विश्लेषण

क्या जस्टिस शेखर कुमार यादव को हटाया जा सकता है?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. जस्टिस शेखर ने कुछ दिन पहले विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक लोगों की इच्छा के मुताबिक चलेगा. जस्टिस शेखर यादव ने मुस्लिम समुदाय का नाम लिए बिना कहा कि कई पत्नियां रखना, तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाएं अस्वीकार्य हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस बारे में जानकारी मांगी थी. अब इस मामले को विपक्षी पार्टियों के सांसद, संसद में उठाने की तैयारी में जुटे हैं.

सांसद कपिल सिब्बल ने क्या कहा

इस मामले को लेकर राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने ‘घृणास्पद भाषण’ देकर अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया है और वह अन्य विपक्षी सांसदों के साथ मिलकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस देंगे. सिब्बल ने कहा, ‘कोई भी न्यायाधीश इस तरह का बयान देकर अपने पद की शपथ का उल्लंघन करता है. अगर वह पद की शपथ का उल्लंघन कर रहा है, तो उसे उस कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है.’

न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव


उन्होंने कहा, ‘अगर हाईकोर्ट का जस्टिस इस तरह का भाषण दे सकता है, तो सवाल उठता है कि ऐसे लोगों की नियुक्ति कैसे होती है? सवाल यह भी उठता है कि उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने की हिम्मत कैसे मिलती है. सवाल यह भी उठता है कि पिछले 10 सालों में ये चीजें क्यों हो रही हैं?’ सिब्बल ने कहा, ‘मैंने कुछ साथी नेताओं दिग्विजय सिंह (कांग्रेस), विवेक तन्खा (कांग्रेस), मनोज झा (राष्ट्रीय जनता दल), जावेद अली (समाजवादी पार्टी) और जॉन ब्रिटास (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) से बात की है. हम जल्द ही मिलेंगे और न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएंगे. इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है. यह हर मायने में नफरत फैलाने वाला भाषण है.’

पूर्व सीजेआई के खिलाफ महाभियोग

सीनियर ए़़डवोकेट कपिल सिब्बल ने 2018 में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था और 1993 में शीर्ष अदालत के तत्कालीन न्यायाधीश वी. रामास्वामी का बचाव भी किया था. जस्टिस रामास्वामी को वित्तीय अनियमितता के आरोपों को लेकर महाभियोग प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था.

सीटिंग जस्टिस को कैसे हटाया जाता है


भारत में किसी भी सीटिंग जज को हटाने की प्रक्रिया काफी जटिल है. संविधान में इसे लेकर प्रावधान दिए गए हैं. किसी जज को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. यह प्रस्ताव जज के खिलाफ गंभीर आरोपों, जैसे कि दुर्व्यवहार या अक्षमता, पद की गरिमा की अवहेलना पर आधारित होना चाहिए.

महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा के कम से कम 100 या राज्यसभा के कम से कम 50 सांसदों को हस्ताक्षरित नोटिस देने की जरूरत होती है. नोटिस मिलने के बाद एक जांच समिति गठित की जाती है जो आरोपों की जांच करती है. जांच समिति अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है. इसके आधार पर संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर बहस होती है. दोनों सदनों में विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित होना आवश्यक होता है. दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति जज को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं.

संसद में कितने वोट चाहिए होते हैं

किसी भी जज पर महाभियोग लाने के लिए दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में संबंधित प्रस्ताव को विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है. विशेष बहुमत का मतलब है कि प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए.

अनुच्छेद 124 की क्यों हो रही है चर्चा


अनुच्छेद 124 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो भारत के सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और उसके कार्यों से संबंधित है. यह अनुच्छेद भारत की न्यायपालिका का आधार है और यह सुनिश्चित करता है कि देश में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था हो. अनुच्छेद 124 न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया की व्यख्या करता है. यह अनुच्छेद न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के बारे में भी बताता है. यह अनुच्छेद न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है. इसमें स्पष्ट तौर पर इस बात को बताया गया है कि किसी जज ने कोई गलती की है तो उसे कैसे हटाया जा सकता है.

कब-कब महाभियोग से जज हटाए गए हैं?

भारत में कई बार जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत जटिल होने के कारण कभी पूरी नहीं हो पाई है. या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफा दे दिया. महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना होता है. यह सुनिश्चित करता है कि जज को हटाने का फैसला जल्दबाजी में न लिया जाए.

-भारत एक्सप्रेस

रजनीकांत सिंह, एक्जिक्यूटिव एडिटर

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