सियासी किस्से

Siyasi Kissa: जब बेटे के फोटो कांड ने बाबू जगजीवन राम से छीन लिया था प्रधानमंत्री बनने का मौका!

Siyasi Kissa: इंदिरा गांधी 1977 के आम चुनावों में हार चुकी थीं और केंद्रीय सत्ता उनसे दूर हो चुकी थी. तब मोरारजी देसाई देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, लेकिन उनके बेटे क्रांति देसाई का हद से ज्यादा सत्ता में हस्तक्षेप और पार्टी के अन्य दिग्गज नेताओं के आपसी विवाद के कारण ऐसा लगने लगा था कि जनता पार्टी की सरकार अब कुछ दिनों की ही मेहमान है.

दूसरी ओर इंदिरा भी सत्ता में दोबारा वापसी के लिए तमाम गुणा-गणित लगा रही थीं. इन सबके बीच तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम का दावा भी प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत माना जा रहा था. 5 अप्रैल 1908 को बाबू जगजीवन राम का जन्म ​हुआ था. ऐसे में उनसे जुड़ा ये किस्सा उस समय की राजनीतिक खींचतान की यादों को ताजा करता है.

कहा जा रहा था कि अगर मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार गिरती है तो जगजीवन राम सरकार बना लेंगे, क्योंकि उनके पास तब जनता पार्टी के 205 सांसदों का समर्थन प्राप्त था और बहुमत के हिसाब से उन्हें 65 और सांसदों की जरूरत थी.

राजनीतिक जानकारों का कहना था कि वह इसका आसानी से इंतजाम कर लेते, लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश में किसानों के कद्दावर नेता माने जाने वाले नेता चौधरी चरण सिंह भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे. उनके खेमे के लोग बिल्कुल नहीं चाहते थे कि जगजीवन राम पीएम की कुर्सी तक पहुंचे.

इन सबके बीच जगजीवन राम की किस्मत ने भी उनका साथ छोड़ दिया था, क्योंकि उनके बेटे की न्यूड तस्वीर एक पत्रिका ने छाप दी थी और इस मामले का राजनीतिक फायदा कांग्रेस ने उठाया और बेटे के न्यूड फोटो कांड के कारण जगजीवन राम के रूप में देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलते-मिलते रह गया.


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सूर्या इंडिया में छपी थी न्यूड तस्वीर

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि जिस पत्रिका में बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम की न्यूड तस्वीर छपी थी, उस पत्रिका का नाम सूर्या इंडिया था. इसकी संपादक और मालकिन इंदिरा गांधी की छोटी बहू मेनका गांधी थीं.

अक्टूबर 1978 में जब सुरेश राम की न्यूड तस्वीर वाली पत्रिका का एडिशन आया था तो लोगों में पत्रिका खरीदने की मार मच गई थी. इसमें सुरेश राम अपनी प्रेमिका के साथ आपत्तिजनक हालत में नजर आ रहे थे. तस्वीर पत्रिका के सेंटर स्प्रेड यानी बीच के दोनों पन्नों पर प्रकाशित की गई थी.

इसी तस्वीर ने जगजीवन राम के राजनीतिक करिअर को एक झटके में खत्म कर दिया था. बताया जाता है कि पत्रिका को ये तस्वीर चौधरी चरण सिंह के खेमे के युवा नेताओं द्वारा उपलब्ध कराया गया था. जब ये तस्वीर छपी थी तब सुरेश राम शादीशुदा थे और उनकी बेटी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में पढ़ती थीं.

शर्म की वजह से उन्होंने यूनिवर्सिटी तक जाना छोड़ दिया था. हालांकि बाद में उनकी बेटी मेधावी कीर्ति हरियाणा से चुनाव जीतकर मंत्री भी बनी थीं.

चौधरी चरण सिंह पर लगे थे आरोप

इसके बाद चौधरी चरण सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने ये सब जगजीवन राम को राजनीति में पीछे धकेलने के लिए किया था. जहां एक ओर राजनीति में ये खींचतान जारी थी तो दूसरी ओर इंदिरा इन सबका फायदा उठाने की कोशिश में लगी थीं.

एक काम तो उनके परिवार की पत्रिका ने कर ही दिया था. उनकी छवि धूमिल हो चुकी थी. इस फोटो के छपने में मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह का भी हाथ होने की चर्चा सियासी गलियारों में खूब हुई थी. उस समय खुशवंत कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड के संपादक और सूर्या इंडिया के कंसल्टिंग एडिटर थे.

तस्वीर को लेकर क्या लिखा है खुशवंत ने

इस तस्वीर कांड को लेकर खुशवंत सिंह ने अपनी किताब ‘बिहाइंड द सीन’ में लिखा है. इसके अनुसार, एक सुबह जब वह नेशनल हेराल्ड के दफ्तर पहुंचे तो उनकी मेज पर एक लिफाफा रखा था, जिस पर किसी का अता-पता नहीं लिखा था. लिफाफे में सुरेश राम के एक लड़की के साथ सेक्स संबंध बनाते हुए तस्वीर थी.

खुशवंत ने किताब में आगे लिखा है कि इन तस्वीरों को लेकर जगजीवन राम को पता चल गया था. शाम को एक व्यक्ति उनसे (खुशवंत) से मिलने आया. उसने बताया कि उसे जगजीवन राम ने भेजा है. उसने कहा कि अगर ये फोटो नहीं छापी जाती है तो जगजीवन राम तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे.

इंदिरा ने रख दिया था ये प्रस्ताव

किताब में आगे लिखा गया कि इंदिरा गांधी को जब ये जानकारी दी गई तो उन्होंने कहा कि जगजीवन राम पहले मोरारजी को छोड़कर कांग्रेस में आएं, तब फोटो को नहीं छापने के बारे में सोचा जाएगा. खुशवंत सिंह लिखते हैं कि वह उन फोटो को छापने को लेकर सहमत नहीं थे, क्योंकि वे पोर्न कैटेगरी की तस्वीरें थीं. हालांकि खुशवंत की इस बात पर किसी ने भरोसा नहीं किया था.

मुश्किल से छपी थी पत्रिका

बताया जाता है कि उस समय इस तरह की तस्वीर को किसी पत्रिका में छपना इतना आसान नहीं था. उस समय सूर्या इंडिया को एलायड प्रिंटर छापता था, लेकिन जैसे ही पत्रिका के सेंटर स्प्रेड पेज पर न्यूड फोटो दिखाई दी तो उसने भी छापने से मना कर दिया. इसके बाद पत्रिका को राकेश प्रिंटर से छपवाया गया था और इसको लेकर किसी को कानो-कान खबर तक नहीं थी.

इतना ही नहीं, सूर्या प्रबंधन को इस बार का डर था कि पत्रिका को थोक कारोबारियों से जगजीवन राम के लोग छीन कर बर्बाद कर सकते हैं. जनता तक पत्रिका पहुंचने नहीं देंगे. इसलिए उस दिन पत्रिका को सीधे स्टालों पर भिजवाया गया था.

जबरन लिए गए थे न्यूड फोटो

इस तस्वीर को लेकर चौधरी चरण सिंह खेमे के युवा नेताओं ओमपाल सिंह और केसी त्यागी के साथ ही एपी सिंह पर भी आरोप लगाया गया था. इस मामले को लेकर अगस्त 1978 में दिल्ली के कश्मीरी गेट पुलिस थाने में एक एफआईआर भी दर्ज की गई थी.

कहा जाता है कि 21 अगस्त 1978 को एक युवक कश्मीरी गेट थाने पहुंचा और उसने पुलिस को अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी. युवक ने बताया कि पिछली रात को वह अपनी महिला दोस्त के साथ निगमबोध के नजदीक रिंग रोड से अपनी मर्सिडीज से जा रहा था. इस दौरान उसे तीन-चार लोगों ने अपनी जीप से घेर लिया और जबरदस्ती वजीराबाद होते हुए गाजियाबाद के लोनी ले गए.

युवक ने बताया कि यहां एक स्कूल में उसके साथ मारपीट की और फिर उसकी महिला मित्र के साथ जबरन न्यूड तस्वीरें ले ली गईं. युवक ने ये भी आरोप लगाया था मारपीट करने वालों ने उससे जबरन तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम एक लेटर लिखवाया था और कुछ सादे कागजों पर उसके हस्ताक्षर भी ले लिए थे. इसके बाद उसे रात के करीब 3 बजे छोड़ा गया था. कहा जाता है कि ये युवक सुरेश राम थे.

पुलिस ने की थी कार्रवाई

शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दूसरे ही दिन वीआईपी साउथ एवेन्यू स्थित अखिल भारतीय किसान संघ के दफ्तर पर छापेमारी करके ओमपाल सिंह को गिरफ्तार किया था. केसी त्यागी और एपी सिंह के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज की गई थी.

छापामारी के बाद किसान संघ के नेता मनीराम बागड़ी ने मीडिया से कहा था कि पुलिस कुछ फोटो और दस्तावेज की खोज कर रही थी. हालांकि ये तस्वीरें तब पुलिस को नहीं मिले थे बता दें कि मनीराम तब जनता पार्टी के महासचिव थे और चौधरी चरण सिंह के बेहद करीबी थे. अखिल भारतीय किसान संघ की स्थापना चौधरी चरण सिंह ने की थी.

कांग्रेस ने मोड़ दिया था राजनीति का रुख

इन न्यूड तस्वीरों के जरिये कांग्रेस ने उस वक्त की राजनीति के रुख को मोड़ दिया था. जनता पार्टी में शामिल होने के पहले जगजीवन राम कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और प्रधानमंत्री की दौड़ में आगे चल रहे थे लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने उनके राजनीतिक करिअर पर ही विराम लगा दिया था.

इसके लिए चौधरी चरण सिंह को भी जिम्मेदार माना जाता है. हालांकि इसका लाभ भी उनको मिला. जनता पार्टी की अंदरूनी कलह की वजह से मोरारजी देसाई को 15 जुलाई 1979 को इस्तीफा देना पड़ा और फिर 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने थे.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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