Bharat Express Uttarakhand Conclave: भारत एक्सप्रेस के देहरादून में हुए ‘नये भारत की बात, उत्तराखंड के साथ’ कॉन्क्लेव में सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी (DG Information Banshidhar Tiwari) भी शरीक हुए. उनसे कई विषयों पर सवाल किए गए, जिनका उन्होंने बखूबी जवाब दिया.
यहां पेश हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:
न्यूज एंकर का सवाल: अपने विभाग के जरिए आप किस तरीके से उत्तराखंड का विकास होते हुए देख रहे हैं?
सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने कहा, “अपने सूचना विभाग के माध्यम से हम लोग सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं. हम सरकार और जनता के बीच एक संवाद की कड़ी के रूप में काम करते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि जो सही सूचनाएं हैं, वे सही रूप में सही तथ्यों के साथ आमजन तक पहुंचें, ताकि वो जो हमारी सरकारी योजनाएं होती हैं, उनका लोग लाभ उठा सकें.”
सूचना महानिदेशक ने आगे कहा, “हमारे यहां सूचना विभाग में फिल्म डेवलपमेंट काउंसिल है— फिल्म विकास परिषद वह उत्तराखंड में फिल्म शूटिंग को बढ़ावा देने, यहां के लोगों को उसे जोड़ने अलग-अलग लोकेशन पर ले जाकर शूटिंग कराने का काम भी करती है. तो हम लोगों ने नई फिल्म नीति 2024 यहां बनाई है ताकि उत्तराखंड में अधिक से अधिक फिल्मों की शूटिंग हो सके. जो हमारी हिंदी फिल्में हैं, हिंदी फिल्मों के जो सूट्स यहां होते हैं, जो शूटिंग होती है, उसमें सब्सिडी बढ़ा कर हम लोगों ने 3 करोड़ कर दी है. ऐसे ही जो आंचलिक भाषा की फिल्में हैं, उत्तराखंड की जो क्षेत्रीय भाषा है. अगर क्षेत्रीय भाषा में कोई फिल्म बनाता है तो उसकी सब्सिडी 25 लाख थी. अब उसको बढ़ाकर दो करोड़ कर दिया गया है. संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाएं हैं, उनमें अगर कोई फिल्म बनाता है तो उसकी सब्सिडी 2-3 करोड़ रुपए तक कर दी गई है. उसमें शर्त यह है कि उसकी जो 75% शूटिंग है वो उत्तराखंड में होनी चाहिए. और, जो उत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषाएं हैं अगर उनमें कोई फिल्म शूट करता है, हमने उसके लिए सब्सिडी को बढ़ा कर दो करोड़ कर दिया है.”
उन्होंने बताया कि अगर फिल्म की स्क्रीन पर दिखाते हैं कि यह फिल्म कहां शूट हुई है, उस पर मेंशन करते हैं तो उसमें भी अलग से सब्सिडी का प्रावधान है, अगर उत्तराखंड के जो हमारे स्थानीय कलाकार हैं, उनको फिल्म में अपने स्थान देते हैं तो उसके लिए भी 5% अलग से सब्सिडी दी गई है.
सवाल: सोलर नीति को लेकर आपकी सरकार का क्या विजन है?
जवाब: उत्तराखंड में दो प्रकार की योजनाएं चल रही हैं. एक मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना है और दूसरी प्रधानमंत्री सौर घर योजना है. प्रधानमंत्री सौर घर योजना घरों पर सोलर रूफ टॉप पैनल लगाने के लिए है. इसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों मिलाकर 70% सब्सिडी देती हैं. इस योजना में, अगर आप अतिरिक्त बिजली उत्पादन करते हैं, तो यूपीसीएल के साथ एक एग्रीमेंट होता है, जिसके तहत यूपीसीएल आपको उसका भुगतान करता है. उदाहरण के तौर पर, अगर मान लीजिए कि आपके घर में 400 यूनिट बिजली खपत हो रही है और आपने सोलर पैनल लगाकर 800 यूनिट बिजली का उत्पादन किया है, तो 400 यूनिट का जो आपका बिजली बिल था, वह शून्य हो जाएगा. जो 400 यूनिट अतिरिक्त उत्पादन होगा, उसके लिए यूपीसीएल आपको भुगतान करेगा. दूसरी योजना, मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना, व्यवसायिक स्तर पर सोलर ऊर्जा उत्पादन करने के लिए है, और इसमें राज्य सरकार द्वारा 55% तक सब्सिडी दी जाती है.
सवाल: उत्तराखंड की प्लांटेशन पॉलिसी के बारे में बताइए
जवाब: हमारे उत्तराखंड की संस्कृति और समाज में प्रकृति के संरक्षण की गहरी जड़ें हैं. अगर हम आदमबोध की बात करें, तो यह समाज में कहीं न कहीं रचा-बसा है. हरेला त्योहार और फूल देवता का त्योहार भी इस संरक्षण से जुड़ा हुआ है. हरेला पर हर साल एक बड़े वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. माननीय प्रधानमंत्री जी ने इस वर्ष ‘एक पेड़ मां के नाम’ का आह्वान भी किया था. इन दोनों कार्यक्रमों के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण का कार्य किया गया.
हमारे यहां हाल ही में संशोधित आवास नीति आई है, जिसमें पर्वतीय भवन निर्माण की पारंपरिक शैली, जिसे ‘बाखल’ या ‘बाखली’ कहा जाता है, को बढ़ावा दिया जा रहा है. अगर कोई इस शैली में भवन निर्माण का प्रोजेक्ट लेकर आता है, तो उसे प्रति यूनिट साढ़े लाख रुपये की सब्सिडी प्रदान की जाएगी. जो लागत आएगी, उसकी प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जाएगी. यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरानी परंपरा अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थी, क्योंकि अधिकांश भवन अब कंक्रीट और कालम बीम से बनाए जाते हैं.
नई आवास नीति में इस पुरानी शैली को संरक्षित करने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. इस प्रकार, पुरानी धरोहरों को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है. यह बहुत जरूरी है, क्योंकि विकास के साथ-साथ अपनी विरासत को संजोना निहायत ही आवश्यक है.
सूचना महानिदेशक ने युवाओं के लिए कहा, “मुझे जो मैं कभी-कभी चिंतन करता हूं, वह यह है कि आजकल बच्चों में धैर्य की कमी होती जा रही है. जो धैर्य होता है, वह समय के साथ कम होता गया है. बच्चे जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, तेज़ी से प्रतिक्रिया करते हैं, और दूसरों की बात सुनते नहीं हैं. यह अधैर्य को थोड़ा कम करना चाहिए. हमारी सभ्यता और संस्कृति में विनम्रता एक अहम हिस्सा रही है, हमें विनम्र और धैर्यवान होना चाहिए. क्रोध नहीं करना चाहिए. बच्चे छोटी-छोटी बातों पर आत्महत्या कर रहे हैं, तो यह क्रोध से बचने का समय है. योग एक बड़ा मंच प्रदान करता है, जो हमें योग, ध्यान, और मेडिटेशन करने का अवसर देता है. पिछले 15 सालों से नशा वृति में बहुत वृद्धि हुई है, और यह कहीं न कहीं हमारी युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है. इसलिए, युवाओं को नशा वृति से दूर रहना चाहिए और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर काम करना चाहिए.”
“एक दिन मैं एक प्राइवेट स्कूल के कार्यक्रम में गया था, जहां अभिभावक भी आए थे. मैंने पूछा कि कितने अभिभावक ऐसे हैं, चाहे वह पिता हो या माता, जो अपने बच्चों को शाम को या रात को कहानियां सुनाते हैं. आप विश्वास मानिए, एक भी हाथ नहीं उठाया. इसका मतलब है कि आप अपने बच्चे को कुछ नहीं सिखा पा रहे हैं. दूसरा, जो मैंने भाषा के बारे में पूछा, वह पता नहीं कहां से बच्चों के मन में घर कर गया है कि अगर कोई बच्चा हिंदी या अपनी मातृभाषा में बात करता है, तो उसे पिछड़ापन का संकेत माना जाता है, जबकि यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में बेहतर तरीके से सीखते हैं. उनका अधिगम स्तर (ग्रेपिंग) मातृभाषा में सीखने से बेहतर होता है. इसलिए अभिभावकों को भी बच्चों को समय देना चाहिए ताकि उनकी जरूरतें पूरी हो सकें.”
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