Siyasi Kissa: 2024 का लोकसभा चुनाव एक बार फिर से भाजपा (BJP) और रालोद (RLD) के गठबंधन का साक्षी बन गया है और उस इतिहास को दोहराने जा रहा है, जिसकी नींव पूर्व प्रधानमंत्रियों – चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) – ने कभी रखी थी.
उस समय की राजनीति में इन दोनों हस्तियों को राजनीति का विपरीत ध्रुव कहा जाता था, लेकिन ये दोनों एक मुद्दे पर एकजुट भी हो गए थे, ये मुद्दा गोमांस का था. तत्कालीन राजनीति में विपक्षी दलों की एकता में जान डालने के लिए भी इन दोनों नेताओं ने काम किया था और उस समय की सियासत में अपने विचारों से हलचल मचा दी थी.
आज भले ही भाजपा और रालोद के गठबंधन को लेकर राजनीति में तरह-तरह की बातें होती हों, लेकिन ये रिश्ता नया नहीं है. दूसरा, इसे एक बड़ा संयोग ही माना जाएगा कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न भी उस समय दिया गया है जब केंद्र में भाजपा की सरकार है. अगर ये कहा जाए कि इन पार्टियों के अस्तित्व में आने से पहले ही देशहित के लिए इन दोनों पार्टियों के प्रमुख एकजुट हुए थे, तो गलत नहीं होगा.
रालोद की राष्ट्रीय महासचिव अनुपम मिश्रा ने एक साक्षात्कार में कहा है कि कभी ये दोनों नेता देश हित के लिए एकजुट हुए थे, जब विपक्षी एकता का दम घुटने लगा था. वो वक्त 1983 का था. तब गठबंधन की नींव रोपी गई और गठबंधन समन्वय समिति के अध्यक्ष और नेता सदन चौधरी चरण सिंह को बनाए जाने की सिफारिश अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. तो चौधरी चरण सिंह ने अटल को संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव किया था. यह ऐतिहासिक पल था, क्योंकि इसी दिन संसद में एनडीए के गठन की घोषणा की गई थी.
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देश में 1975 में आपातकाल लगा था और लोग इससे इतना परेशान हो गए कि जब ये हटा तो एक नई राजनीतिक क्रांति देखने को मिली, जिसका नेतृत्व समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण कर रहे थे. जनता को आपातकाल ने इस कदर परेशान कर दिया था कि उन्होंने इसका विरोध अपने वोट के जरिये किया और फिर 1977 में केंद्र में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, लेकिन कई मतभेदों के कारण अधिक दिन तक ये सरकार नहीं चल सकी. फिर 1980 में इंदिरा गांधी ने पूर्ण बहुमत के साथ वापसी करते हुए दोबारा सरकार बना ली थी.
यही वो समय था जब विपक्षी दलों की हिम्मत टूटने लगी थी. इंदिरा की वापसी को विपक्षी दल नए संकट के रूप में देख रहे थे. तब चौधरी चरण सिंह और दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्षी एकता को मजबूत करने की ठानी.
कहा जाता है कि ये दोनों उस समय की राजनीति के दो अलग ध्रुव की तरह थे, लेकिन दोनों ही गोमांस के विरोध में एक साथ आए. जानकार बताते हैं कि 26 अक्टूबर 1983 को गोमांस के विरोध में अटल बिहारी वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह ने एक साथ धरना दिया था. ये धरना प्रदर्शन इतना बड़ा था कि देश की राजनीति में भूचाल आ गया था और इस घटना ने विपक्षी दलों की राजनीति को एक नई दिशा दी थी.
विपक्षी दलों की एकता को तब और हवा मिल गई, जब 1983 में ही आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव और कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े ने गैर कांग्रेसी सरकार बनाई और दोनों मुख्यमंत्री बने. इसके बाद से अटल और चरण सिंह ने विपक्षी दलों की एकता में नई जान फूंकी और भविष्य की राजनीति को नई दिशा दी.
बीते 31 मार्च को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक बार फिर भाजपा और रालोद का साथ नजर आया. चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत सिंह इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक साथ एक ही मंच पर नजर आए. कार्यक्रम का नाम भारत रत्न चौधरी चरण सिंह गौरव समारोह रखा गया था.
इससे एक दिन पहले 30 मार्च को ही चौधरी चरण सिंह को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. इस सम्मान को राष्ट्रपति से लेने के लिए जयंत सिंह खुद दिल्ली पहुंचे थे.
-भारत एक्सप्रेस
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