भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पूर्व गोलकीपर अशोक दीवान 70 साल के हो गए हैं. अशोक दीवान ने भारत को 1975 में विश्व कप जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, वह 1976 में मॉन्ट्रियल ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा भी रहे थे.
अशोक दीवान, ध्यानचंद पुरस्कार पाने वाले पहले लोगों में से एक थे, जब यह पुरस्कार 2002 में पहली बार शुरू किया गया था. खेल रत्न पुरस्कार के अलावा, खेलों में आजीवन उपलब्धि के लिए देश का सर्वोच्च पुरस्कार ध्यानचंद पुरस्कार है. यह पुरस्कार पहली बार 2002 में उन खिलाड़ियों को दिया गया था, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से खेलों में योगदान दिया है तथा सक्रिय खेल करियर से संन्यास लेने के बाद भी खेलों के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे हैं. इस पुरस्कार के प्रथम प्राप्तकर्ता शाहूराज बिराजदार (मुक्केबाजी), अशोक दीवान (हॉकी) और अपर्णा घोष (बास्केटबॉल) थे, जिन्हें 2002 में सम्मानित किया गया था.
1975 का विश्व कप जीतना और फाइनल में पाकिस्तान को शानदार तरीके से हराना अशोक दीवान के खेल जीवन का सबसे यादगार पल था. तब पाकिस्तान एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी था. वह मॉन्ट्रियल ओलंपिक के लिए गई भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा थे. तब भारत विश्व चैंपियन टीम थी और गोल्ड के लिए सबकी पसंदीदा थी. लेकिन उस ओलंपिक में हॉकी के मैच आर्टिफीसियल मैदान पर कराने का फैसला किया गया, जो भारतीय हॉकी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ था. अशोक दीवान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ऐसे मैदान पर खेलने के आदी होने के लिए उनको व उनकी टीम को बहुत मशक्कत करनी पड़ी. यहां तक कि प्रैक्टिस के दौरान दीवान के दो दांत भी टूट गए थे.
इसके बावजूद भारत उस ओलंपिक का गोल्ड नहीं जीत पाया था. दीवान ने उस इंटरव्यू में खुलासा किया था कि इस ओलंपिक में भारत को जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हार मिली, तब वह अपने प्रदर्शन से बेहद निराश थे. इस निराशा में उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने का फैसला कर लिया था. तब दीवान 19वीं मंजिल पर थे और बालकनी से कूदने का फैसला कर चुके थे. तब उनके साथियों ने उनको बचाया और उनके साथ बातचीत की. मॉन्ट्रियल में ऑस्ट्रेलिया से मिली हार से उबरने में दीवान को काफी समय लगा.
अशोक दीवान के जीवन में कोविड-19 महामारी का समय भी काफी मुश्किल वक्त साबित हुआ. वह कोविड प्रतिबंधों के कारण अमेरिका में फंस गए थे और उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी. दीवान अपने बेटे से मिलने कैलिफोर्निया गए थे. उनकी वापसी की तारीख 20 अप्रैल थी, लेकिन कोविड-19 के कारण अमेरिकी प्रशासन ने फ्लाइट पर प्रतिबंध लगा दिया था. वह इन हालातों में अत्यधिक घबराहट और हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हो गए.
दीवान की हालत इतनी खराब हो गई कि उन्होंने तबीयत बिगड़ने पर खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) से मदद मांगी थी. इस मदद के बाद इसके बाद उनको उचित उपचार मिला और तबीयत में सुधार आया था. दीवान का जन्मदिन ऐसे समय पर आया है जब भारत के एक और बेहतरीन गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने हॉकी से संन्यास ले लिया है. दीवान का मानना है कि तब गोलकीपरों पर बहुत दबाव होता था. अच्छा खेलने पर सभी तालियां बजाते थे, लेकिन एक गलती पर सब आलोचना करते थे. आज के समय में स्थितियां बदल गई हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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