पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह.
वह साल 1991 था, जब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे. भारत उस दौर में कई तरह के आर्थिक संकटों से जूझ रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार कुछ ही समय के लिए पर्याप्त था. मनमोहन सिंह के सामने देश की अर्थव्यवस्था को सही दिशा में ले जाने की चुनौती थी. यह स्वतंत्र भारत के सबसे गंभीर आर्थिक संकटों में से एक था.
1980 के दशक के आखिर में सोवियत संघ के कमजोर होने के कारण स्थितियां और भी जटिल हो गई थीं. ऐसा इसलिए क्योंकि सोवियत संघ बीते कई सालों से सस्ते तेल और कच्चे माल का स्रोत होने के अलावा कई भारतीय उत्पादों का बाजार रहा था. महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसने भारत को अमेरिकी डॉलर की जरूरत के बिना व्यापार करने की अनुमति दी थी.
आर्थिक सुधारों का फैसला
इन गंभीर आर्थिक चुनौतियों से पार पाने के लिए वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक सुधारों को शुरू करने का फैसला किया, जो उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation) और भारत की अर्थव्यवस्था को खोलने पर केंद्रित थे, जो बाजार-संचालित सिद्धांतों के साथ तालमेल के लिए जरूरी थे. उनके द्वारा उठाए गए इन कदमों ने आने वाले वर्षों के लिए अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी.
इस बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने नई औद्योगिक नीति की घोषणा की. इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक संरचनात्मक परिवर्तन किए. इसके माध्यम से भारत सरकार ने 51 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी और उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में विदेशी प्रौद्योगिकी समझौतों को सुविधाजनक बनाने के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर किया.
नई औद्योगिक नीति
नई औद्योगिक नीति भारत के आर्थिक उदारीकरण को गति देने में एक ऐतिहासिक दस्तावेज थी. इसने कुछ चुनिंदा रणनीतिक उद्योगों को छोड़कर सभी परियोजनाओं के लिए औद्योगिक लाइसेंसिंग को समाप्त कर दिया, सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी का विनिवेश करने की अनुमति दी और बिना पूर्व अनुमोदन के व्यवसायों की स्थापना, विस्तार और विलय की अनुमति देने के लिए एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार (MRTP) अधिनियम में संशोधन किया.
संकटों से ऐसे निपटा
ये आर्थिक सुधार अगस्त 1990 में तेल की कीमतों में तेज उछाल के बाद किए गए, जिससे भुगतान संतुलन (BoP) की स्थिति असहनीय हो गई, विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया, साथ ही बड़े पैमाने पर पूंजी का बहिर्गमन हुआ, जिससे भारत डिफॉल्टर होने की संभावना के करीब पहुंच गया. इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने 1 जुलाई 1991 को भारतीय रुपये का अवमूल्यन (Devalued) किया था तथा आरबीआई ने भुगतान संतुलन संकट से उत्पन्न तरलता के प्रबंधन के लिए विदेशी मुद्रा उधार लेने के लिए अपने भंडार से 46 टन से अधिक सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड को ट्रांसफर कर दिया था.
इसके अलावा वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने कई और जरूरी कदम उठाए, जिसने अर्थव्यवस्था को गति देने में महती भूमिका निभाई. उन्होंने घरेलू बाजार में फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, उत्पादकता बढ़ाने, दक्षता में सुधार लाने और लागत कम करने के लिए सुधारों को जरूरी बताया.
मनमोहन सिंह का बजट भाषण
अपने 1991-92 के बजट भाषण में मनमोहन सिंह ने आने वाले वर्षों के लिए अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी, यह कहते हुए कि ‘आर्थिक प्रक्रियाओं का अति-केंद्रीकरण और अत्यधिक नौकरशाही प्रतिउत्पादक साबित हुई है’ और भारत को ‘बाजार की ताकतों के संचालन के लिए दायरे और क्षेत्र का विस्तार करने की जरूरत है’.
सिंह ने अपने बजट भाषण में तर्क दिया था, ‘औद्योगीकरण की चार दशकों की योजना के बाद अब हम विकास के उस चरण में पहुंच गए हैं, जहां हमें विदेशी निवेश से डरने की बजाय उसका स्वागत करना चाहिए. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से पूंजी, प्रौद्योगिकी और बाजार तक पहुंच मिलेगी.’
दो बार रहे प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह भारत के 1991 के आर्थिक सुधारों के निर्माता के रूप में विख्यात थे. वित्त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने भारत के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया, इसकी नीतियों का आधुनिकीकरण किया और राष्ट्र को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकृत किया. उनकी गिनती देश के बड़े अर्थशास्त्रियों में होती थी.
मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक दो बार प्रधानमंत्री रहे थे. वह 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता भी रहे. हालांकि, साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली जीत के बाद उन्होंने देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. उन्होंने यूपीए-1 और 2 में प्रधानमंत्री का पद संभाला था. उन्होंने पहली बार 22 मई 2004 और दूसरी बार 22 मई 2009 को प्रधानमंत्री के पद की शपथ ली थी.
लोगों के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव
प्रधानमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकाल के दौरान सूचना का अधिकार (RTE), शिक्षा का अधिकार (RTI) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) सहित परिवर्तनकारी नीतियों की शुरुआत हुई, जिसने लाखों लोगों के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला.
सिंह ने 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर के रूप में भी काम किया, यह वह अवधि थी जिसने उनकी आर्थिक सूझबूझ को और भी उजागर किया. तीन दशकों से ज्यादा समय तक फैली उनकी राजनीतिक यात्रा सिर्फ राज्यसभा तक ही सीमित रही. 1991 में पहली बार चुने जाने के बाद उन्होंने 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता के रूप में काम किया और फिर प्रधानमंत्री बने तथा भारत को इतिहास के एक परिवर्तनकारी दौर से गुजारा.
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पश्चिमी पंजाब के गाह में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है. उनके पिता का नाम गुरमुख सिंह और मां का नाम अमृत कौर था. उन्होंने साल 1958 में गुरशरण कौर से शादी की थी. उनकी तीन बेटियां भी हैं, जिनका नाम उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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