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Siyasi Kissa: 1957 में जब 3 सीटों से Atal Bihari Vajpayee ने लड़ा था लोकसभा चुनाव, यहां से हो गई थी जमानत जब्त

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हम आपको सियासत के गलियारों के उन किस्सों से रूबरू करा रहे हैं, जो इतिहास में अलग महत्व रखते हैं. ‘सियासी किस्सा’ नाम की इस सीरीज में आज हम आपको भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिग्गज ​नेता अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) से जुड़ी एक कहानी सुनाने जा रहे हैं.

दिवंगत भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने सियासत के मैदान में लंबी पारी खेली है. उनसे जुड़ा ये किस्सा साल 1957 का है, जब उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था. आजादी के बाद से यह देश का दूसरा लोकसभा चुनाव था. इस चुनाव में वाजपेयी भाजपा का अभिभावक माने जाने वाले दल भारतीय जनसंघ (BJS) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. इतना ही नहीं उन्होंने 3 सीटों पर एक साथ चुनाव लड़ा था. ये तीनों सीटें उत्तर प्रदेश में थीं.

वाजपेयी ने 4 राज्यों की 6 लोकसभा सीटों से संसद की नुमाइंदगी की है. इस दौरान उन्होंने हार का स्वाद भी चखा तो जीत के जश्न के साथ अपनी पार्टी को नई ऊंचाइयों पर भी ले गए. वाजपेयी 10 बार लोकसभा के सदस्य रहे – तीसरी, 8वीं और 9वीं लोकसभा को छोड़कर दूसरी से 14वीं लोकसभा तक में वे शामिल रहे थे.

3 बार चुने गए थे प्रधानमंत्री

वाजपेयी को अपनी दृढ़ राजनीतिक मान्यताओं के लिए जाना जाता था. उन्हें जनता का नेता कहा जाता है. 1996 के आम चुनावों में भाजपा कुल 471 सीटों में से 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. उस समय वाजपेयी लखनऊ से चुने गए थे.

उन्होंने 16 मई, 1996 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली – ऐसा करने वाले वे पहले भाजपा नेता थे – लेकिन वे केवल 13 दिनों तक ही पद पर रह सके. चूंकि वे सदन में अपनी सरकार का बहुमत साबित नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने 27 मई 1996 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.


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इसके बाद 12वीं लोकसभा के लिए चुनाव 1998 में हुए, जिसमें भाजपा ने कुल 388 सीटों पर चुनाव लड़कर 182 सीटें जीती और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बहुदलीय गठबंधन, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का नेतृत्व करते हुए वाजपेयी ने फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि इस बार भी उनकी सरकार मात्र 13 महीने तक चली. मात्र एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी.

फिर 1999 में जब 13वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव हुए, तो भाजपा ने फिर से 339 सीटों पर चुनाव लड़कर 182 सीटें जीतीं. वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद संभाला और 2004 के आम चुनावों तक पद पर बने रहे, जिसमें एनडीए हार गया. राजनेता के रूप में व्यापक रूप से सम्मानित वाजपेयी एक लेखक और कवि भी थे, जो अपने शानदार वक्तत्व कौशल के लिए जाने जाते थे.

अक्टूबर 1999 के संसदीय चुनाव के बाद प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ ही वे जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार तीन लोकसभाओं के माध्यम से भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने वाले पहले और एकमात्र व्यक्ति बने थे. वाजपेयी, इंदिरा गांधी के बाद पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपनी पार्टी को लगातार चुनावों में जीत दिलाई थी.

4 राज्यों से चुने गए एकमात्र सांसद

1957 में पहली बार सांसद बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी 5वीं, 6वीं और 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए और फिर 10वीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा में भी अपना योगदान दिया. इसके बाद 1962 और 1986 में राज्यसभा के लिए चुने गए.

2004 में वे लगातार 5 बार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से संसद के लिए चुने गए. वे चार राज्यों – उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली – से अलग-अलग समय पर चुने गए एकमात्र सांसद हैं. प्रधानमंत्री के रूप में उनकी एक समृद्ध विरासत है, जिसे उनके कार्यकाल के समाप्त होने के दशकों बाद भी याद किया जाता है.

इस दौरान उनके नेतृत्व में पोखरण परमाणु परीक्षण हुआ. उनकी आर्थिक नीतियों ने स्वतंत्र भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक निरंतर विकास की नींव रखी.

मथुरा में जमानत जब्त

1957 में वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश के तीन संसदीय क्षेत्रों – मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर – से लोकसभा का चुनाव लड़ा. वे मथुरा में चौथे स्थान पर रहे थे तो लखनऊ (दूसरे स्थान पर) से हार गए, लेकिन बलरामपुर से विजय हासिल करने में सफल हो गए थे. वे दूसरी लोकसभा में भारतीय जनसंघ के 4 सांसदों में से एक थे और जल्द ही जनसंघ संसदीय दल के नेता बन गए.


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1957 के अपने पहले संसदीय चुनाव में वाजपेयी को मथुरा से निर्दलीय मैदान में उतरे राजा महेंद्र प्रताप सिंह से बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. लखनऊ में भी उन्हें कांग्रेस नेता पुलिन बिहारी बनर्जी ने मात दे दी थी. वहीं बलरामपुर सीट पर कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर अटल बिहारी वाजपेयी ने जीत का स्वाद चखा था.

कहा जाता है कि मथुरा सीट पर उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी. उन्हें सिर्फ 10% वोट मिले, जबकि बलरामपुर में उन्होंने 52 प्रतिशत वोट हासिल किया था.

जनसंघ के संस्थापक सदस्य

अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन जनसंघ के संस्थापक सदस्य (1951) थे. 1968 से 1973 के बीच वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे. 1955 से 1977 के बीच वे जनसंघ संसदीय दल के नेता और जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य (1977-1980) भी रहे थे. इसके अलावा वाजपेयी 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष और 1980-1984, 1986 और 1993-1996 के दौरान भाजपा संसदीय दल के नेता रहे. वे 11वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान विपक्ष के नेता रहे. इससे पहले वे 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक मोरारजी देसाई सरकार में भारत के विदेश मंत्री थे.

पत्रकारिता से की थी शुरुआत

वाजपेयी ने पत्रकारिता से अपने करिअर की शुरुआत की थी, जो 1951 में भारतीय जनसंघ में शामिल होने के बाद समाप्त हो गया, जो आज की भारतीय जनता पार्टी है. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर (अब मध्य प्रदेश का एक हिस्सा) की तत्कालीन रियासत में एक साधारण स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ था.

अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था और 1942 में जेल गए थे. 1975-77 में आपातकाल (Emergency) के दौरान भी उन्हें हिरासत में रखा गया था.

अपनी राजनीतिक सूझबूझ के चलते वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन में उदय हुआ और आगे चलकर उन्होंने भारतीय राजनीति में कई मुकाम हासिल किए. वह उदार दृष्टिकोण और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता वाले व्यक्ति थे. वाजपेयी ने 1957 में मात्र 33 वर्ष की आयु में भारतीय जनसंघ के सदस्य के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया था.

11 जून 2018 को वाजपेयी को किडनी में संक्रमण के बाद गंभीर हालत में एम्स में भर्ती कराया गया था. 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था. मार्च 2015 में उन्हों भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया था.

-भारत एक्सप्रेस

Prashant Verma

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