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फिल्मों में क्यों दिखाया जाता है डिस्क्लेमर? जानें कब हुई थी मूवीज में Disclaimer की शुरुआत

फिल्म निर्माता अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित नेटफ्लिक्स पर आई वेब सीरीज आईसी 814- कंधार हाइजैक (IC 814- Kandahar Hijack) में आतंकियों के नामों में किए गए बदलाव को लेकर विवाद हो गया. जिसके बाद नेटफ्लिक्स ने सीरीज के शुरुआती डिस्क्लेमर को अपडेट करने का फैसला किया है. अब डिस्क्लेमर में पाकिस्तानी आतंकवादियों के असली नाम और कोड नाम दोनों दिखाए जाएंगे. ऐसे में आइए जानते हैं कि डिस्क्लेमर शब्द का क्या इतिहास है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

डिस्क्लेमर की कब हुई शुरुआत?

डिस्क्लेमर की अवधारणा सिनेमा की दुनिया में पहली बार 1932 में सामने आई. उस साल, अमेरिका के प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस MGM ने “रासपुतिन एंड द इम्प्रेस” नामक फिल्म बनाई, जो रूस के विवादास्पद साधु रासपुतिन के जीवन पर आधारित थी. इस फिल्म में एक ऐसा दृश्य था जिसमें रासपुतिन को युसुपोव की पत्नी आइरिन के साथ दुष्कर्म करते दिखाया गया था. इस दृश्य ने युसुपोव की आपत्ति का कारण बना, और उन्होंने फिल्ममेकर्स के खिलाफ कोर्ट में केस दायर कर दिया. कोर्ट ने MGM पर मोटा जुर्माना लगाया और यह सुझाव दिया कि अगर फिल्म के शुरुआत में यह डिस्क्लेमर जोड़ा जाता कि फिल्म की सामग्री पूरी तरह काल्पनिक है, तो मामला टल सकता था. इसके बाद, फिल्म इंडस्ट्री में डिस्क्लेमर का उपयोग शुरू हुआ, ताकि दर्शकों को यह स्पष्ट हो सके कि फिल्म की सामग्री वास्तविकता से अलग है.

कौन था ग्रिगोई रासपुतिन?

ग्रिगोई रासपुतिन, रूस के एक विवादास्पद और रहस्यमय साधु थे, जिनकी कहानियां आज भी चर्चा का विषय हैं. उन्हें तंत्र विद्या और भविष्यवाणी में माहिर माना जाता था, और वह रूस के शाही परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए थे. कहा जाता है कि रासपुतिन की कई भविष्यवाणियां सही साबित हुईं, जिससे उनकी शक्ति और प्रभाव बढ़ गया. युसुपोव ने रासपुतिन को जहर देकर, पीटकर, और गोली मारकर हत्या करने की कोशिश की, लेकिन ग्रिगोई रासपुतिन फिर भी जीवित रहा.आखिर में उसे नदी में फेंक दिया गया, जहां उसकी मौत डूबने से हुई. रासपुतिन पर बनी फिल्म ने डिस्क्लेमर के महत्व ka जन्म दिया. जिसके बाद से आज तक यह सिनेमा की दुनिया का एक अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है.

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डिस्क्लेमर का महत्व

आजकल, डिस्क्लेमर का उपयोग फिल्मों और टीवी शो में दर्शकों को यह सूचित करने के लिए किया जाता है कि जो कुछ भी देखा जा रहा है वह काल्पनिक है और वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं रखता. यह न केवल कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि दर्शकों को भी यह समझाता है कि फिल्म की सामग्री को वास्तविकता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

भारत एक्सप्रेस

Shailendra Verma

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