महाभारत और रामायण. सनातन धर्म के ये दो प्रमुख ग्रंथ हैं. ये विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य भी हैं, जिनके पात्र, कथाएं और उपदेश मनुष्यों के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेंगे. रामायण के केंद्र में परब्रह्म-परमेश्वर के मानवावतार श्रीराम हैं. वहीं, उसके हजारों वर्षों बाद रचे गए महाभारत ग्रंथ में परम लक्ष्य और चरम बिंदु श्रीकृष्ण माने गए हैं.
धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि परमेश्वर ने श्रीराम के रूप में अवतरित होने के उपरांत द्वापर युग में अगला अवतार श्रीकृष्ण का लिया था.
Bharatexpress.com पर यहां हम महाभारत का उल्लेख करेंगे, जिसके बारे में विद्वानों का मत है कि महाभारत केवल एक महाकाव्य नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता का एक अनमोल खजाना है, जो जीवन के हर पहलू को उजागर करता है.
यह ग्रंथ न सिर्फ हमारे इतिहास की कहानी है, बल्कि यह मानवता के मूल्य, नैतिकता, धर्म और दर्शन का भी अक्स है. महाभारत को पढ़ना एक ऐसी यात्रा है, जो आत्मा को छू जाती है और जीवन के गहरे अर्थों को समझने में मदद करती है.
अब से लगभग 5 हजार वर्ष पहले महाभारत ग्रंथ की रचना हुई, तो इसे ‘जय संहिता’ कहा जाता था. चूंकि इसमें भारतभूमि का दर्शन अधिक है, इसलिए इसे महाभारत कहा जाने लगा. यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है, जिसमें 1,10,000 श्लोक हैं, जो ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ के मुकाबले 10 गुना ज्यादा हैं.
महाभारत को ‘पंचम वेद’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें जीवन के रहस्यों, धर्म, कर्तव्य, प्रेम, संघर्ष और मोक्ष के सिद्धांतों का बखान है. यह ग्रंथ मानव प्रकृति और ब्रह्मांड के अनंत सत्य को उजागर करता है.
महाभारत के पात्रों (विशेषकर पांडवों) की दुविधा हमें दिखाती है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी व्यक्ति अपने धर्म और कर्तव्य को निभाता है. युधिष्ठिर का सत्य पर अडिग रहना और कर्ण का अपनी निष्ठा के प्रति समर्पण, आज भी प्रेरणा देते हैं.
यह महाकाव्य न सिर्फ युद्ध और राजनीति की कहानी है, बल्कि इसमें प्रेम, विश्वासघात, मित्रता, परिवार, और आत्म-खोज के भी अनेक पहलू छुपे हैं. कुरुक्षेत्र में युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन का अपने ही परिवार से लड़ने का संकोच और भगवान कृष्ण का उपदेश हमें सिखाता है कि जीवन में सही और गलत के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है.
महाभारत-काल में समाज विविधता और जटिलता से भरा हुआ था. वो समयकाल न केवल युद्धों का था, बल्कि आंतरिक संघर्षों, मूल्य प्रणाली के टकराव और नायकों के जीवन का भी था. उस काल में राजा और सेनापति न केवल युद्ध के रणनीतिकार थे, बल्कि धर्म के रक्षक भी थे.
समाज में तब भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ग थे, लेकिन महाभारत-काल ने यह भी दिखाया कि धर्म किसी जाति से नहीं, बल्कि कर्म और गुणों से परिभाषित होता है.
महाभारत ग्रंथ के पात्र केवल नायक नहीं हैं, बल्कि वे मानव प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं:
युधिष्ठिर: धर्मराज के नाम से प्रसिद्ध, युधिष्ठिर ने हर परिस्थिति में सत्य और धर्म का पालन किया.
अर्जुन: धर्म के प्रति समर्पित एक कुशल योद्धा, जिन्होंने भगवान कृष्ण के उपदेशों से आत्मज्ञान प्राप्त किया.
कर्ण: एक निष्ठावान मित्र और तीरंदाजी का महारथी, जिसने अपने जीवन में बड़े संघर्षों का सामना किया.
दुर्योधन: जो बड़ा अधर्मी होने के बावजूद अपनी शक्ति और नेतृत्व के लिए भी जाना जाता है.
द्रौपदी: शक्ति और आत्म-सम्मान की प्रतीक, जिसकी हिम्मत ने पांडवों के संघर्ष को आगे बढ़ाया.
महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है भगवद्गीता, जो कुरुक्षेत्र के मैदान में पहुंचे अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच का संवाद है. यह संवाद केवल युद्ध के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन के गहरे सिद्धांतों पर आधारित है. जिसमें 3 योग बतलाए गए:-
कर्म योग: बिना किसी फल की आशा के अपने कर्तव्यों को निभाना.
भक्ति योग: भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम के माध्यम से आत्मा का उद्धार.
ज्ञान योग: आत्मज्ञान और ब्रह्म के स्वरूप को समझना.
कुरुक्षेत्र का युद्ध सिर्फ भूमि के लिए नहीं था, बल्कि यह धर्म (अच्छाई) और अधर्म (बुराई) के बीच का संघर्ष था. इस युद्ध से हमें सीख मिलती है कि-
महाभारत के हर पात्र, हर घटना और हर संवाद हमें कुछ न कुछ सिखाता है:
धैर्य और सहनशीलता: कठिनाइयों के बावजूद अर्जुन ने कभी हार नहीं मानी.
सत्य का महत्व: युधिष्ठिर का सत्य पर अडिग रहना हमें दिखाता है कि सत्य हमेशा श्रेष्ठ होता है.
आत्म-विश्लेषण: भगवद्गीता के उपदेश हमें आत्म-निरीक्षण और आत्म-ज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं.
मित्रता और निष्ठा: कर्ण और दुर्योधन की मित्रता, हालांकि गलत दिशा में थी, लेकिन निष्ठा की गहराई दिखाती है.
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