Imran Khan Arrested: पाकिस्तान की तारीख़ में वहां के प्रधानमंत्रियों का मुस्तकबिल जेल, निर्वासन या फांसी का फंदा ही रहा है. बात चाहें इमरान खान की हो या हुसैन सुहरावर्दी, जुल्फिकार अली भुट्टो, नवाज शरीफ या शाहिद अब्बासी की. सभी ने या तो जेल का रुख किया, या देश छोड़कर फरार हुए या फिर फांसी पर टांग दिए गए. सांप्रदायिक और चरमपंथ के सोच से निकले एक राष्ट्र का भविष्य क्या हो सकता है, यह 75 साल बाद बखूबी दिखाई दे रहा है.
इस्लामी हुकूमत का ख्वाब देखने वाली मुस्लिम लीग और इसके सरबराह मोहम्मद अली जिन्ना की कोशिश क्या रंगत लाई है… इसकी गवाह तारीख में हुए तख्तापलट और नेताओं का ब्लड-बाथ बयां करने के लिए काफी है. जम्हूरियत (Democracy) यहां के लिए सिर्फ किताबी बातें और जलसों की तक़रीरों तक ही सीमित होकर रह गई. ज़मीन पर तो सिर्फ फौज की ही जलवाफ़रोशी रही.
मंगलवार को इमरान खान धर लिए गए. अदालत में एक बेल के संदर्भ में पेश होने गए थे, वहीं पाकिस्तानी रेंजरों ने पकड़ लिया. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी भी काफी बेआबरू के साथ हुई. खान की पार्टी पीटीआई ने जो वीडियो जारी किए उसे साफ दिखा कि कैसे रेंजर्स जिस केबिन में खान बैठे हैं, उसके शीशे तोड़ रहे हैं और धमकियां दे रहे हैं. जबरन उनको उठाया गया और धक्के मारकर गाड़ी में बैठाया गया.
पाकिस्तान की तारीख में प्रधानमंत्रियों की तक़दीर से इमरान खान भी जुदा नहीं रहे. इससे पहले भी पीएम की गिरफ्तारी की लंबी फेहरस्त रही है और दुनियाभर में सुर्खियां भी बटोरी हैं. आपको हम उनमें से कुछ की दास्तान बड़े ही संक्षेप में बताने जा रहे हैं, जिससे आप यह जान सकें कि तारीखी तौर पर पाकिस्तान बतौर मुल्क कैसे अपना किरदार निभा पाया है.
ये जनाब 60 के दशक में पाकिस्तान के 5वे प्रधानमंत्री बने. सितंबर 1956 से अक्टूबर 1957 तक इनका कार्यकाल रहा. लेकिन, इस छोटे से कार्यकाल के दौरान ही इनका टकराव पाकिस्तान की फौज से हो गई. फौज के उस वक्त जनरल थे अय्यूब खान. जनरल अय्यूब खान ने इनकी ऐसी-तैसी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. 1960 में इन्हें Ebdo (Elective Bodies Disqualification Order) के तहत राजनीति में पूरी तरह बैन कर दिया गया. बाद में 1962 में पाकिस्तान सिक्योरिटी एक्ट के तहत इन्हें गिरफ्तार किया गया और कराची के जेल में बिना ट्रायल बंद करके रखा गया.
पाकिस्तान में मौजूदा विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के नाना का हश्र वो हुआ जो पाकिस्तान की तारीख में किसी दूसरे प्रधानमंत्री के साथ नहीं हुआ. बिलावल की मां बेनजीर भुट्टों का भी रिश्ता जेल से रहा. लेकिन, फिलहाल जुल्फिकार अली भुट्टों की बात करते हैं. जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान की तारीख में काफी अहम प्रधानमंत्री रहे. इन्हीं के शासनकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था.
बतौर प्रधानमंत्री इन्होंने अगस्त 1973 से जुलाई 1977 तक पाकिस्तान की सेवा की. लेकिन, फौज के साथ इनके भी रिश्ते खराब हुए और 1974 में इनके ऊपर अपने राजनीतिक प्रतिद्वद्वी की हत्या की साजिश में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, लाहौर हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को रद्द कर दिया. तब लाहौर हाईकोर्ट के जज मोहम्मद अहमद समदानी ने कहा था कि भुट्टों को गिरफ्तार करने का कोई लीगल ग्राउंड स्टैंड ही नहीं करता.
लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी रिहाई के तीन दिन बाद ही फिर से गिरफ्तार कर लिए गए. इस बार उनकी गिरफ्तारी मार्शल लॉ के तहत किया गया. जिनके खिलाफ सुनवाई पाकिस्तान के किसी भी कोर्ट में नहीं हो सकती थी. देश के खिलाफ काम करने और कानून-व्यवस्था को चुनौती देने के जुर्म में उन्हें 4 अप्रैल, 1979 को फांसी पर लटका दिया गया.
80 के आखिरी दशक में बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की सियासत में दमखम रखने लगी थीं. हालांकि, उनके पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी के बाद ही बेनजीर को लोगों का समर्थन भारी संख्या में मिलने लगा था. बतौर प्रधानमंत्री इन्होंने पाकिस्तान की दो बार खिदमत की. दिसंबर 1988- अगस्त 1990 और अक्टूबर 19930- नवंबर 1996 तक यह पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं.
हालांकि, प्रधानमंत्री बनने से पहले ही इनका सफर जेल जाने से शुरू हुआ, जो पीएम बनने के बाद भी जारी रहा. अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी के बाद वह पाकिस्तान की बतौर विपक्षी नेता सक्रिय थीं. 1985 में वह अपने भाई की मय्यत में शामिल होने पाकिस्तान आई थीं. लेकिन, उन्हें हाउस-अरेस्ट कर लिया गया और वह 90 दिनों तक इस डिटेंशन में रहीं.
बेनजीर की दूसरी गिरफ्तारी 1986 में हुई, जब उन्होंने पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रोक के बावजूद एक रैली कर डाली. इसके बाद 90 के दशक में 5 बार जेल गईं. इस दौरान उन पर ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार के लगे. 1998 में तीन बार जेल गईं. जबकि, 1999 में उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा. हालांकि, एक चुनावी रैली के दौरान 27 दिसंबर, 2007 को बेनजीर भुट्टों की अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी. तब वह रावलपिंडी में खुली गाड़ी में प्रचार कर रही थीं.
जनरल परवेज मुशर्रफ के तख्ता-पलट के बाद पूर्व पीएम नवाज शरीफ पाकिस्तान छोड़कर दूसरे देश चले गए थे. कहा तो यह भी जाता है कि अगर शरीफ पकड़े जाते तो मुशर्रफ उसी वक्त इनको खत्म करा देते. गौरतलब है कि इन्हीं के शासनकाल में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और लाहौर बस सेवा की शुरुआत करते हुए पाकिस्तान पहुंचे थे. बाद में कारगिल की वारदात हुई. बहरहाल, नवाज शरीफ अपने निर्वासन के 7 साल बाद 2007 में पाकिस्तान पहुंचे. उनको एयरपोर्ट पर पहुंचे अभी एक घंटे भी नहीं बीते थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. शरीफ को सऊदी अरब के जेद्दा वापस भेज दिया गया.
इसके बाद फिर से उनके वतन वापसी के बाद 2018 में उन पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चला और NAB (National Accountability Bureau) ने शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज को 10 साल की सजा सुनाई और इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, दो महीने बाद हाई कोर्ट ने इस फैसले को सस्पेंड कर दिया और दोनों रिहा हो गए. लेकिन, दिसंबर, 2018 में फिर से उन्हें 7 साल जेल की सजा हुई. गिरफ्तारी के बाद उन्हें मेडिकल ग्राउंड पर देश छोड़ने की इजाजत दी गई. तब से लेकर आज तक वह देश से बाहर हैं और अभी तक पाकिस्तान नहीं लौटे.
जनवरी 2017 से मई 2018 तक इनका कार्यकाल रहा. लेकिन, भ्रष्टाचार के आरोप में इन्हें 19 जुलाई 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. ये आज भी बेल पर रिहा हैं.
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