विश्लेषण

चुनावों में पारदर्शिता पर जोर

2024 के लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण तक पहुंच गये हैं। आने वाले दिनों में सभी को चुनावी एग्जिट पोल और 4 जून का बेसब्री से इंतजांर रहेगा। सभी यह देखना चाहेंगे कि विवादों में घिरी ‘ईवीएम’ किसकी सरकार बनाएगी? हर राजनैतिक दल बड़े-बड़े दावे कर रहा है कि उसका दल या उसके समर्थन वाला समूह सरकार बनाने जा रहा है। ऐसे में यह भी देखना ज़रूरी है कि केंद्रीय चुनाव आयोग जिसकी कार्यशैली पर कई सवाल उठे, वह इस चुनाव को कितनी पारदर्शिता से संपूर्ण करेगा?

राजनैतिक दलों के वादे

देश का आम चुनाव हमेशा से ही एक पर्व की तरह मनाया जाता है। इसमें हर राजनैतिक दल अपने-अपने वोटरों के पास अगले पांच साल के लिए उनके मत की अपेक्षा में उन्हें बड़े-बड़े वादे देकर लुभाने की कोशिश करते हैं। परंतु देश की जनता भी यह जान चुकी है कि दल चाहे कोई भी हो, राजनैतिक वादे सभी दल ऐसे करते हैं कि मानो जनता उनके लिए पूजनीय है और ये नेता उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। परंतु क्या वास्तव में ऐसा होता है कि चुनावी वादे पूरे किए जाते हैं? क्यों नेताओं को केवल चुनावों के समय ही जनता की याद आती है? ख़ैर ये तो रही नेताओं की बात। आज जिस मुद्दे पर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जा रहा है वो है चुनावों में पारदर्शिता।

चुनाव आयोग की प्राथमिकता

सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न बने। चुनावों का आयोजन करने वाली सर्वोच्च सांविधानिक संस्था केंद्रीय चुनाव आयोग इन चुनावों को कितनी पारदर्शिता से कराती है इसकी बात बीते कई महीनों से सभी कर रहे हैं। चुनाव आयोग की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हर दल को पूरा मौक़ा दिया जाए और निर्णय देश की जनता के हाथों में छोड़ दिया जाए। बीते कुछ महीनों में चुनाव आयोग पर पहले ईवीएम को लेकर और फिर वीवीपैट को लेकर काफ़ी विवाद रहा। हर विपक्षी दल ने एक सुर में यह आवाज़ लगाई कि देश से ईवीएम को हटा कर बैलट पेपर पर ही चुनाव कराया जाए। परंतु देश की शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए अधिक सावधानी बरतने को कहा और ईवीएम को जारी रखा। इन विवादों के बाद चुनावों की मतगणना को लेकर फॉर्म 17सी पर एक नई बहस उठी जो देश की शीर्ष अदालत में जा पहुंची।

मतदान की प्रक्रिया

दरअसल, फॉर्म 17सी वह फॉर्म होता है जिसमें चुनाव संचालन नियम, 1961 के तहत देशभर के प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों का रिकार्ड होता है। फॉर्म 17सी में मतदान केंद्र के कोड नंबर और नाम, मतदाताओं की संख्या। उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने मतदान न करने का निर्णय लिया। उन मतदाताओं की संख्या जिन्हें मतदान करने की अनुमति नहीं मिली। दर्ज किए गए वोटों की संख्या। खारिज किए गए वोटों की संख्या। वोटों के खारिज करने के कारण। स्वीकार किए गए वोटों की संख्या। डाक मतपत्रों का डाटा भी शामिल होता है। इस जानकारी को मतदान अधिकारियों द्वारा भरा जाता है और प्रत्येक बूथ के पीठासीन अधिकारी द्वारा जांचा भी जाता है। मतगणना के दिन, गिनती से पहले, फॉर्म 17सी के दूसरे भाग में प्रत्येक बूथ से गिने गए कुल वोट व डाले गए कुल वोटों की समानता को जांच जाता है। यह व्यवस्था किसी भी पार्टी द्वारा वोटों में हेरफेर से बचने के लिए बनाई गई है। यह डाटा मतगणना केंद्र के पर्यवेक्षक द्वारा दर्ज किया जाता है। प्रत्येक उम्मीदवार (या उनके प्रतिनिधि) को फॉर्म पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसे रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जांचा जाता है। इसके बाद ही मतों की गिनती शुरू होती है।

ग़ौरतलब है कि मतदान डाटा का उपयोग चुनाव परिणाम को कानूनी रूप से चुनौती देने के लिए किया जा सकता है। एक और जहां चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ पर सवाल उठाया गया है वहीं फॉर्म 17सी से मतदान में हुई गड़बड़ी (यदि हुई हो तो) का पता चल सकता है। जिस तरह पहले और दूसरे चरण के मतदान के आँकड़ों को जारी करने में देरी व बदलाव को लेकर चुनाव आयोग पर प्रश्न उठा तो विपक्ष ने फॉर्म 17सी को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। देश की शीर्ष अदालत में चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखा और विपक्षी पार्टियों ने अपना पक्ष रखा। परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई निर्णय नहीं दिया।

क्या है चेकलिस्ट

बीते सप्ताह देश के नामी वकील और सांविधानिक विशेषज्ञ कपिल सिब्बल ने एक प्रेस सम्मेलन बुलाकर सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों से एक चेकलिस्ट जारी की। सिब्बल ने हर राजनैतिक दल और उनके मतदान/मतगणना एजेंटों के लिए आगामी 4 जून को आम चुनाव की गिनती से पहले जारी की गई इस चेकलिस्ट के माध्यम से यह समझाया है कि उन्हें कब क्या देखना है। सिब्बल के अनुसार “बहुत से लोग कह रहे हैं कि इन मशीनों के साथ संभवतः छेड़छाड़ की गई है। इसलिए, हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके साथ कोई छेड़छाड़ न हो, इससे ज्यादा कुछ नहीं। हम यह नहीं कह रहे कि उनके साथ छेड़छाड़ की गई है।

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किसी भी मशीन से छेड़छाड़ की जा सकती है। ऐसा नहीं है कि दुनिया में कोई ऐसी मशीन है जिसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। हमें इस पर भरोसा है; हम यह नहीं कह रहे हैं कि कोई भरोसा नहीं है।”कपिल सिब्बल की इस चेकलिस्ट का वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा में है। जिस तरह केंद्रीय चुनाव आयोग इवीएम और वीवीपैट को लेकर पहले से ही विवादों में घिरा हुआ है उसे चुनावों में पारदर्शिता का न केवल दावा करना चाहिए बल्कि पारदर्शी दिखाई भी देना चाहिए। इसलिए कपिल सिब्बल द्वारा जारी की गई चेकलिस्ट को सभी राजनैतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए।

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

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