संदिग्ध सत्यनिष्ठा के आधार पर अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त करने के मामले में पहली बार CBDT को तगड़ा झटका लगा है. सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी कैप्टन प्रमोद कुमार बजाज को 2019 में जबरन सेवानिवृत्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है. आदेश में तत्कालीन CBDT चेयरमैन की भूमिका पर भी टिप्पणी की गई है.
29 साल की नौकरी के बाद सरकार ने भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी कैप्टन प्रमोद कुमार बजाज की सत्यनिष्ठा को विवाद से परे मानते हुए विजिलेंस क्लीयरेंस दे दी. 1990 बैच के इस अधिकारी की कार्यशैली और सेवा को भी जुलाई 2019 तक उत्कृष्ट माना गया. लेकिन वैवाहिक विवाद के दौरान पत्नी की शिकायत के आधार पर IB ने 2017 में उनके खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट दाखिल की थी. जिसे आधार बनाकर एक आला नौकरशाह ने तथाकथित पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर बजाज को जबरन सेवानिवृत्त करने की जमीन तैयार कर दी. न्यायालयों और ट्रिब्यूनल से मिले अवमानना के नोटिस के बावजूद, कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना सितंबर 2019 में बजाज को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया. मामले की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने CBDT को झटका देते हुए जबरन सेवानिवृति के आदेश को रद्द कर दिया है.
भारतीय राजस्व सेवा में 1990 बैच के अधिकारी कैप्टन प्रमोद कुमार बजाज 1980 में भारतीय सेना में स्थाई सेवा अधिकारी चुने गए थे. लेकिन एक आपरेशन के दौरान शारीरिक चोट के कारण वह भारतीय सेना से बाहर हो गए और 1989 में सिविल सर्विस परीक्षा उत्तीर्ण कर भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी नियुक्त हो गए. 2012 में उन्हें पदोन्नत कर आयकर आयुक्त नियुक्त कर दिया गया. 2013 में उन्होंने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण में सदस्य के पद के लिए आवेदन किया और 2014 में चयन समिति ने उन्हें चयनित अधिकारियों की सूची में शीर्ष स्थान पर रख लिया.
जुलाई 2014 में चयन समिति ने उन्हें चयनित अधिकारियों की सूची में शीर्ष स्थान पर रख लिया. इस समिति के अध्यक्ष भी कोई और नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत न्यायाधीश थे. जिन्हें उस पद पर मुख्य न्यायाधीश ने मनोनीत किया था. जुलाई 2015 में कैबिनेट की चयन समिति में विजिलेंस क्लीयरेंस के साथ पदोन्नति के लिए उनका नाम भेजा गया और 2016 में वह भारत सरकार में संयुक्त सचिव की श्रेणी में भी शामिल हो गए.
29 साल की सरकारी नौकरी में बेदाग चरित्र के साथ काम करते रहे बजाज के खिलाफ 2017 में IB ने एक प्रतिकूल रिपोर्ट दाखिल कर दी. जिसके आधार पर ITAT में उनकी नियुक्ति रोक दी गई. बजाज ने इसके खिलाफ ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया. ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया गया कि IB रिपोर्ट फिर से पेश कर ITAT में बजाज की नियुक्ति पुनर्विचार किया जाए. लेकिन CBDT ने आदेश को मानने की जगह इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. उच्च न्यायालय ने मई 2017 में यह अर्जी खारिज कर दी. जिसके खिलाफ सरकार ने फिर से विशेष अपील दायर की, मगर न्यायालय ने नवंबर 2017 में उसे भी खारिज कर दिया.
न्यायालय से लगे झटके से सबक लेने के बजाए CBDT ने बजाज पर शिकंजा कसने की मुहिम शुरू कर दी. नवंबर 2017 में ही उनके दफ्तर में सतर्कता जांच की गई और जनवरी 2018 में उन्हें कारण बताओ नोटिस दे दिया गया. इसके साथ ही उनको मिली विजिलेंस क्लीयरेंस को भी रोक लिया गया. इसके बाद 26 अप्रैल 2018 को न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ की अध्यक्षता में गठित चयन समिति ने अपने आदेश में कहा था कि वैवाहिक विवाद ख़त्म हो चुका है तो इस कारण से दी गई शिकायत के आधार पर IB की प्रतिकूल रिपोर्ट का कोई औचित्य नहीं रह जाता है. लिहाजा बजाज का ITAT में सदस्य के तौर पर फिर से चयन कर लिया गया. मगर बावजूद इसके मई 2018 में उनका नाम संदिग्ध सत्यनिष्ठा वाले अधिकारियों की सूची में शामिल कर दिया गया. इस मामले में ट्रिब्यूनल ने CBDT की कार्रवाई को ख़ारिज कर दिया. जिसके खिलाफ CBDT की याचिका को उच्च न्यायालय ने भी ख़ारिज कर दिया. सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की. मगर वह भी ख़ारिज हो गई.
अपने खिलाफ तथाकथित पूर्वाग्रह के आरोप लगाने वाले बजाज ने मई 2017 के उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करने पर अवमानना की कार्रवाई शुरू कराने के लिए याचिका दायर की तो न्यायालय ने CBDT के तत्कालीन चेयरमैन पी सी मोदी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
मगर नौकरशाहों ने अदालत के आदेश के बावजूद बजाज को जबरन सेवानिवृत्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. 17 जुलाई 2019 को बजाज को नोटिस जारी किया गया और तीन महीने पूरे होने से पहले ही 27 सितंबर 2019 को उन्हें 56(J) के तहत जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया. जिसके खिलाफ मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने पक्ष रखा कि बजाज के खिलाफ नौ शिकायतें लंबित थी. जिनके आधार पर उन्हें 56(J) में जबरन सेवानिवृत्त किया गया.
सरकार की और से जिन नौ शिकायतों का उल्लेख किया गया था, उनमें से चार पहले ही बंद हो चुकी थी. बाकी पांच भी फर्जी निकली. बाद में बजाज पर तीन आरोप महत्वपूर्ण बताए गए. जिनमें पहला उनकी पत्नी द्वारा की गई शिकायत था. दूसरा उनके द्वारा बिना अनुमति खरीदा गया एक फ़्लैट और तीसरा बिना स्वीकृत अवकाश के अदालती कारवाई में शामिल होना था. अदालत ने उपलब्ध तथ्यों के आधार पर कहा कि उनकी पत्नी की शिकायत के आधार पर IB ने प्रतिकूल रिपोर्ट दी थी. जबकि हकीकत यह है कि बजाज और उनकी पत्नी के मध्य चल रहा विवाद समझौते के तहत ख़त्म हो चुका है. जिस फ़्लैट को खरीदने का आरोप लगाया गया था, उसके बारे में साबित हो चुका है कि वह बजाज के भाई ने खरीदा था. तीसरा आरोप भी साबित नहीं हुआ.
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति जे एस बोपन्ना और हिमा कोहली की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि बजाज ने तत्कालीन CBDT चेयरमैन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उन पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने का आरोप लगाया है. चूंकि बजाज की याचिका पर उच्च न्यायालय ने तत्कालीन CBDT चेयरमैन को अवमानना की कार्रवाई का नोटिस जारी किया था और वह सरकार की उस समीक्षा समिति में भी शामिल थे जिसके समक्ष बजाज ने अपनी जबरन सेवानिवृति के खिलाफ अपील दायर की थी. हालांकि बजाज ने तत्कालीन CBDT अध्यक्ष के खिलाफ संस्थागत पूर्वाग्रह के आरोप लगाए हैं लेकिन उन्हें पार्टी के रूप में शामिल नहीं किया हैं. लिहाजा इन आरोपों पर विचार नहीं किया जा सकता.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि हम धुएं की इस धुंधली परत को स्वीकार नहीं कर सकते। सरकार ने बजाज की प्रधान आयकर आयुक्त के पद पर पदोन्नति और ITAT में सदस्य के पद पर नियुक्ति को रोककर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की है. इस मामले में तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता. यह आदेश अपीलकर्ता के खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही को शॉर्ट-सर्किट करके उन्हें तत्काल हटाने की नीयत से पारित किया गया था. इसी के साथ न्यायालय ने बजाज की जबरन सेवानिवृति के आदेशों को रद्द कर दिया.
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