विश्लेषण

कोरोना की नई लहर से कितना डर?

पिछले कुछ दिनों से चीन में कोरोना की नई लहर को लेकर काफ़ी भयावह दृश्य सामने आए हैं। कोरोना के नये वेरिएंट ने चीन में अपना आतंक दिखाना शुरू कर दिया है. चीन के अलावा कई और देशों में भी इस नये वेरिएंट के मरीज़ पाए गए हैं। दुनिया भर में डर का माहौल बना हुआ है। भारत समेत कई देशों ने कोरोना के इस नये जिन्न से निपटने के लिए सभी सावधानियां बरतनी शुरू कर दी हैं। भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जनता से सावधान रहने की अपील कर रहे हैं। सबके मन में प्रश्न है कि हमें इस नए वेरिएंट से कितना डरना चाहिए?

सोशल मीडिया पर चीन में आई कोरोना की नई लहर से ऐसे आंकड़े सुनने को मिल रहे हैं कि इस लहर में दस लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है. चीन की 60 प्रतिशत आबादी इसकी चपेट में आ जाएगी. ये भी कि दुनिया भर की 10 प्रतिशत आबादी इस नई लहर का शिकार हो जाएगी. ये सब दावे कितने सच्चे है इस पर कोई भी आधिकारिक बयान किसी सरकार द्वारा अभी तक नहीं दिया गया है. चीन ने तो अब आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिया है.

1995 से अमेरिका के पेंसिलवेनिया में डॉक्टरी कर रहे, आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ रवींद्र गोडसे के अनुसार, भारत को इस नई लहर से घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है. देश भर के कई टीवी चैनलों की चर्चाओं में डॉ गोडसे ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा है कि न तो भारत में ये नई लहर आएगी और न ही यहां इसका कोई भारी असर पड़ेगा. वे कहते हैं कि चीन ने अपने यहां पनपे इस ख़तरनाक वायरस से निपटने के लिए अत्यधिक सावधानी बरती, परंतु इस घातक वायरस से छुटकारा नहीं पा सका. उदाहरण के तौर पर चीन में तीन साल तक लॉकडाउन रहा. इक्कीस बार टेस्टिंग की गयी. बावन दिनों का क्वारंटाइन किया गया. लेकिन इस सब से क्या हुआ? फिर भी वहां नई लहर आ ही गई.

डॉ गोडसे अपनी बात दोहराते हुए यह भी कहते हैं कि जैसा दावा उन्होंने कोविड के ओमिक्रोन वेरिएंट को लेकर किया था, जो सच साबित हुआ. ठीक उसी तरह वे इस नये वेरिएंट के लेकर भी आश्वस्त हैं कि भारत पर इसका कोई बहुत बड़ा असर नहीं दिखाई देगा. अब इस वेरिएंट को रोकना किसी के लिए भी संभव नहीं है.

डॉ गोडसे मानते हैं कि कोविड का ओमिक्रोन वेरिएंट भारत में एक वरदान साबित हुआ क्योंकि उससे देश भर में हर्ड इम्युनिटी हुई. कोविड के ओमिक्रोन ने कोविड के ख़िलाफ़ ही एक वैक्सीन का जैसा काम किया है. वे कहते हैं कि देश में जो भी लोग कोविड के प्रति ‘हाई रिस्क’ की श्रेणी में आते हैं उन्हें संभल कर रहने की ज़रूरत है. वे सभी सावधानियाँ बरतें और सुरक्षित रहें.

एक शोध से पता चला है कि ओमिक्रोन मॉडीफाइड वैक्सीन लेने से बचाव हो सकता है. भारत में कोरोना की मैसेंजर राइबोज न्यूक्लिक एसिड (mRNA) वैक्सीन को 15 दिसम्बर 2021 तक आना था. परंतु उसका अभी तक कुछ पता नहीं. इस वैक्सीन को पुणे की जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने बनाया है. डॉ गोडसे पूछते हैं कि जब यह बात शोध से सिद्ध हो चुकी है कि कोरोना अपने रूप बदल कर हमला कर रहा है तो वैक्सीन में भी बदलाव क्यों नहीं किए जा रहे?

जैसे ही चीन में लंबे लॉकडाउन के बाद जनता को बाहर आने दिया गया तभी से वहाँ कोरोना की नई लहर आई. इसका मतलब यह हुआ कि लॉकडाउन से कोरोना पर लगाम नहीं लगाई जा सकी. इसके साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि जिन लोगों के शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता कम है या जो लोग ‘हाई रिस्क’ के दायरे में आते हैं पहले उन पर सावधानी बरती जाए. न कि सभी को लॉकडाउन और मास्क जैसे नियम की बेड़ियों जकड़ा जाए. सामान्य तौर पर स्वस्थ व्यक्ति को मास्क लगा लेने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. डॉ गोडसे कहते हैं कि मास्क से कोविड की रोकथाम होती है, ऐसा कोई भी शोध उपलब्ध नहीं है. मास्क केवल डॉक्टर व अस्पताल में काम कर रहे अन्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगियों के संपर्क में आने से होने वाले इन्फेक्शन से बचाता है.

इसके साथ ही डॉ गोडसे इस बात पर भी ज़ोर दे रहे हैं कि कोविड के इस नये प्रारूप से पहले की तरह न तो तेज़ बुख़ार आता है और न ही ये हमारे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने देता है. केवल गले में ख़राश होती है और दो-तीन दिन में मरीज़ ठीक हो जाता है. उनके अनुसार इसलिए कोविड के इस नये अवतार से ज़्यादा डरने के ज़रूरत नहीं है. केवल वो लोग जिन्हें पहले से ही कोई गंभीर बीमारी है वे ज़रूर पूरी सावधानी बरतें. हमें सचेत रहने की ज़रूरत है घबराने कि नहीं.

चीन में कोविड की नई लहर आने के पीछे वहाँ के बुरे प्रबंधन और वैक्सीन की गुणवत्ता है. यदि समय रहते चीन ने इस महामारी का सही से प्रबंधन किया होता तो यह प्रकोप दुनिया भर में नहीं फैलता. भारत जैसी आबादी वाले देश में यदि कोविड पर नियंत्रण पाया गया है तो उसके पीछे यहाँ की आम जानता कि प्रकृति से जुड़ी पारंपरिक दिनचर्या,  वैज्ञानिकों की मेहनत और कुछ हद तक सरकार का सही प्रबंधन भी है. चीन के लंबे लॉकडाउन लगने से यह बात साबित हो चुकी है कि इस महामारी से घर में क़ैद हो कर नहीं बचा जा सकता है. इसके लिए दवा और सावधानी दोनों का प्रयोग करना ही बेहतर होगा. डॉ गोडसे के अनुसार कोविड के वायरस से ज़्यादा हमें सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे भ्रमित करने वाले मेसेज रूपी वायरस से बचने की ज़रूरत है.

मिसाल के तौर पर सोशल मीडिया में ऐसा संदेश घूम रहा है कि कोविड का नया वायरस हवा से फैलता है. लेकिन आपके शरीर में कान, नाक और मुँह से नहीं प्रवेश नहीं करता, सीधा आपके फेफड़ों में घुसकर आपको निमोनिया कर देता है। डॉ गोडसे पूछते हैं कि यदि ये वायरस नाक और मुँह के रास्ते शरीर में प्रवेश नहीं करता तो फेफड़ों तक कैसे पहुँच सकता है? इसके साथ ही इस संदेश में यह भी कहा जा रहा है कि ये वायरस टेस्टिंग में नेगेटिव आता है परंतु आपके शरीर में रहता है. इस पर डॉ गोडसे सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि जो वायरस जाँच में पकड़ा नहीं जा सकता, वो कोविड का नया वायरस है ये कैसे पता चलता है? डॉ गोडसे के अनुसार ऐसे वायरस केवल सोशल मीडिया के माध्यम से ही फैलते हैं। इसलिए सचेत रहने के साथ-साथ ऐसे संदेशों से भी दूरी बनाए रखें और वायरस को फैलने से रोकें.

विनीत नारायण, वरिष्ठ पत्रकार

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