नए आपराधिक कानूनों भारतीय न्याय संहिता और नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधानों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. इसे लेकर दाखिल जनहित याचिका में इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए हैं.
याचिकाकर्ता अधिवक्ता सूरज पाल सिंह ने याचिका के माध्यम से दावा किया है कि भारतीय दंड व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को गरिमामय जीवन जीने के मौलिक अधिकार उल्लंघन करती है. याचिका में कहा गया है कि वर्तमान दंड संहिता कार्य-कारण के प्राकृतिक नियमों की अवहेलना करती है और इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि ‘दंड स्वयं एक अन्यायपूर्ण प्रक्रिया है, जो अपराधियों को सुधारने के बजाय उन्हें और अधिक प्रताड़ित करती है. उनका दावा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत सभी व्यक्तियों के जीवन की सुरक्षा आवश्यक है, और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दंड प्रक्रिया को एक सुधारात्मक व्यवस्था में बदलना चाहिए.
इस याचिका में यह भी मांग की गई है कि भारतीय न्याय संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को असंवैधानिक घोषित किया जाए. इसके अतिरिक्त, अपराधियों के लिए जेल की बजाय सुधारगृह की व्यवस्था लागू करने और समाज में वास्तविक न्याय प्रणाली को स्थापित करने की अपील की गई है.
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-भारत एक्सप्रेस
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