुनरावृति देखने को मिलती है। राजेश गुलाटी ने 2010 में प्रेमिका से पत्नी बनी अनुपमा के 72 टुकड़े किए। उसे आजीवन कारावास की सजा हुई लेकिन 12 साल बाद आफताब ने अपनी प्रेमिका श्रद्धा को ठीक उसी तरह मारकर उसकी लाश के 35 टुकड़े कर दिए।

निश्चित रूप से ऐसी घटनाओं की पूर्व सूचना नहीं होती और इसे घटित होने से प्रत्यक्ष रूप में रोक पाना संभव नहीं है। इससे बचने का एक ही उपाय है सजगता, परिवार का साथ और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत। पार्टनर की पहली गलती को बिना नजरंदाज किए उसकी शिकायत करना ऐसी किसी भी पटकथा का दुखद अंत रोक सकता है। ऐसी घटनाओं को मजहब से जोड़कर देखना भी गलत है, क्योंकि ऐसी कहानी के खलनायक अगर आफताब हैं तो राजेश गुलाटी भी। श्रद्धा आपके बीच भी हो सकती है, उसका खौफनाक अंजाम न हो इसलिए सतर्क रहिए और उसके भरोसेमंद बनिए।

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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