विश्लेषण

भारत में विलय से लेकर ‘Article 370 ‘ के खात्मे तक…जम्मू-कश्मीर की कंप्लीट कहानी

साल 1949 में संविधान में आर्टीकल 370 को शामिल किया गया. इसके बाद जम्मू और कश्मीर को भारत के संविधान से कुछ ज्यादा ही छूट मिल गई. लेकिन 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया, साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटकर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया  था. इसके बाद जम्मू कश्मीर के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद इस साल 5 सितंबर को मामले में 23 याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 पर ‘सुप्रीम’ फैसला सुना दिया है. अदालत ने कहा कि जम्मू कश्मीर भी भारत के संविधान से ही चलेगा. जिस दिन जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म हुआ,उस दिन से लेकर पिछले सात दशकों के राजनीतिक घटनाक्रम पर एक नजर:

1947

विभाजन के बाद भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया.जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने पाकिस्तानी सैनिकों और आदिवासियों की सेना के हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए. भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानियों को सीमा पार खदेड़ दिया,जिसके बाद से आज तक पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापता रहा है.

1948

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध संयुक्त राष्ट्र द्वारा आदेशित युद्धविराम और जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए जनमत संग्रह की मांग करने वाले प्रस्ताव के साथ समाप्त होता है. पाकिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा जाता है. इसके बाद युद्धविराम लागू हो जाता है.

1949

अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में शामिल किया गया है, जिससे जम्मू और कश्मीर राज्य को भारत के संविधान से छूट मिल गई. संसद को राज्य में कानून लागू करने के लिए (रक्षा, विदेशी मामलों, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर) जम्मू और कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता थी.

इतना ही नहीं जम्मू और कश्मीर के नागरिकों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग हो गया. अनुच्छेद 370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं. अनुच्छेद 370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की कोई शक्ति नहीं थी.

1951

राज्य संविधान सभा के लिए चुनाव होते हैं. भारत का कहना है कि जनमत संग्रह की जरूरत नहीं है. शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, लेकिन बाद में 1953 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और जेल में डाल दिया गया.

1952

चर्चा 1952 के दिल्ली समझौते में समाप्त हुई, एक राष्ट्रपति आदेश जो राज्य के निवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है लेकिन निवासियों के लिए महाराजा के विशेषाधिकारों को बरकरार रखता है.

1957

जम्मू-कश्मीर का संविधान अपनाया गया और लागू हुआ

1965

भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर पर अपना दूसरा युद्ध लड़ा. संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्धविराम के आह्वान के बाद लड़ाई समाप्त हो गई.

1989

अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे के साथ, हथियार कश्मीर में प्रवेश कर गए और पाकिस्तान के समर्थन से राज्य में उग्रवाद बढ़ गया. हजारों लोग मारे गए और अशांति के कारण कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ.

1999

सेना द्वारा घुसपैठियों की पहचान करने के बाद नियंत्रण रेखा पर कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू हो गया.

2010

पुलिस गोलीबारी में 17 वर्षीय एक किशोर की मौत पर कश्मीर के कुछ हिस्सों में बड़े विरोध प्रदर्शनों के बाद लगभग 120 लोग मारे गए.

2015

पीडीपी ने राज्य सरकार बनाने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाया

2016

हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद घातक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें कम से कम 65 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग घायल हो गए.

2018

भाजपा द्वारा पीडीपी के साथ गठबंधन से हटने के बाद जून में जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया गया.छह महीने बाद, राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है और इसे दिसंबर 2019 तक बढ़ा दिया जाता है.

2019

मोदी सरकार ने संविधान से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया. इसके साथ ही जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भी समाप्त हो गया. इस दौरान केंद्र शासित प्रदेश के कई नामचीन नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था.

2023

जम्मू कश्मीर के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके केंद्र के फैसले पर रोक लगाने की मांग की. सुनवाई के बाद 5 जजों की पीठ ने कहा कि जम्मू कश्मीर भी भारत के ही संविधान से चलेगा.

-भारत एक्सप्रेस

 

 

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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