इस बार मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा. जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है, तो इसे सूर्य का संक्रमण काल कहा जाता है. यही दिन मकर संक्रांति के नाम से प्रसिद्ध है. इसे देश के कई हिस्सों में ‘खिचड़ी’ पर्व के नाम से भी मनाया जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने शरीर का त्याग किया था. इसी दिन उनका श्राद्ध और तर्पण कर्म भी किया गया था.
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व है. खिचड़ी चावल, काली दाल, हल्दी, मटर और हरी सब्जियों से बनती है. ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार-
एक कथा के अनुसार, खिलजी के आक्रमण के दौरान बाबा गोरखनाथ के योगी भोजन नहीं बना पाते थे. भूखे रहने से उनकी स्थिति कमजोर हो रही थी. बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का समाधान चावल, दाल और सब्जियों को एक साथ पकाकर तैयार करने का सुझाव दिया. इस भोजन को “खिचड़ी” नाम दिया गया.
गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर में मकर संक्रांति पर आज भी खिचड़ी मेले का आयोजन होता है. इस दिन बाबा को खिचड़ी का विशेष भोग लगाया जाता है.
मकर संक्रांति का यह पर्व केवल धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामूहिक भाईचारे और दान-पुण्य के लिए भी महत्वपूर्ण है.
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-भारत एक्सप्रेस
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