पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसम्बर, गुरूवार रात 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्हें भारत की आर्थिक प्रगति का शिल्पकार माना जाता है. लेकिन उनका प्रधानमंत्री बनने का सफर उतना ही अनोखा और दिलचस्प है. इस कहानी में राजनीति, परिवारिक दबाव, और अद्वितीय परिस्थितियों का संगम देखने को मिलता है.
2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की वापसी लगभग तय मानी जा रही थी. राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि भाजपा फिर से सत्ता में आएगी. लेकिन मतगणना के शुरुआती रुझानों में भाजपा पिछड़ने लगी. लोगों को लगा कि ये सिर्फ शुरुआती रुझान हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अंततः कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने जीत दर्ज की.
इस जीत के बाद चर्चा थी कि सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना था कि सोनिया ही इस पद की हकदार हैं. लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं थी.
1998 में सोनिया गांधी के राजनीति में आने के बाद उनके विदेशी मूल को लेकर सवाल उठाए गए. कांग्रेस के दिग्गज नेता शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक अनवर ने इसी मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी थी और नई पार्टी बना ली थी. अब 2004 के लोकसभा चुनावों में UPA की जीत के बाद एक बार फिर से यह मुद्दा गरमा गया. हालांकि, इस बार सोनिया गांधी को शरद पवार और लालू यादव जैसे बड़े नेताओं का समर्थन मिला लेकिन भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी की उम्मीदवारी का कड़ा विरोध किया.
भाजपा नेता सुषमा स्वराज और उमा भारती ने खुलकर सोनिया के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया. सुषमा ने यहां तक कहा कि अगर सोनिया गांधी पीएम बनीं, तो वे अपने बाल कटवा लेंगी. यह बयान कांग्रेस और भाजपा के बीच तनातनी को और बढ़ा गया.
17 मई 2004 को 10 जनपथ पर एक अहम बैठक हुई. इस बैठक में सोनिया गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह, प्रियंका गांधी और नटवर सिंह मौजूद थे. सोनिया गांधी बेचैन नजर आ रही थीं. तभी राहुल गांधी वहां पहुंचे. राहुल ने सोनिया से कहा, “आपको प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए. मेरे पिता की हत्या कर दी गई, मेरी दादी की हत्या कर दी गई. अब आपकी भी जान को खतरा है. अगर आप पीएम बनीं, तो छह महीने में आपको भी मार दिया जाएगा.”
राहुल की इस बात ने पूरे कमरे में सन्नाटा फैला दिया. नटवर सिंह ने अपनी किताब One Life Is Not Enough में इस घटना का जिक्र किया है. राहुल ने सोनिया को अपने फैसले पर सोचने के लिए 24 घंटे का समय दिया और यहां तक कह दिया कि अगर उन्होंने उनकी बात नहीं मानी, तो वे कोई भी कदम उठा सकते हैं. प्रियंका गांधी ने भी राहुल का समर्थन किया और कहा, “राहुल कुछ भी कर सकते हैं.” इस पारिवारिक दबाव ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया.
सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया. इसके बाद सवाल उठने लगे कि अब पीएम कौन बनेगा. कांग्रेस के अंदर कई नामों पर चर्चा हुई. प्रणब मुखर्जी और मनमोहन सिंह में से किसी एक को यह पद दिए जाने की संभावना थी. प्रणब मुखर्जी वरिष्ठ नेता थे और उनका राजनीतिक अनुभव अधिक था. लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को चुना. कई समीक्षकों का मानना था कि सोनिया ने मनमोहन को इसलिए चुना क्योंकि उनका कोई राजनीतिक आधार नहीं था और वे राहुल गांधी के लिए कोई खतरा नहीं बन सकते थे.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब A Promised Land में इस घटनाक्रम का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया क्योंकि वे उनके बेटे राहुल गांधी के लिए कोई राजनीतिक चुनौती नहीं थे. ओबामा ने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह भारत की आर्थिक प्रगति के प्रतीक थे. 2010 में भारत दौरे के दौरान उन्होंने मनमोहन सिंह की नेतृत्व क्षमता की तारीफ की थी.
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मनमोहन सिंह 1991 में वित्त मंत्री बने और उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी. उनके आर्थिक सुधारों ने देश को वैश्विक मंच पर मजबूती दी. प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने 10 साल तक देश की सेवा की. उनकी ईमानदारी और सौम्यता के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.
-भारत एक्सप्रेस
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